नई दिल्ली. लोकसभा (Lok Sabha) में बुधवार को ओम बिरला (Om Birla) को स्पीकर (Speaker) चुन लिया गया. स्पीकर की कुर्सी को लेकर लड़ाई खत्म होने के बाद अब अगला लक्ष्य डिप्टी स्पीकर (Deputy Speaker) है. डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष (Opposition) के लिए होड़ का विषय है. जब इसे लेकर NDA और इंडिया गठबंधन के बीच चर्चा हुई तो कांग्रेस ने इस बारे में कुछ नहीं बोला. शुरू में दोनों पक्षों के शीर्ष नेताओं ने इस मामले पर बातचीत की, लेकिन स्थिति तब बिगड़ गई जब सरकार ने डिप्टी स्पीकर का पद इंडिया गठबंधन को देने के लिए सहमति नहीं जताई. यह विवाद स्पीकर के पद को लेकर दोनों पक्षों के बीच सीधी टक्कर के साथ चरम पर पहुंच गया. क्योंकि विपक्ष ने अपनी बात रखने के लिए अपनी दावेदारी पेश की.
टीडीपी से हो सकता है कोई उम्मीदवार
पार्टी इस बात से भी चिंतित है कि 17वीं लोकसभा में यह पद खाली रहा और डिप्टी स्पीकर की मांग बार-बार अनसुनी कर दी गई. इसलिए पार्टी सरकार को इस पद के लिए स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का मौका नहीं देना चाहती. इस मुद्दे पर कोई सहमति न बनने के कारण अटकलें लगाई जा रही हैं कि भाजपा अपने सबसे बड़े सहयोगी टीडीपी से किसी उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है. अध्यक्ष अगले कुछ दिनों में इस पद के लिए कोई फैसला ले सकते हैं, लेकिन पहले उन्हें यह तय करना होगा कि वह डिप्टी स्पीकर रखेंगे या नहीं.
विपक्ष द्वारा सरकार पर निशाना साधने के बावजूद सरकार इस मामले को दबा रही है. सरकार के शीर्ष सूत्रों ने इंडिया टुडे से पुष्टि की है कि डिप्टी स्पीकर पद पर कोई चर्चा नहीं हुई है और जब पार्टी और एनडीए सहयोगियों के बीच कोई फैसला हो जाएगा, तभी इसे विपक्ष के सामने रखा जाएगा.
हालांकि, कांग्रेस इस मामले को टालने के मूड में नहीं है. संविधान की एक कॉपी से अनुच्छेद 93 पढ़ते हुए जयराम रमेश ने कहा कि ‘लोकसभा यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी’ और जब भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है, तो सदन किसी अन्य सदस्य को अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में चुन लेगा.
उपसभापति पद के लिए दावा करेगा विपक्ष
जयराम रमेश ने कहा कि इसलिए हम निश्चित रूप से उपसभापति पद के लिए दावा करेंगे, चाहे वह भाजपा का उम्मीदवार हो या उसके सहयोगी दलों का, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. अनुच्छेद 93 इस बारे में बहुत स्पष्ट है कि लोकसभा में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होना आवश्यक है, हालांकि पिछली बार सरकार ने इस नियम का उल्लंघन किया जो पूरी तरह से असंवैधानिक है.
जयराम रमेश ने कहा कि विपक्ष लड़ाई के लिए तैयार है, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या सरकार नरम पड़ने जा रही है और एक बार फिर विपक्ष को राजनीतिक हिसाब चुकता करने का मौका देगी.
गौरतलब है कि अठारहवीं लोक सभा के स्पीकर के चुनाव को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच में तलवारें तन गई. सदन की जब कार्रवाई शुरू हुई तो प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने दोनों पक्षों को अपने स्पीकर के उम्मीदवारों को लेकर प्रस्ताव रखने को कहा. NDA के उम्मीदवार ओम बिरला बनाम इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के सुरेश की लड़ाई में ध्वनिमत से ओम बिरला को स्पीकर घोषित कर दिया गया. सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर विपक्ष ने ध्वनिमत पर ही इस लड़ाई को क्यों रोक दिया, जबकि वह स्लिप के जरिए वोटिंग कराके डिवीजन की मांग कर सकता था.
