डेस्क: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि इस बार 31 मई को है. इस दिन निर्जला एकादशी व्रत रखा जाता है और इस व्रत को कठोर व्रत में गिना जाता है. सनातन धर्म में निर्जला एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. ज्योतिषाचार्य ने निर्जला एकादशी के महत्व के बारे अपना मंतव्य दिया. उन्होंने बताया कि एक साल के अंदर कुल 24 एकादशी तिथि आते हैं. प्रत्येक मास में दो एकादशी व्रत रखा जाता है.
पंडित ने बताया कि निर्जला एकादशी व्रत का अपने आप में बड़ा महत्व होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर उपवास रखने से और भगवान विष्णु की उपासना करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है. उनके जीवन में आ रही समस्याएं दूर हो जाती हैं. खास बात है कि निर्जला एकादशी व्रत महिला और पुरूष कोई भी रख सकता है. हालांकि, इस दिन विशेष रूप से महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए बिना अन्न और जल ग्रहण किए व्रत का पालन करती हैं. उन्होंने बताया कि 8 वर्ष से लेकर 80 वर्ष आयु वर्ग के श्रद्धालु निर्जला एकादशी व्रत रख सकते हैं.
1 जून को सुबह में होगा व्रत का पारण
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इस बार निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त 30 मई मंगलवार को दोपहर 1 बज कर 9 मिनट से आरंभ होगा. इसका समापन 31 मई को दोपहर 1 बज कर 47 मिनट पर होगा. इसलिए उदया तिथि के नियमों के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई को रखा जाएगा. वहीं, इस व्रत का पारण एक जून को सुबह 5 बज कर 23 मिनट से 8 बज कर 9 मिनट तक होगा. उन्होंने बताया कि जो भी भक्त व्रत रखेंगे वो तिल से पारण करेंगे.
व्रत में जप-तप करने से कई गुना अधिक मिलेगा फल
उन्होंने बताया कि इस बार निर्जला एकादशी पर स्वार्थ सिद्धि योग के साथ व्यतिपात योग बन रहा है. इस योग का महत्व यह है कि इसमें किए गए जप-तप व उपासना से भगवान विष्णु और भगवान सूर्यनारायण अति प्रसन्न होते हैं.
ज्योतिषाचार्य ने आगे बताया कि इस योग में जप करने वालों को 10 हजार गुना फल मिलता है. निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर गंगा स्नान के बाद सूर्य को पुष्प और जल अर्पित करें, फिर भगवान विष्णु को मन में ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. इस दिन दातुन अथवा ब्रश से मुंह नहीं धोना चाहिए, बल्कि पेड़ के पत्ते या फिर मिट्टी से दांत को धोकर 12 बार जल से कुल्ला करना चाहिए.
पंडित ने बताया कि निर्जला एकादशी व्रत में दिन भर बिना अन्न जल ग्रहण किये व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु का मनसा जप करना होता है. इसके बाद, रात्रि में जागरण करना चाहिए और हो सके तो रामायण, श्रीमद्भागवत गीता आदि धार्मिक ग्रंथों को पढ़ना चाहिए.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved