नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) बुधवार को ईडी (ED) और सीबीआई (CBI) निदेशकों (Directors) के कार्यकाल (Tenure) को 17 दिसंबर से पहले बढ़ाने वाले (Extending) दो अध्यादेशों (Ordinances) को चुनौती देने वाली याचिकाओं (Petitions) पर सुनवाई (To hear) के लिए तैयार हो गया है। एक वकील ने जल्द सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अध्यादेशों को चुनौती देने वाली याचिका का उल्लेख किया।
पीठ ने कहा कि वह मामले की सुनवाई करेगी और सभी समान याचिकाओं को एक साथ जोड़ने की योजना बना रही है और फिर इसे सुनवाई के लिए तय करेगी। अधिवक्ता ने शीर्ष अदालत की शीतकालीन अवकाश की शुरूआत से पहले इस पर सुनवाई करने का अनुरोध किया है, जो 17 दिसंबर से शुरू हो रहा है। बता दें केंद्र पहले ही ईडी प्रमुख का कार्यकाल बढ़ा चुका है।
25 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने दो अध्यादेशों के खिलाफ एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की, जो केंद्र सरकार को सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के प्रमुखों के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने की अनुमति देगी।
एडवोकेट एम.एल. शर्मा, व्यक्तिगत रूप से याचिका, मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया कि ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल एक अध्यादेश के तहत पावर का उपयोग करके बढ़ाया गया है। शर्मा को संक्षिप्त रूप से सुनने के बाद, पीठ ने कहा, “हम इसे सूचीबद्ध करेंगे।”
याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है, जो संसद के अवकाश के दौरान अध्यादेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति से संबंधित है।
14 नवंबर को, दो अध्यादेश (केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अध्यादेश और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) अध्यादेश) ने सीवीसी अधिनियम 2003 और डीएसपीई अधिनियम 1946 की धारा 25 और धारा 4बी में संशोधन किया।
याचिका में आरोप लगाया गया कि ये अध्यादेश संविधान के लिए ‘असंवैधानिक,मनमाना और अल्ट्रा-वायर्स’ हैं। याचिका में शीर्ष अदालत से इन अध्यादेशों को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि इन अध्यादेशों का उद्देश्य एक याचिका पर हाल के एक फैसले में शीर्ष अदालत के निर्देशों को दरकिनार करना है, जिसमें ईडी निदेशक के रूप में मिश्रा के 2018 के नियुक्ति आदेश में पूर्वव्यापी बदलाव को चुनौती दी गई थी, जिससे उनके कार्यकाल का विस्तार हुआ।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि सेवानिवृत्ति की आयु पर पहुंच चुके अधिकारियों के कार्यकाल का विस्तार दुर्लभ और असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए।
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