कांग्रेस नहीं चाहती थी डिवीजन कराना
कांग्रेस की मानें तो ये एक रणनीति का हिस्सा था. जयराम रमेश ने कहा कि ‘हमारा कभी भी डिवीजन कराने का फैसला नहीं था. हम कभी भी डिवीजन नहीं कराना चाहते थे. इसलिए हमने डिवीजन की कोई रणनीति नहीं बनाई थी. हम हमेशा सैद्धांतिक रूप से इस लड़ाई को लड़ना चाहते थे. हमारी मांग थी कि डिप्टी स्पीकर विपक्ष को मिले, लेकिन सरकार के नकारात्मक रवैये के चलते यह मामला इतना तूल पकड़ा.’
हालांकि, इंडिया गठबंधन से अलग-अलग सुर और स्वर सुनाई पड़े. टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी स्पीकर के चुनाव के बाद बाहर आते वक़्त ये कहने लगे कि हमने डिवीजन की मांग की, लेकिन सत्तापक्ष ने हमारी नहीं सुनी. दरअसल, भाजपा के पास नंबर नहीं थे, इसलिए वोटिंग डिवीजन से नहीं चाहते थे.
इंडिया ब्लॉक के एक और दल आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन का कहना है कि संसद के भीतर हम सिर्फ एक संदेश देना चाहते थे कि विपक्ष की आवाज भी आपको सुननी चाहिए. हमारा इस मामले को और आगे बढ़ाने का कोई इरादा नहीं था. हालांकि, संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू का भी यही कहना था कि विपक्ष ने डिवीजन की मांग नहीं की थी, क्योंकि उसके लिए औपचारिक रूप से दरख्वास्त देनी होती है और ऐसी कोई दरख्वास्त नहीं आयी. स्पीकर के पद को लेकर जिस तरह से रस्साकशी मची उसे यह तय है कि आने वाले सत्र और भी ज्यादा तीखे होने वाले हैं.
संविधान के अनुच्छेद 93 में क्या है?
संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार, ‘लोकसभा यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी और जब भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होगा, सदन किसी अन्य सदस्य को अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगा.’
उपाध्यक्ष के चयन के विश्लेषण से पता चलता है कि उपाध्यक्ष के चयन में सबसे बड़ा अंतर 12वीं लोकसभा में था, जब पदनाथ मोहम्मद सईद ने अध्यक्ष के चुनाव के 270वें दिन पदभार संभाला था. 11वीं लोकसभा में सूरजभान 52 दिनों के भीतर उपाध्यक्ष चुने गए थे. सईद 13वीं लोकसभा में फिर से उपाध्यक्ष बने, जब अध्यक्ष के चुनाव के बाद उन्हें सिर्फ सात दिन लगे, जो कि 14वीं और 15वीं लोकसभा में चरणजीत सिंह अटवाल और करिया मुंडा द्वारा लिए गए दिनों के बराबर है.
2014 में एम थंबी दुरई 71वें दिन चुने गए थे. सरकार द्वारा विपक्ष को उपाध्यक्ष का पद देने से इनकार करने के बाद इंडिया गठबंधन ने कोडिकुन्निल सुरेश को अपना अध्यक्ष उम्मीदवार बनाने का फैसला किया. पहली लोकसभा में भी अध्यक्ष के पद के लिए चुनाव हुए थे, जब सरकार ने विपक्ष की उपाध्यक्ष पद की मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. इंडिया गठबंधन के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘सभी को यह पता होना चाहिए कि अध्यक्ष पिछले पांच वर्षों में जो कुछ भी करते रहे हैं, उससे बच नहीं सकते. हम उन पर चुनाव कराने के लिए दबाव डालेंगे. उपसभापति का न होना असंवैधानिक है.’
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved