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    मंकीपॉक्स के लक्षणों ने विशेषज्ञों की बढ़ाई चिंता, ठीक होने बाद भी हफ्तों तक मौजूद दिख रहा वायरस

  • August 29, 2022

    वाशिंगटन। मंकीपॉक्स (monkeypox) के शुरुआती प्रकोप में विशेषज्ञ भले ही इसके लक्षणों और प्रसार को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे थे लेकिन अब तक दुनियाभर में मिले 47 हजार मरीजों में अलग-अलग तरह के संक्रमण ने उनका सिरदर्द बढ़ा दिया है। अमेरिका और यूरोप (America and Europe) में क्लीनिकों पर पहुंचे कई संक्रमितों में परंपरागत लक्षणों (symptoms) के उलट मच्छर के काटने का निशान, मुंहासे नजर आए तो कुछ के शरीर पर स्पष्ट घाव न होने के बावजूद उन्हें निगलने और मल-मूत्र त्यागने में बहुत तेज दर्ज हो रहा था। इसके अलावा, कुछ संक्रमितों में सिरदर्द, अवसाद, भ्रम और सीजर जैसी तकलीफें भी उभरी हैं।



    वहीं, ऐसी मरीज भी हैं, जिन्हें आंखों में संक्रमण (eye infection) या हृदय की मांसपेशियों में सूजन का सामना करना पड़ा है। वहीं, कई मरीजों में तो बुखार, दर्ज और कमजोरी जैसा कोई लक्षण ही नहीं दिखा। यहां तक, उन्हें संक्रमित होने का बारे में भी नहीं पता, क्योंकि न तो वह किसी घाव वाले व्यक्ति के संपर्क में आए थे और न ही किसी से शारीरिक संबंध बनाया था। मंकीपॉक्स के पुराने लक्षणों के एकदम उलट इन नई परिस्थितियों ने विशेषज्ञों के सामने बड़ी चुनौती पैदा कर दी है। अटलांटा में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ बोघुमा तितांजी के मुताबिक, हमें मरीजों में बिलकुल अलग-अलग प्रकार के लक्षण देखने को मिल रहे हैं।

    ठीक होने के बाद भी हफ्तों तक वायरस की मौजूदगी
    अब वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि मंकीपॉक्स वायरस संक्रमित (monkeypox virus infected) के ठीक होने के कई हफ्तों के बाद भी लार, सीमन और अन्य शारीरिक तरल में मौजूद रहता है। लेकिन कई विशेषज्ञ इस बात पर कायम हैं कि इस बीमारी का संक्रमण यौन संबंधों से होता है।

    गले में वायरस पर सांस की तकलीफ नहीं
    मंकीपॉक्स पर ताजा रिपोर्ट लिखने वाले डॉ अबरार करन ने कैलिफोर्निया के कुछ मरीजों का हवाला देते हुए कहा है कि उनके गले में वायरस पाया गया पर उन्हें कोई भी श्वसन संबंधी तकलीफ नहीं थी। उनका कहना है, यह वायरस का प्रसार भी लक्षण रहित लोगों के जरिए हो सकता है।

    मॉडल सुधारने की दरकार
    वहीं, क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ क्लोए ओर्किन के मुताबिक, मंकीपॉक्स के प्रसार को लेकर हमारे वैज्ञानिक मॉडल गलत हैं, जिन्हें सुधारने की जरूरत है। दरअसल, यह बीमारी लंबे समय तक सिर्फ अफ्रीका तक ही सीमित रही, जिसके चलते दुनियाभर में ज्यादा समझ विकसित नहीं हो पाई।

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