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तहव्वुर राणा को हो सकती है फांसी, न्यायपालिका के सामने कोई बाधा नहीं

  • April 14, 2025

    डेस्क: मुंबई में साल 2008 के आतंकी हमले के प्रमुख आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा के लिए भारत में न्यायपालिका उसके जघन्य अपराधों के लिए मृत्युदंड तय कर सकती है. राणा के खिलाफ भारत में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, हत्या और आतंकवाद जैसे गंभीर आरोपों के तहत मुकदमा चलेगा. इसके लिए उसे मौत की सजा दी जा सकती है, क्योंकि प्रत्यर्पण प्रक्रिया के दौरान भारत-अमेरिका, दोनों ने स्पष्ट तौर पर मृत्युदंड की सजा को बाहर नहीं रखा है.

    भारत-अमेरिका में अलग-अलग तरह से अपराधियों को मौत की सजा दी जाती है. ऐसे में प्रत्यर्पण संधि के प्रावधान भी इसके आड़े नहीं आते. हालांकि, प्रत्यर्पण प्रक्रिया के दौरान मृत्युदंड नहीं दिए जाने की शर्त रखी जा सकती है, लेकिन राणा के मामले में अमेरिका की तरफ से ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई है. जबकि 2005 में अबू सलेम के प्रत्यर्पण के समय पुर्तगाल को भारत ने मौत की सजा ना देने की गारंटी दी थी.

    कानूनविदों के मुताबिक, भारत सरकार ने अमेरिका को यह आश्वासन तो दिया है कि राणा को भारत में हिरासत के दौरान पूरी सुरक्षा दी जाएगी. उसे प्रताड़ित नहीं किया जाएगा और कानून के मुताबिक अदालत सबूतों और गवाहों के आधार पर सजा तय करेगी. इस दौरान मौत की सजा को बाहर नहीं रखा गया है.


    राष्ट्रीय जांच एजेंसी-एनआईए ने राणा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की जिन धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है, उनमें मौत की सजा का भी प्रावधान है, ऐसे में यकीनन देश की न्यायपालिका उसे मृत्युदंड की सजा सुना सकती हैं. याद रहे कि राणा के खिलाफ आईपीसी की धारा-120बी, 121, 121अ, 302, 468, 471 का मामला दर्ज है. इसके अलावा गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम-यूएपीए और आतकंवादी गतिविधियों के खिलाफ धारा 18 और 20 के तहत भी मामला दर्ज किया गया है.

    इस मामले में वकील वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह और अभिषेक राय का कहना है कि प्रत्यर्पण एक न्यायिक प्रक्रिया है जबकि निर्वासन एक कूटनीतिक प्रक्रिया है. अगर राणा का निर्वासन होता तो मृत्युदंड तामील करने में सिर्फ देश में स्थापित कानून का ख्याल रखा जाता, लेकिन प्रत्यर्पण की न्यायिक प्रक्रिया से लाए गए राणा के मामले में मौत की सजा से संबंधित हर एक पहलू का अनुपालन अनिवार्य है.

    प्रत्यर्पण कानून में यह साफ है कि दोनों देशों के बीच संधि हो, लेकिन अगर एक देश में मौत की सजा या कोई अन्य सजा प्रतिबंधित है या नहीं है तो दूसरा देश उसे प्रत्यर्पित आरोपी पर लागू नहीं कर सकता. राणा के मामले में ऐसा नहीं है, क्योंकि अमेरिका-भारत, दोनों देशों में मृत्युदंड का प्रावधान है.

    दूसरा पहलू प्रत्यर्पण के दौरान मौत की सजा नहीं देने की शर्त पर लागू होता है पर अब तक मीडिया के हवाले से जो सूचना बाहर आई है, उसके मुताबिक ऐसा कोई आश्वासन ना अमेरिका ने मांगा और ना ही भारत की ओर से दिया गया है.

    तीसरा पहलू जो नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध के दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल से जुड़ा है, जिसका मकसद मृत्युदंड को समाप्त करना है. इस अनुबंध के दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल पर भारत को छोड़कर कई देशों से हस्ताक्षर किए हैं. ऐसे में राणा के मामले में यह भी लागू नहीं होता है.

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