नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री (Former Karnataka CM) बीएस येदियुरप्पा (B.S. Yediyurappa) के खिलाफ बेंगलुरु विकास प्राधिकरण (BDA) से संबंधित भ्रष्टाचार के एक मामले में (In a Corruption Case) लोकायुक्त पुलिस द्वारा दर्ज (Registered by Lokayukta Police) एफआईआर की जांच पर रोक लगा दी (Stopped Investigation of FIR) ।
येदियुरप्पा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सिद्धार्थ दवे ने न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दलील दी कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस तथ्य की अनदेखी की कि एफआईआर दर्ज करने का आदेश जारी करने से पहले पूर्व स्वीकृति प्राप्त करना अनिवार्य था। शिकायतकर्ता कार्यकर्ता टीजे अब्राहम का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत दर्ज शिकायतों से उत्पन्न मामलों में कानून में नवीनतम संशोधन के साथ पूर्व स्वीकृति आवश्यकताओं को समाप्त कर दिया गया था।
दलीलें सुनने के बाद, न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली भाजपा के वरिष्ठ नेता की याचिका पर अब्राहम को नोटिस जारी किया। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि वह मामले की जांच करेगी। इस महीने की शुरूआत में एक आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा कि मंजूरी की अस्वीकृति येदियुरप्पा के खिलाफ कार्यवाही के रास्ते में नहीं आएगी। उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया।
जुलाई 2021 में, एक विशेष अदालत ने अब्राहम की एक शिकायत पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत जांच का आदेश भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा 19 (1) के तहत वैध मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकता है। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि येदियुरप्पा और उनके परिवार के सदस्य और दो व्यापारियों सहित अन्य ने 2019-21 में अपने पद का गलत इस्तेमाल किया। अपने कार्यकाल के दौरान आवास बनाने का सरकारी ठेका देने के लिए 12 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी।
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