– आर.के. सिन्हा
करीब नौ साल पहले का वह मंजर यकीनन यादगार था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं झाड़ू लेकर राजधानी दिल्ली की सड़कों पर सफाई करने उतरे थे। उनके पीछे- पीछे उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों से लेकर सरकारी बाबुओं का हुजूम भी सड़कों पर उतर आया था। 2014 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के दिन प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन का आगाज किया था। यकीनन, महात्मा गांधी की जयंती पर उन्हें इससे बेहतर श्रद्धांजलि शायद दी भी नहीं जा सकती थी। आजाद भारत में संभवतः यह पहला मौका था जब देश में स्वच्छता को लेकर सरकार ने इतनी गंभीरता दिखलाई। 140 करोड़ की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला अगुआ यदि खुद सड़क पर उतर आए, फिर समुद्र तट पर घूम-घूम कर कूड़ा उठाने लग जाए, तो यह समझना कतई मुश्किल नहीं कि देश की हुकूमत का साफ-सफाई को लेकर नजरिया क्या है।
बीते कुछ वर्षों में, जाहिर तौर पर स्वच्छता के मोर्चे पर हमने कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। आज शहरों के बीच स्वच्छता को लेकर देशभर में कई प्रतियोगिताएं हो रही हैं। उनमें एक-दूसरे से बेहतर करने की होड़ लगी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अबतक के कार्यकाल में स्वच्छता अभियान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। शायद यही वजह है कि स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत के बाद भारत में स्वच्छता का पुनर्जागरण हुआ है। मिशन ने न केवल शहरों का कायाकल्प किया बल्कि गांवों में भी स्वच्छता की अलख जगाई। अपने देश को साफ-सुथरा रखने की संवेदनशीलता और भावना आज पूरे देश में दिखती है।
गांधीजी आजीवन स्वच्छता की अलख जगाते रहे। दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान उन्हें श्वेत निवासियों के इस दावे से लड़ना पड़ा कि भारतीयों में स्वच्छता की कमी है और इसलिए उन्हें अलग रखने की जरूरत है। नटाल विधानसभा को लिखे खुले पत्र में गांधी ने कहा था कि जहां तक स्वच्छता मानकों का सवाल है, भारतीय भी यूरोपीय लोगों के बराबर हो सकते हैं, बशर्ते उन्हें भी उसी तरह का ध्यान और अवसर दिया जाए। 1915 में भारत लौटने पर उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अपने कार्यक्रमों के मूल में स्वच्छता के मंत्र को रखा। गांधीजी ने 1941 में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए रचनात्मक कार्यक्रम नामक पुस्तिका प्रकाशित की। ग्राम स्वच्छता उन अठारह कार्यक्रमों में से छठा था जो गांधीजी ने उस पुस्तिका में बताए थे। कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम साम्प्रदायिक एकता, अस्पृश्यता निवारण, आर्थिक समानता, सविनय अवज्ञा आदि थे।
आज गांधीजी के स्वच्छ भारत की परिकल्पना को पीएम मोदी साकार कर रहे हैं। यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि गाँधी के नाम पर राजनीति करने वाले किसी कांग्रेसी सरकार ने इसके ऊपर कोई ध्यान तक नहीं दिया। स्वच्छ भारत मिशन इन नौ साल में जनआंदोलन बन गया है। आज ज्यादातर सड़कें साफ-सुथरी दिखती हैं, गलियों में कूड़ा नहीं दिखता। चाहे पर्यटन स्थल हों या रेलवे स्टेशन। हर जगह सफाई दिखती है।
देश ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। अब देश के कुल गांवों में से तीन-चौथाई यानी 75 प्रतिशत गांवों ने ओडीएफ प्लस का दर्जा हासिल कर लिया है। ओडीएफ प्लस गांव वह है, जिसने ठोस या तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करने के साथ-साथ अपनी खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) स्थिति को बरकरार रखा है। आजतक 4.43 लाख से अधिक गांवों ने खुद को ओडीएफ प्लस घोषित कर दिया है। बात अगर उन राज्यों की करें जिन्होंने 100 प्रतिशत ओडीएफ प्लस गांव हासिल किए हैं वे हैं- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादर एवं नागर हवेली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, लद्दाख, पुडुचेरी, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना और त्रिपुरा। