नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को एलआईसी के आईपीओ (LIC IPO) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया (Refuses to Stay) । न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा (Justice D.Y. Chandrachud said), “हमारा विचार है कि अंतरिम राहत का कोई मामला नहीं बनता है (No Case for Interim Relief is Made Out) । कोई अंतरिम राहत नहीं दी जाएगी (No Interim Relief will be Given) ।”
शीर्ष अदालत ने एलआईसी आईपीओ प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। पॉलिसी धारकों के एक समूह ने एलआईसी अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। जस्टिस सूर्यकांत और पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने कहा, “आईपीओ के मामलों में, अदालत अंतरिम राहत देने में अनिच्छुक होगी। यह निवेश के बारे में है।”
एक याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि एलआईसी अधिनियम में संशोधन, भाग लेने वाले पॉलिसीधारकों के हितों को गंभीरता से प्रभावित करता है और संशोधन धन विधेयक के माध्यम से नहीं किए जाने चाहिए थे। एक वकील ने तर्क दिया कि ‘एलआईसी का कानूनी चरित्र क्या है’ और कहा कि यह एक संयुक्त स्टॉक कंपनी में परिवर्तित एक पारस्परिक लाभ समाज है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि एलआईसी अधिनियम की प्रक्रिया इस आधार पर थी कि यह एक धन विधेयक था। पीठ ने कहा कि उठाया गया मुद्दा धन विधेयक के रूप में कानून के अधिनियमन के संबंध में है और यह पहले से ही शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित है, इसलिए मामले को लंबित मामले के साथ टैग किया जाएगा। इस मामले में शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी किया है।
केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि धन विधेयक 15 महीने पहले पारित किया गया था और याचिकाकर्ता इतनी देर से अदालत नहीं आ सकते। याचिकाकर्ताओं में से एक ने शुरू में वित्त अधिनियम, 2021 और जीवन बीमा निगम (एलआईसी) अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय का रुख किया था। याचिका में तर्क दिया गया कि अधिनियमों को संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था, भले ही संशोधन धन विधेयक की श्रेणी में नहीं आता है।
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