उज्जैन। वेद-शास्त्रों में स्वास्तिक (swastika) के चिह्न को सम्पूर्ण जगत का कल्याण करने वाला और अमरत्व प्रदान करने वाला माना गया है. स्वास्तिक को बेहद शुभ, सौभाग्यदायी (Fortunate) और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. स्वस्तिक की 4 रेखाओं को 4 वेद, 4 पुरूषार्थ, 4 आश्रम, 4 लोक और 4 देवों यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश का प्रतीक माना गया है. इसलिए धार्मिक रूप से हिंदूओं में स्वास्तिक को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. स्वास्तिक का अर्थ होता है- कल्याण या मंगल करने वाला. इसे हर शुभ या मांगलिक कार्य करने से पहले बनाया जाता है.
भगवान गणेश का रूप है स्वास्तिक
स्वास्तिक की आकृति को भगवान गणेश का रूप भी माना जाता है. मान्यता है कि स्वास्तिक का प्रयोग करने से सम्पन्नता , समृद्धि और एकाग्रता प्राप्त होती है. सकारात्मकता आती है. स्वास्तिक को लेकर यहां तक कहा गया है कि जिस पूजा उपासना में स्वस्तिक का प्रयोग नहीं होता है, वो पूजा लंबे समय तक अपना प्रभाव नहीं रख पाती है.
घर के मुख्य द्वार पर बनाते हैं स्वास्तिक
घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाना बेहद शुभ माना जाता है. जिस घर के मुख्य द्वार पर रोजाना हल्दी, कुमकुम, अक्षत से स्वास्तिक बना हो, वहां हमेशा मां लक्ष्मी वास करती हैं. यही वजह है कि दिवाली की पूजा के दिन मुख्य द्वार पर स्वास्तिक जरूर बनाया जाता है. साथ ही शुभ-लाभ लिखा जाता है. घर के मुख्य द्वार पर बना स्वास्तिक सारे ग्रह दोषों को भी दूर करता है.
नाम में ही समाहित है शुभता
स्वस्तिक शब्द – ‘सु’ और ‘अस्ति’ के मिश्रण से बना है. यहां सु का अर्थ है शुभ और अस्ति का अर्थ है- होना. यानि शुभ हो, कल्याण हो.इसलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक का चिह्न बनाकर उसकी पूजा की जाती है.
स्वास्तिक बनाने के जरूरी नियम
– स्वास्तिक की रेखाएं और कोण बिलकुल सही होने चाहिए. गलती से भी उल्टा स्वास्तिक ना बनाएं.
– स्वास्तिक लाल और पीले रंग से बनाना ही सर्वश्रेष्ठ होता है. वहीं जो जातक स्वास्तिक धारण करना चाहते हैं वे हमेशा गोले के अंदर बना स्वास्तिक ही धारण करें.
– स्वास्तिक को हल्दी, कुमकुम या चंदन से बनाना बहुत शुभ होता है. साथ ही इसके बीच में अक्षत के कुछ दाने लगाएं. ध्यान रहे कि अक्षत यानी कि चावल के दाने टूट ना हों
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