अब दिन के उजाले में हमें कौन पुकारे
चमके थे कभी रात में जुगनू की तरह हम।
सैयद अली हसन मुजीब का नाम क़दीमी भोपालियों और नवाबों का शजरा जानने वाले ओरिजनल भोपालियों के लिए किसी तार्रुफ़ का मोहताज नहीं है। मियां खां भोपाली तहज़ीब-ओ-तमद्दुन, रिवायतों, महफिलों और खुश अख़लाक़ी का सरमाया थे। भोपाल के नवाबी खानदान से ताल्लुक रखने वाले इस जिंदादिल और खानदानी भोपाली हस्ती का 17 अगस्त को इंतकाल हो गया। वो 74 बरस के थे। कुछ अरसे से वो काफी अलील (बीमार) थे। इस कॉलम में उनका जि़क्रखैर इस लिए भी मौज़ू है कि सैयद अली हसन मुजीब साब मध्यप्रदेश सरकार के जनसम्पर्क महकमे के भोत मक़बूल अफसर थे। बेहद सीधे और सादा मिजाज़ वाले मुजीब मियां नफासत और बेलौस मुहब्बत का जीता जागता सुतून थे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद साल 2002 में उनका ताबदला भोपाल से रायपुर हो गया था। वहां से असिस्टेंट डायरेक्टर के ओहदे से सुबुकदोश (रिटायर) होने के बाद ये खानुगांव में अपनी रिहाइशगाह में रह रहे थे। कुछ बरस क़ब्ल मुजीब साब को फ़ालिज का अटैक पड़ा और भोपाल की महफिलों व दावतों की शान रहे सैयद अली हसन मुजीब की जि़ंदगी व्हील चेयर तलक महदूद हो गई। उनकी लडखड़़ाती ज़ुबान कुछ कहना चाहती थी लेकिन उनसे अल्फ़ाज़ नहीं निकलते। लिहाज़ा उनकी शेरो सुखन, किस्सागोई और दोस्त अहबाबों के साथ बैठकों का सिलसिला भी थम गया। कभी कभी कोई पुराना यार उनसे मिलने पहुंचता तो बेइंतहा खुश हो जाते। जोश में व्हील चेयर से उठने की कोशिश करते लेकिन उठ नहीं पाते। चंद रोज़ पेले जनसंपर्क के डिप्टी डायरेक्टर अशोक मनवानी साब उनके दौलतकदे पर पहुंचे तो मुजीब साब की खुशी आंखों से छलक गई। नफीस और शुस्ता उर्दू, हिंदी और अंग्रेज़ी के जानकार सैयद अली हसन मुजीब का शजरा भोपाल के नवाबों से जुड़ता है। नवाब शाहजहां बेगम के दूसरे शौहर नवाब सिद्दीक़ हसन खां इनके परदादा के भी दादा थे। नवाब सिद्दीक़ हसन साहब के फज़ऱ्न्द नुरुल हसन साब जिनके नाम से भोपाल का नूर महल पायगा जाना जाता है, इनके वालिद के परदादा थे। सैयद अली हसन मुजीब के वालिद मरहूम सैयद हबीबुल हसन साब सन 1952 से 56 के दौरान भोपाल पार्ट सी स्टेट में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर थे।
उनके खास दोस्त डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा उस वक्त भोपाल स्टेट के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। सैयद हबीबुल हसन साब के इंतकाल के बाद सैयद अली हसन मुजीब सन सत्तर के आसपास मध्यप्रदेश के जनसंपर्क महकमे में आए। नवाबी खानदान से होने की वजह से उन्हें भोपाल की तारीख (इतिहास) की गहरी जानकारी थी। उन्हें भोपाल के हर नवाब के पीरियड और उनकी खूबियों की जानकारी मुहज़बानी याद थी। उनके पास नवाबी दौर के भोपाल से लेकर भोपाल के पार्ट सी स्टेट बनने और बाद में सन 1956 में मध्यप्रदेश बनने तक कि यादगार तस्वीरों का खज़ाना था। जब डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति बने तब वे अपने साथ अपने मरहूम दोस्त के इस बेटे को भी दिल्ली ले गए। लिहाज़ा सैयद अली हसन मुजीब हमारे सूबे के वाहिद ऐसे जनसंपर्क अधिकारी थे जिसने डेपुटेशन पे राष्ट्रपति भवन में सेवाएं दीं। सैयद अली हसन मुजीब को बहुत टिपटॉप रहने का शौक़ था। जूते उम्दा पोलिश किये हुए और पेंट शर्ट कऱीने से प्रेस किये हुए पहनते। 120 तमाकू के साथ किमाम चटनी वाला बंगला पान खाने का उन्हें बला का शौक़ था। इमामी गेट पे उनके आबाई घर और उस इलाके में उनकी बैठक होती। भोपाल की जानी मानी हस्ती जम्मू मियां, सिकंदर मियां, फतेउल्ला साब, हमीद मंजि़ल वाले अनवार मियां, शाहिद हबीब साब, एक्टर राजीव वर्मा साब और इनके हमउम्र चचा मशहूर आर्किटेक्ट सैयद मेहबूब हसन के साथ इनकी महफिलें सजतीं। इन्हें भोपाल की रियासत और नवाबों की इतनी जानकरी थी कि इंग्लैंड और इजिप्ट से नवाबों पे रिसर्च करने वाले तालिबे इल्म इनसे मिलने आते और अपनी थीसिस के लिए जानकारी जुटाते। आपने नवाब सिद्दीक़ हसन खां के किरदार पर एक किताब भी लिखी थी। रिटायरमेंट के बाद ये अपने दोस्तों के साथ शतरंज खेलते और बाकी वक्त लिखने पढऩे में मसरूफ रहते। मुजीब साब कुछ सालों से फ़ालिज के अटेक के बाद चलने फिरने और बोलने से मोहताज ज़रूर हो गए थे लेकिन उनकी खुशमिजाजी और मेहमान नवाज़ी में कोई कमी नहीं थी। सैयद अली हसन मुजीब को भोपाल के नवाबों के सिद्दीक़ हसन खां शाही क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक किया गया। उनके बेटे सैयद फऱहान मुजीब अपने वालिद की खुशमिजाजी की रिवायात को आगे बढ़ा रहे हैं।
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