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में – अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा नगर हवेली और दमन दीव, जम्मू और कश्मीर और सिक्किम में 100 प्रतिशत ओडीएफ प्लस मॉडल गांव हैं। इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने ओडीएफ प्लस का दर्जा हासिल करने में उल्लेखनीय प्रगति की है और उनके प्रयास इस मील के पत्थर तक पहुंचने में सहायक रहे हैं। इस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किये गये स्वच्छ भारत मिशन के नौ वर्ष पूरे हो गये हैं। 75 प्रतिशत ओडीएफ प्लस गांवों की उपलब्धि भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, क्योंकि देश स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण में ही हम ओडीएफ से ओडीएफ प्लस में आ गए हैं।
स्वच्छ भारत मिशन शहरीकरण की चुनौतियों के समाधान की राह दिखा रहा है। ठोस कचरे का वैज्ञानिक प्रसंस्करण और प्रभावी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए पुराने डंपसाइटों की खस्ताहाल स्थिति को दुरूस्त करने पर भी भरपूर ध्यान दिया जा रहा है। इससे सस्टेनेबल डवलपमेंट गोल्स 2030 के लक्ष्यों को भी प्राप्त करने में आसानी होगी।
यहां उन सफाई मित्रों का जिक्र जरूरी है, जिनके कंधों पर इसके कार्यान्वयन की बड़ी जिम्मेदारी है। इन नौ सालों में सफाई मित्र सफलता की नई इबारत लिख रहे हैं। सफाई मित्रों को सुरक्षित एवं स्वस्थ रखने के साथ बेहतर तरीके से जीने की स्थिति और आजीविका के विकल्प प्रदान करने की पहल सरकार ने की है। मेनहोल को मशीन होल में बदलने की दिशा में प्रतिबद्धता से काम किया जा रहा है। इसके लिए कई शहरों में अभूतपूर्व कदम उठाए गए हैं। सफाई मित्र अब कीचड़ हटाने वाले उपकरणों से लेकर आधुनिक मशीनों का उपयोग कर रहे हैं। लगभग 25 प्रतिशत शहरों में पहले से ही इस तरह के पर्याप्त उपकरण उपलब्ध थे जिनका सही ढंग से पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा था । लेकिन, अब अपशिष्ट प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जा रहा है। इस क्षेत्र में डवलपमेंट स्टार्टअप्स और उद्यमियों के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण करने के लिए एएफडी (एजेंस फ्रांसेइस डे डेवलपमेंट) और डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआईटी) के सहयोग से एक ‘स्वच्छता स्टार्टअप चैलेंज’ भी शुरू किया गया था। अपशिष्ट प्रबंधन में अतिरिक्त स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने आईआईटी कानपुर के सहयोग से कुल 75 स्टार्टअप को फंडिंग सहायता प्रदान करने की योजना बनाई है।
मूल रूप से एक प्रतिस्पर्धी मॉनिटरिंग टूल के रूप में डिजाइन किया गया और स्वच्छ सर्वेक्षण 2016 में पेश किया गया था, जिसका उद्देश्य शहरों को फास्ट-ट्रैक प्रतिस्पर्धी तरीके से स्थायी स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करना था। वर्तमान में यह अपने 8वें संस्करण में लगभग 4500 शहरी स्थानीय निकायों को कवर करता है।
पिछले कुछ वर्षों में मिशन ने समावेशी स्वच्छता को भी सक्षम बनाया है और ‘स्वच्छता के क्षेत्र में महिलाओं से स्वच्छता के क्षेत्र में महिला लीडर्स’ के नजरिए में तेजी से परिवर्तन हुआ है। नारी शक्ति के बहुमुखी योगदान ने स्वच्छ भारत मिशन को और मजबूत किया। संक्षेप में कहा जा सकता है कि स्वच्छता को लेकर एक जागरूकता पैदा हुई है। यह कोई सामान्य बात नहीं है। वर्ना हमारे यहां इस महत्वपूर्ण विषय पर तो पहले कभी ध्यान ही नहीं दिया गया।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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