इन्दौर, राजेश ज्वेल। कनाडिय़ा रोड स्थित चर्चित सीलिंग की 38 एकड़ जमीन पर अभी शासन, प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट से स्टे के रूप में बड़ी राहत मिली है। सिविल कोर्ट में मंजूर की गई वर्षों पुरानी डिक्री को चुनौती देने वाली यह पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर करते हुए यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं और अभी 20 अगस्त को इस पर अगली सुनवाई होना है। 1 हजार करोड़ से ज्यादा कीमत की इन जमीनों को तीन साल पहले प्रशासन ने मुक्त करवाया था और मौके पर बने प्रेमबंधन और रिवाज मैरिज गार्डनों के साथ अन्य निर्माणों को तोड़ा और अतिक्रमण भी हटाए। मगर उसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हारने के बाद नामांतरण करना पड़ा, मगर अब सुप्रीम कोर्ट से मिले स्टे के बाद कलेक्टर ने बंटवारे सहित अन्य प्रक्रिया रोक दी है। कुछ जमीनी जादूगरों ने अदालती आदेशों के बाद इस जमीन का सौदा भी कर लिया और शासन, प्रशासन पर लगातार दबाव भी बनाते रहे है। मगर फिलहाल प्रशासन का भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में अगर चल रहे सिविल कोर्ट के प्रकरण में अगर फैसला होता है तो यह बेशकीमती जमीन फिर से सरकारी या सीलिंग की राजस्व रिकार्ड में दर्ज हो जाएगी।
तत्कालीन कलेक्टर मनीषसिंह ने कनाडिय़ा रोड स्थित खजराना सर्वे नंबर 143,1180, 1183, 1196, 1200/1, 1203, 1205, 1207, 1208, 1213 से लेकर 1219/4 की शहरी सीलिंग की जमीन आपरेशन भूमाफिया के तहत मुक्त कराई थी। सितम्बर 2021 एक बड़ी रिमूवल कार्रवाई के चलते प्रेमबंधन और रिवाज मैरिज गार्डन को जमींदोज करते हुए कनाडिय़ा रोड के दोनों तरफ मौजूद 15 हैक्टेयर यानी 38 एकड़ जमीन मुक्त कराई गई और राजस्व रिकार्ड में भी निजी के बजाए सरकारी सीलिंग दर्ज की गई। नबी बख्श, सोहराब पटेल सहित अन्य के कब्जे में यह जमीन रही। दरअसल सालों पहले सिविल कोर्ट से डिक्री हासिल कर ली थी, जिसके चलते शासन प्रशासन लिमिटेशन यानी देरी से लगाए केस के आधार पर अदालती लड़ाई हारता रहा।
यहां तक कि हटाए गए अवैध निर्माणों के बाद हाईकोर्ट में रिव्यू पिटीशन भी प्रशासन ने दायर की, जिसमें पहले तो स्टे मिला और बाद में हाईकोर्ट ने प्रशासन की अपील को खारिज कर दिया। उसके बाद पूर्व कलेक्टर डॉ. इलैया राजा टी. ने भी शासन के विधि और विधायी कार्य विभाग से सुप्रीम कोर्ट में विशेष पुनरीक्षण याचिका पेश करने की अनुमति मांगी और अनुमति मिलने पर यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में पेश भी की। मगर सूत्रों के मुताबिक वह खारिज हो गई, लेकिन प्रशासन ने सिविल कोर्ट में चल रहे पुराने प्रकरण की भी विशेष पुनरीक्षण याचिका शासन अनुमति से सुप्रीम कोर्ट में दायर की, जिस पर अभी सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति के आदेश दे दिए। कलेक्टर आशीषसिंह ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि इसके चलते फिलहाल बंटवारे सहित अन्य प्रक्रिया उक्त जमीन के प्रकरणों में रोक दी गई है।
हिब्बानामा के आधार पर नबी बख्श परिवार के पास 44 साल रही जमीन
मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिब्बानामा जिसमें मुंहजबानी बंटवारा होता है, के आधार पर 44 साल से अधिक समय तक नबी बख्श और उनके परिजनों के नाम यह बेशकीमती जमीन रही। पूर्व कलेक्टर मनीषसिंह ने भी प्रयास किए कि यह जमीन निजी हाथों में नहीं जाए और यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट में लगाई एसएलपी पर भी उन्होंने निगाह रखी और इससे जुड़े तथ्य भी उपलब्ध कराए, जबकि कुछ जमीनी जादूगरों ने अदालती फैसले के बाद इस जमीन का सौदा नबी बख्श परिवार से कर लिया। चूंकि नामांतरण भी हाईकोर्ट आदेश से हो गया था, मगर अब सुप्रीम कोर्ट से मिले स्टे के चलते प्रशासन ने अन्य कार्रवाई रोक दी है। अगर सिविल कोर्ट का प्रकरण जिंदा हुआ और सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली तो एक हजार करोड़ से अधिक की बेशकीमती जमीन सरकार के पास बच जाएगी।
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