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    कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर बोला सुप्रीम कोर्ट, ‘सेक्स की इच्छा कंट्रोल करने की सलाह देना गलत’

  • January 05, 2024

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) के उस फैसले की कड़ी आलोचना की, जिसमें यह टिप्पणी की गई थी कि ‘किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और दो मिनट के सुख के लिए उसे खुद को समर्पित नहीं करना चाहिए।’ शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने कहा कि ‘न केवल हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां ‘समस्याग्रस्त’ है बल्कि फैसले में लागू कानूनी सिद्धांत भी सवालों के घेरे में है।’

    जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइंया की पीठ हाईकोर्ट के फैसले पर स्वत: संज्ञान लेकर शुरू की गई सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस ओका ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि निचली अदालत द्वारा आरोपी को दोषी ठहराने के फैसले को हाईकोर्ट द्वारा पलट दिए जाने के आधार संदिग्ध प्रतीत होते हैं, हालांकि उन्होंने कहा कि यह मुद्दा उसके समक्ष नहीं है।


    दूसरी ओर मामले की सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार ने पीठ को बताया कि उसने हाईकोर्ट के 18 अक्टूबर, 2023 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दाखिल की है। सरकार की ओर से अधिवक्ता हुजैफा अहमदी ने पीठ से कहा कि सरकार की ओर से दाखिल अपील अन्य पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई है।

    पीठ ने कहा कि स्वत: संज्ञान वाली रिट याचिका और राज्य सरकार द्वारा दायर अपील की सुनवाई साथ में की जाएगी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई निष्कर्षों को अदालत के रिकार्ड में रखा गया है, ये अवधारणाएं कहां से आई है, हम नहीं जानते। लेकिन हम इससे निपटना चाहते हैं। हमें आपकी सहायता की जरूरत है।’

    इसके साथ ही, पीठ ने रजिस्ट्री को स्वत: संज्ञान वाली रिट याचिका और राज्य सरकार द्वारा दाखिल विशेष अनुमति याचिका को मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी लेने के बाद 12 जनवरी को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

    कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिसंबर को स्वत: संज्ञान लेकर हाईकोर्ट के जज द्वारा की गई टिप्पणियों को अत्याधिक आपत्तिजनक, अनुचित, गैर-जरूरी और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ बताया था। पीठ ने कहा था कि ‘जजों को ऐसे मामलों में फैसला करते वक्त ‘उपदेश देने और व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने’ से बचना चाहिए। पीठ ने कहा था कि पहली नजर में हमारा मानना है कि जजों से अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने की अपेक्षा नहीं की जाती है।

    क्या था मामला
    हाईकोर्ट के दो जजों के पीठ ने उस व्यक्ति को बरी करते हुए युवा लड़कियों और लड़कों को यौन इच्छा पर नियंत्रण रखने की ‌सलाह दी थी, जिसे एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोप में दोषी ठहराया गया था। आरोपी और पीड़ित नाबालिग के बीच प्रेम संबंध था। हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम यानी पॉक्सो पर चिंता जताई थी, जिसमें किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन संबंधों को यौन शोषण के साथ जोड़ दिया गया है। फैसले में हाईकोर्ट ने 16 साल से अधिक उम्र के किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का सुझाव दिया था।

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