– सियाराम पांडेय ‘शांत’
अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अंततः यह तय हो गया कि सोनिया गांधी ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष रहेंगी। कांग्रेस गांधी-नेहरू परिवार के प्रति पूर्व की तरह वफादार बनी रहेगी लेकिन परिवार से बाहर के पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग जिस तरह उठी, उसी तरह वह शांत भी हो गई। यह सब पानी के बुलबुले जितना क्षणिक था।
कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता और यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके नेता भी इस राय के थे कि कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी-नेहरू परिवार से बाहर के व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए। राहुल गांधी ने जिस समय कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ा था, तब उन्होंने भी यही बात कही थी। उनकी इस राय का समर्थन उनकी बहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी किया था। हाल ही में देश के अखबारों में उनकी यह राय छपी भी थी लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने उस खबर को पुरानी बताकर कांग्रेस को विरोधी दलों की आलोचना के भंवर से बाहर निकाल लिया था लेकिन जिस तरह सोनिया गांधी को कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों ने पत्र लिखा, वह पत्र मीडिया में वायरल हुआ और उसपर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी उससे ऐसा हरगिज नहीं लगा कि यह परिवार कांग्रेस की कमान छोड़ने को तैयार भी है। राहुल गांधी ने कह दिया है कि भाजपा से मिलीभगत कर कुछ कांग्रेसियों ने इस पत्र को न केवल सोनिया गांधी को लिखा बल्कि उसे वायरल भी किया। उन्होंने पत्र लिखने के समय को लेकर भी ऐतराज किया। उनकी यह प्रतिक्रिया कुछ निष्ठावान कांग्रेसियों को नागवार गुजरी और उन्होंने इसका प्रबल प्रतिवाद भी किया। चार घंटे तक कांग्रेस की कलह सतह पर रही।
कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस के लिए कई मुकदमे लड़े और जीते भी लेकिन उनपर भाजपा से साठ-गांठ के आरोप लग रहे हैं। उन्होंने वर्षों कांग्रेस का साथ दिया, कभी भाजपा की प्रशंसा नहीं की फिर भी उनपर भाजपा से साठ-गांठ के आरोप लग रहे हैं। यह और बात है कि राहुल गांधी के फोन के बाद उन्होंने अपना ट्वीट हटा लिया कि राहुल गांधी ने मिलीभगत की बात नहीं कही। लेकिन उन्होंने अपने परिचय से भी कांग्रेस हटा लिया, इससे साफ है कि उनकी नाराजगी का ग्राफ क्या है? गुलाम नबी आजाद भी पहले तो भड़के। उन्होंने कहा कि मिलीभगत साबित हुई तो इस्तीफा दे दूंगा लेकिन बाद में उनके अपने कसबल भी ढीले पड़ गए। उन्होंने भी कमोबेश कपिल सिब्बल वाला राग ही आलापा कि राहुल गांधी ने भाजपा से मिलीभगत की बात नहीं की थी। जब राहुल गांधी ने कुछ कहा नहीं था तो इतने हाइपर होने की जरूरत क्या थी?
कांग्रेस अंतर्कलह से गुजर रही है, यह बात अब खुलकर सामने आ गई है। सच छिपाने से छिपता नहीं है। 48 सदस्यीय अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति में से 23 वरिष्ठों द्वारा गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष चुने जाने की मांग और 25 का गांधी परिवार के समर्थन में उतरना आखिर क्या सिद्ध करता है। जब सचिन समर्थकों ने राजस्थान की गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत की थी तब भी कांग्रेस ने भाजपा को दोषी ठहराया था, वह हमेशा यह साबित करने में जुटी रही कि उसके अपने दल में मतभेद नहीं है। लेकिन, अखिल भारतीय कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जिस तरह राहुल विरोधियों को कांग्रेस से बाहर करने की रणनीति बनाई गई, उसके अपने गहरे निहितार्थ हैं।
1998 के बाद यह दूसरा मौका है जब पार्टी में सोनिया गांधी को पद छोड़ने पर विवश होना पड़ा। समर्थकों के आग्रह पर भले ही वह 6 माह के लिए और अंतरिम अध्यक्ष बने रहने पर सहमत हो गई हों लेकिन इसका मतलब यह हरगिज नहीं कि कांग्रेस का संकट टल गया है। राहुल की रीति-नीति से नाराज कांग्रेसी जहां प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस की कमान संभालने की रणनीति बना रहे हैं, वहीं राहुल के भी अपने समर्थक हैं। दो खेमों में बंटी कांग्रेस के नेताओं को बाहर के तंज भी झेलने पड़ रहे हैं। ओबैसी ने गुलाम नबी आजाद से यहां तक पूछ लिया है कि 35 साल की कांग्रेस की गुलामी के बाद एक मुसलमान के रूप में उन्हें क्या मिला। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कांग्रेस में सच बोलने वालों को गद्दार कहा जाता है और चापलूसों को वफादार, जिस पार्टी में इस तरह की प्रवृत्ति बन गई हो, उसे बर्बाद होने से कौन बचा सकता है। सोनिया गांधी वैसे भी कभी नहीं चाहेंगी कि कांग्रेस की कमान किसी और के हाथ में जाए। वे पुत्र मोह में राहुल को फिर अध्यक्ष बनने के लिए मनाने पर जोर देंगी लेकिन उन्हें पता है कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस की विकास संभावना क्या है?
जिस तरह चिट्ठी लिखने वालों के खिलाफ कार्यवाही की मांग उठी और जिस तरह सोनिया गांधी ने डैमेज कंट्रोल किया, यह कहा कि तमाम अंतर्विरोधों के बाद भी कांग्रेस एक है और यही हमारी ताकत है। लेकिन जहां खेमेबाजी चरम पर हो, वहां कांग्रेस की एकता कबतक सुरक्षित रहेगी। इसलिए अब भी समय है, जब कांग्रेस को अपने शुभचिंतकों और चापलूसों को चिन्हित करना होगा। अन्यथा उसे इसी तरह के वातावरण से जूझना होगा। साथ ही किसी भी तरह की प्रतिक्रिया से पूर्व उसके वर्तमान और दूरगामी प्रभावों पर भी विचार करना होगा।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)
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