सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के दो जजों की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि जिसकी मृत्यु के समय कोई आय नहीं थी, उनके कानूनी उत्तराधिकारी भी भविष्य में आय में वृद्धि को जोड़कर भविष्य की संभावनाओं के हकदार होंगे. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि इस बात की उम्मीद नहीं है कि मृतक अगर किसी भी सेवा में नहीं था या उसकी नियमित आय रहने की संभावना नहीं है या फिर उसकी आय स्थिर रहेगी या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट के सामने आए इस मामले में 12 सितंबर 2012 को हुई दुर्घटना में बीई (इंजीनियरिंग) के तीसरे वर्ष में पढ़ रहे 21 वर्ष छात्र की मौत हो गई, वह दावेदार का बेटा था. हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि को 12,85,000 रुपये से घटाकर 6,10,000 रुपये कर दिया है. ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए 15,000 रुपये प्रति माह की बजाय मृतक की आय का आकलन 5,000 रुपये प्रति माह किया.
अपील में कहा गया कि मजदूरों/कुशल मजदूरों को भी 2012 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत पांच रुपये प्रति माह मिल रहे थे. कोर्ट ने कहा, शैक्षिक योग्यता और पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए और जैसा कि ऊपर देखा गया है, मृतक सिविल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में पढ़ रहा था, हमारी राय है कि मृतक की आय कम से कम 10,000 रुपये प्रति माह होनी चाहिए. विशेष रूप से इस बात पर विचार करते हुए कि साल 2012 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत भी मजदूरों/कुशल मजदूरों को पांच हजार रुपये प्रति माह मिल रहे थे.
एक मृतक के मामले में, जो दुर्घटना के समय कमाई नहीं कर रहा था, उसकी आय का निर्धारण परिस्थितियों को देखते हुए अनुमान के आधार पर किया जाना है. एक बार ऐसी राशि आ जाने के बाद वह भविष्य की आय में वृद्धि पर अतिरिक्त राशि का हकदार होगा. इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि जीवन यापन की लागत में वृद्धि ऐसे व्यक्ति को भी प्रभावित करेगी.
अदालत ने प्रणय सेठी के मामले में देखा था, मुआवजे की गणना करते समय आय के निर्धारण में भविष्य की संभावनाओं को शामिल करना होगा, ताकि यह कानून और मुआवजे के दायरे में आए.
एक मृतक के मामले में जिसने वार्षिक वेतन वृद्धि (annual increment) के अंतर्निर्मित अनुदान के साथ एक स्थायी नौकरी की थी. जो एक तय वेतन पर काम कर रहा था, उसे केवल भविष्य की संभावनाओं और कानूनी प्रतिनिधियों का लाभ मिलेगा. मृतक पढ़ाई कर रहा था, इसलिए मुआवजे के उद्देश्य से भविष्य की संभावनाओं के लाभ का हकदार नहीं हो सकता है.
अदालत ने यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा उठाए गए इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि कार्यवाही में दावेदारों ने विवादित फैसले और आदेश के तहत देय राशि को स्वीकार कर लिया. इसे पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में स्वीकार कर लिया है. उसके बाद दावेदारों को मुआवजा बढ़ाने की मांग करते हुए अपील को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए थी. अदालत ने माना कि दावेदार याचिका की तारीख से वसूली की तारीख तक सात प्रतिशत की दर से ब्याज के साथ कुल 15,82,000 रुपये का हकदार होगा.
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