नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में (In Electoral Bond case) एसआईटी जांच की मांग करने वाली याचिकाओं (Petitions demanding SIT Investigation) को खारिज कर दिया (Rejected) । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बॉन्ड की खरीदी कॉरपोरेट्स और राजनीतिक दलों के बीच हुआ लेन-देन था, कोर्ट केवल इस आधार पर जांच के आदेश नहीं दे सकता।
फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि टैक्स असेसमेंट के मामलों की दोबारा जांच से अथॉरिटी के कामकाज पर भी असर पड़ेगा। संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस लेवल पर हस्तक्षेप करना गलत और समय से पहले होगा। कोर्ट एनजीओ कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) समेत 4 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। जिनमें दावा किया गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के नाम पर राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच स्पष्ट लेन-देन होता है।
फरवरी में, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था, जो राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग की अनुमति देती थी, और एसबीआई को तुरंत चुनावी बॉन्ड जारी करना बंद करने का आदेश दिया था। मार्च 2024 में इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा सामने आने के बाद यह याचिका लगाई गईं। इसमें दो मांगें रखी गई थीं। पहला- इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कॉरपोरेट्स और राजनीतिक दलों के बीच लेन-देन की जांच एसआईटी से कराई जाए। एसआईटी की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज करें।
दूसरी मांग थी कि आखिर घाटे में चल रहीं कंपनियों (शैल कंपनियां भी शामिल) ने पॉलिटिकल पार्टीज को कैसे फंडिंग की। अधिकारियों को निर्देश दिया जाए की पॉलिटिकल पार्टियों से इलेक्टोरल बॉन्ड में मिली राशि वसूल करें, क्योंकि यह अपराध से जरिए कमाई गई राशि है।
याचिकाकर्ताओं का दावा था कि कंपनियों ने फायदे के लिए पॉलिटिकल पार्टियों को बॉन्ड के जरिए फंडिंग की। इसमें सरकारी काम के ठेके, लाइसेंस पाने, जांच एजेंसियों (सीबीआई, आईटी, ईडी) की जांच से बचने और पॉलिसी में बदलाव शामिल है। याचिका में ये आरोप भी थे कि घटिया दवाईयां बनाने वाली कई फार्मा कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का उल्लंघन है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved