नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े मामलों में बीआरएस नेता के. कविता (BRS leader K. Kavitha) को दी गई जमानत के संबंध में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी (Chief Minister A Revanth Reddy) की टिप्पणियों पर गुरुवार को कड़ी आपत्ति जताई। रेड्डी ने कविता की जमानत के लिए भाजपा और बीआरएस के बीच कथित सौदेबाजी की ओर इशारा किया था। उनके इस बयान पर नाराजगी जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे बयानों से लोगों के मन में आशंकाएं पैदा हो सकती हैं।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने रेड्डी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा, ‘क्या आपने अखबार में पढ़ा कि उन्होंने क्या कहा? बस इतना पढ़िए, कि उन्होंने क्या कहा। एक जिम्मेदार मुख्यमंत्री का यह कैसा बयान है? इससे लोगों के मन में आशंकाएं पैदा हो सकती हैं। क्या एक मुख्यमंत्री को ऐसा बयान देना चाहिए? संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति इस तरह से बोल रहे हैं?’
पीठ ने कहा, ‘राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में उन्हें अदालत को क्यों घसीटना चाहिए? क्या हम राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा करके आदेश पारित करते हैं? हमें राजनीतिक नेताओं या किसी अन्य द्वारा हमारे फैसलों की आलोचना करने से कोई परेशानी नहीं होती। हम अपने विवेक और शपथ के अनुसार अपना कर्तव्य निभाते हैं।’
रेड्डी ने मंगलवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा था कि विधान परिषद सदस्य कविता को पांच महीने में जमानत मिलने पर संदेह है, जबकि आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को 15 महीने बाद जमानत मिली और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अब तक जमानत नहीं मिली है।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘यह सच है कि बीआरएस ने 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत के लिए काम किया। ऐसी भी चर्चा है कि कविता को बीआरएस और भाजपा के बीच समझौते के कारण जमानत मिली।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि संस्थाओं के प्रति परस्पर सम्मान रखना बुनियादी कर्तव्य है और एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘हम हमेशा कहते हैं कि हम विधायिका में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, तो उनसे भी यही अपेक्षा की जाती है। क्या हम राजनीतिक विचारों के आधार पर आदेश पारित करते हैं?’ पीठ में न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन भी शामिल हैं।
शीर्ष अदालत 2015 के ‘नकद के बदले वोट’ घोटाला मामले में मुकदमे को राज्य से भोपाल स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें रेड्डी एक आरोपी हैं। सुबह में शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह 2015 के ‘नकद के बदले वोट’ घोटाला मामले की सुनवाई के लिए विशेष अभियोजक नियुक्त करेगा।
दोपहर में जब मामले की सुनवाई हुई तो न्यायालय ने संभावित नामों पर चर्चा की जिनमें वकील सुरेंद्र राव और ई उमा महेश्वर राव के नाम शामिल थे। मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने रेड्डी के बयानों का हवाला दिया और कहा कि पीठ को पुलिस से कहना चाहिए कि वह नकद के बदले वोट मामले में अपनी जांच की प्रगति के बारे में सीधे अदालत को रिपोर्ट करे, न कि मुख्यमंत्री को। रेड्डी के पास गृह विभाग भी है।
पीठ ने टिप्पणी की, ‘आपने (रेड्डी) जो बयान दिया, उसका तरीका देखिए। एक मुख्यमंत्री द्वारा इस तरह के बयान!’ और रोहतगी से बयान को देखने को कहा।
रोहतगी ने रेड्डी की ओर से माफी मांगी और कहा, ‘मुझे अपनी गलती सुधारने दीजिए और मामले को सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दीजिए।’ नाराज दिख रही पीठ ने रोहतगी से कहा, ‘अगर आप उच्चतम न्यायालय का सम्मान नहीं करते हैं तो सुनवाई कहीं और करवा लीजिए।’ पीठ ने मामले को सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।’
सुनवाई की शुरुआत में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता एवं विधायक जी जगदीश रेड्डी और तीन अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी आर्यमा सुंदरम ने मुकदमे को स्थानांतरित किए जाने का अनुरोध करते हुए कहा कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री इस मामले पर सार्वजनिक रूप से बयान दे रहे हैं।
पीठ ने कहा, ‘केवल आशंका के आधार पर हम कैसे (याचिका पर) विचार कर सकते हैं… अगर हम ऐसी याचिकाओं पर विचार करेंगे तो यह अपने न्यायिक अधिकारियों पर विश्वास नहीं करने जैसा होगा।’ सुंदरम ने कहा कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री खुद गृह मंत्री हैं। उन्होंने कहा, ‘स्वाभाविक न्याय का नियम है कि किसी भी व्यक्ति को अपने मामले में स्वयं न्यायाधीश नहीं होना चाहिए।’
तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता के तौर पर रेवंत रेड्डी को 31 मई 2015 को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने गिरफ्तार किया था, जब विधान परिषद चुनाव में तेदेपा उम्मीदवार वेम नरेन्द्र रेड्डी का समर्थन करने के लिए मनोनीत विधायक एल्विस स्टीफेंसन को 50 लाख रुपये की रिश्वत दे रहे थे।
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