नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को दो वकीलों और एक पत्रकार की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें त्रिपुरा (Tripura) में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ कथित तौर पर हुई हिंसा के तथ्य सोशल मीडिया के जरिए साझा करने के आरोप में UAPA के कठोर प्रावधानों के तहत दर्ज आपराधिक मामले रद्द करने का अनुरोध किया गया है.
त्रिपुरा में अल्पसंख्यक समुदाय के पूजा स्थलों के खिलाफ कथित हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं समेत 102 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. तथ्य खोज समिति का हिस्सा रहे नागरिक समाज के सदस्यों ने भी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी है कि ‘गैरकानूनी गतिविधियों’ की परिभाषा अस्पष्ट और व्यापक है. इसके अलावा, कानूनन आरोपी को जमानत मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है.
हाल ही में बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा की खबरों के बाद त्रिपुरा में आगजनी, लूटपाट और हिंसा की घटनाएं हुईं. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और हिमा कोहली की पीठ को अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सूचित किया कि तथ्य खोज समिति का हिस्सा रहे दो वकील और एक पत्रकार के खिलाफ उनकी सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर त्रिपुरा पुलिस ने UAPA के तहत कार्रवाई की है तथा प्राथमिकी दर्ज करके इन्हें दंड प्रक्रिया संहिता के तहत नोटिस जारी किये हैं.
पीठ ने शुरुआत में पूछा, ‘उच्च न्यायालय क्यों नहीं गए? आप उच्च न्यायालय के समक्ष गुहार लगाएं.’ हालांकि, बाद में पीठ ने प्रशांत भूषण की इस दलील के बाद याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करने के लिए सहमति जतायी कि प्राथमिकी रद्द करने के अनुरोध के अलावा इसमें UAPA के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है.
भूषण ने कहा, ‘कृपया इसे सूचीबद्ध करें क्योंकि इन लोगों पर तात्कालिक कार्रवाई का खतरा है.’ इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘मैं एक तारीख (सुनवाई के लिए) दूंगा.’ राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के बारे में कथित रूप से सूचना प्रसारित करने के लिए भारतीय दंड संहिता और UAPA प्रावधानों के तहत पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी में अधिवक्ता मुकेश और अंसारुल हक और पत्रकार श्याम मीरा सिंह पर आरोप लगाये गए हैं.
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