नई दिल्ली: तालिबानी अत्याचार (Talibani Brutality) की बेइंतहां क्या है इसे सही तरीके से वही लोग समझ सकते हैं, जो उससे गुजरे हैं. तालिबानी बेरहमी का आलम यह है कि वे महिलाओं (Women) को मारने, उनकी आंखें निकालें और उनकी लाशों को कुत्तों को खिलाने से भी गुरेज नहीं करते हैं. ऐसे ही क्रूर अत्याचार से गुजरी एक अफगानी महिला (Afghani Women) ने अफगानिस्तान (Afghanistan) में महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों की जो कहानी सुनाई है, वह मजबूत दिल वालों को भी भावुक कर देगी.
निकाल ली थीं आंखें
33 साल की महिला खटेरा ने अपने साथ हुए अत्याचार की जो दास्तां सुनाई है वह दहलाने वाली है. इस महिला को पहले तो तालिबानी लड़ाकों ने उन्हें कई बार चाकू घोंपे और फिर उनकी आंखें निकाल लीं. उस समय यह महिला 2 महीने की गर्भवती थी. तमाम मिन्नतें भी उसे तालिबानियों से नहीं बचा सकीं लेकिन किस्मत से वो जिंदा बच गईं और अपनी आंखों का इलाज कराने किसी तरह दिल्ली पहुंच गई. जिस समय तालिबानियों ने खटेरा को घेरा था वे गजनी शहर में अपने काम के बाद लौटकर घर जा रही थीं.
तालिबान की नजर में महिलाएं इंसान नहीं
खटेरा कहती हैं, ‘तालिबान की नजर में महिलाएं इंसान नहीं है, बल्कि वे केवल गोश्त का टुकड़ा हैं, जिनके साथ कितनी भी बेरहमी की जा सकती है. वे (तालिबान) पहले हमें प्रताड़ित करते हैं और फिर दूसरों को इस सजा का नमूना दिखाने के लिए शरीर को कभी चौराहे से लटका देते हैं तो कभी महिलाओं की लाशों को कुत्तों को खिला देते हैं. मैं भाग्यशाली था कि मैं इससे बच गई.’ वे आगे कहती हैं, ‘अफगानिस्तान में तालिबान के अधीन रहना क्या होता है इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है क्योंकि वो जिंदगी महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के लिए नरक की तरह होती है.’
इसलिए किया था खटेरा पर हमला
खटेरा के मुताबिक उनके पिता तालिबान के पूर्व लड़ाके थे. लिहाजा उनके खिलाफ साजिश रचने के लिए तालिबानियों ने उन्हें निशाना बनाया. दिल्ली में अपने पति और बच्चे के साथ इलाज करा रहीं खटेरा कहती हैं, ‘तालिबान महिलाओं को पुरुष डॉक्टरों के पास जाने की अनुमति नहीं देता है, ना ही महिलाओं को पढ़ने और काम करने की अनुमति देता है. ऐसे में वहां एक महिला के लिए क्या बचा है? क्या उनके पास मरना ही आखिरी रास्ता है?’
वह आगे कहती हैं, ‘हमारी महिलाओं और युवाओं ने शिक्षा पाने के लिए, नौकरी पाने के लिए और अपना मुकाम बनाने के लिए इन 20 सालों में लंबा सफर तय किया था. लेकिन आज महिलाएं तालिबानियों के डर से अपने एजुकेशनल सर्टिफिकेट्स जला रही हैं, ताकि उन्हें महिला के पढ़े-लिखे होने का सबूत न मिल जाए. मेरे रिश्तेदार भी अपनी लड़कियों को तालिबान से बचाने के लिए उनके एजुकेशन सर्टिफिकेट्स जला रहे हैं.’
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