दिगम्बर जैन समाज के अजीमुश्शान संत आचार्य विद्या सागर जी महाराज की जिंदगी से कौन मुतास्सिर न होगा। जैन मजहब में उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया है। माना जाता है की आचार्यश्री के कदमों की धूल जिस सरजमी पे पड़ जाए वो जरखेज हो जाया करती है। दौलत और ऐशो आराम के पीछे तेजगाम भागती दुनिया के लिए आचार्यश्री की कठिन तपस्या किसी अजूबे से कम नहीं। उनकी ज़बान से निकला हर लफ्ज़ पाक होता है, हर बात अहम होती है। वो जिस इलाके में कयाम करते हैं जैन समाज के लिए वो वो जगह मुकद्दस हो जाती है। आचार्य विद्या सागर जी महाराज मुनि के रूप में जितनी कठिन तपस्या करते हैं, अन्य किसी मजहब के संत शायद ही इतने कठिन उसूलों के साथ जिंदगी जीते हों। ऐसे महान संत पर भोपाल के एक नौजवान सहाफ़ी अनिल सिरवैया ने तहकीक (रिसर्च) की है। ये भी इत्तफाक है कि अनिल वाहिद ऐसे गैर जैन शख्स हैं जिन्होंने आचार्यश्री के अदब (साहित्य) पर पीएचडी की है। अभी तक 22 जैन स्कालरों ने ही आचार्यश्री पर पीएचडी की है। अनिल बताते हैं कि मुझे विद्या सागर जी महाराज की कठिन साधना ने बहुत मुतास्सीर किया। लिहाजा मैने उनके साहित्य पर रिसर्च करना तय किया। अनिल ने उनके साहित्य पर अपनी तहकीक सन 2014 में शुरू की थी। इसके लिए उन्होंने मुल्क की कई लायब्रेरी में आचार्यश्री के साहित्य का मुताला किया। कई जैन कुनबों से राबता किया। अनिल आचार्य विद्या सागरजी से भी सात बार मिले। और उनसे भी उनके साहित्य के मर्म पर बात की। कई बार वे आचार्यश्री के पदविहार में भी गए। उनके महाकाव्य मूकमाटी का भी अनिल ने गहराई से अध्यन किया। आचार्यश्री का ज्यादातर साहित्य उनके प्रवचनों के निबंधों के तौर पर शाया हुआ है। जिसमे समाज की हर समस्या का हल मिलता है। चार साल की रिसर्च के बाद अनिल को बरकतुल्ला यूनिवर्सिटी ने आचार्य विद्या सागर का साहित्य एक अनुशीलन के मौजू पर पीएचडी की उपाधि से नवाजा। आज अनिल को जैन समाज के कई जलसों में बोलने के लिए बुलाया जाता है। मुबारक हो जनाब।
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