नई दिल्ली। केंद्र द्वारा पारित किये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को हुई हिंसा के खिलाफ जनहित याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच इसकी सुनवाई करेगी। गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में 27 जनवरी को दो याचिकाएं दाखिल की गईं। एक याचिका में जांच के लिए आयोग के गठन का अनुरोध किया गया है, जबकि दूसरी याचिका में मीडिया को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वह बिना सबूत के किसी किसान को ‘आतंकवादी’ नहीं करार दे।
केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के पक्ष में मंगलवार को हजारों की संख्या में किसानों ने ट्रैक्टर परेड निकाली थी, लेकिन कुछ ही देर में दिल्ली की सड़कों पर अराजकता फैल गई। कई जगह प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के अवरोधकों को तोड़ दिया। पुलिस के साथ भी उनकी झड़प हुई। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने वाहनों में तोड़ फोड़ की और लाल किले पर एक धार्मिक ध्वज लगा दिया था।
ध्वज के अपमान पर हो कार्रवाई- याचिकाअधिवक्ता और याचिकाकर्ता विशाल तिवारी द्वारा दाखिल याचिका में हिंसा और 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के लिए जिम्मेदार लोगों अथवा संगठनों के खिलाफ संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के वास्ते संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। दाखिल याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग गठित किया जाए जो इस मामले में साक्ष्यों को एकत्र करे तथा उन्हें रिकॉर्ड करे और समयबद्ध तरीके से रिपोर्ट न्यायालय में पेश करे। तीन सदस्यीय इस आयोग में उच्च न्यायालय के दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को शामिल करने का भी अनुरोध किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन दो माह से भी अधिक समय से चल रहा है और ट्रैक्टर परेड़ के दौरान इसने ‘हिंसक रूप’ ले लिया। इसमें कहा गया कि गणतंत्र दिवस पर पुलिस और किसानों के बीच हुई हिंसा पर पूरी दुनिया की नजरें गई हैं। याचिका में कहा गया, ‘मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि जब किसान आंदोलन दो माह से भी अधिक समय से शांतिपूर्वक चल रहा था तो कैसे यह हिंसक अभियान में तब्दील हो गया और इससे 26 जनवरी को हिंसा हुई। राष्ट्रीय सुरक्षा और जन हित में यह प्रश्न विचारयोग्य है कि अशांति फैलाने के लिए कौन जिम्मेदार है और कैसे और किसने किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को हिंसक अभियान में तब्दील कर दिया या किसने और कैसे ऐसे हालात पैदा कर दिए कि प्रदर्शन हिंसक हो गया।”
इसमें कहा गया कि, ‘दोनों ओर से आरोप लग रहे हैं इसलिए मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जानी चाहिए।’ एक अन्य याचिका वकील एम एल शर्मा ने दाखिल की है। इसमें दावा किया गया है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन के खिलाफ साजिश की गयी है और बिना किसी सबूत के किसानों को कथित तौर पर ‘आतंकवादी’ बताया गया है। शर्मा ने केंद्र और मीडिया को निर्देश जारी कर बिना किसी प्रमाण के झूठे आरोप लगाने और किसानों को आतंकवादी बताने से रोकने का अनुरोध किया है। इससे पहले दिन में, ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन’ ने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और अन्य न्यायाधीशों को एक पत्र लिखा। इसमें आग्रह किया गया कि सुरक्षा कारणों से दिल्ली के कई इलाकों में इंटरनेट सेवा में तकनीकी बाधा की वजह से वकीलों के डिजिटल तरीके से सुनवाई में हिस्सा नहीं ले पाने के कारण सूचीबद्ध मामलों में कोई प्रतिकूल आदेश नहीं दिया जाए।
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