नई दिल्ली (New Delhi) । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को देशभर के जिला अदालतों (district courts) से रिटायर्ड न्यायिक अधिकारियों (जजों) को कम पेंशन (pension) मिलने पर गंभीर चिंता व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने कहाकि मौजूदा पेंशन नीतियों के चलते सालों तक सेवा करने के बाद सेवानिवृत जजों को महज 19 से 20 हजार रुपये पेंशन मिलती है, ऐसे में वे कैसे अपनी आजीविका चलाते होंगे। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से उन न्यायिक अधिकारियों के लिए न्यायसंगत समाधान खोजने का आग्रह किया, जिन्होंने लोगों को न्याय देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
बेंच ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कम पेंशन मिलने की वजह से वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे रिटायर्ड जजों के न्यायसंगत समाधान लाने में अदालत की सहायता करने का आग्रह किया। मुख्य न्यायाधीश ने वेंकटरमणी ने कहा कि हम सिर्फ समाधान चाहते हैं, आप जानते हैं कि जिला अदालतों से रिटायर होने वाले न्यायिक अधिकारी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। इस पर अटार्नी जनरल वेंटकरमणी ने कहा कि वह निश्चित रूप से इस मुद्दे पर विचार करेंगे। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कुछ उच्च न्यायालयों के जजों ने भी वेतन नहीं मिलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है क्योंकि जिला अदालत से उच्च न्यायालय में पदोन्नति होने के बाद उन्हें नए जीपीएफ खाते आवंटित नहीं किए गए थे।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सेवानिवृत होने के बाद जिला अदालतों के जजों को गंभीर वित्तीय स्थितियों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें 20 से 30 साल की सेवा के बाद भी बहुत कम पेंशन मिल रहा है। उन्होंने कहा कि वर्षों की समर्पित सेवा के बाद 19 से 20 हजार रुपये का पेंशन काफी कम है और अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कैसे अपना खर्च चलाते होंगे। शीर्ष अदालत ने कहा कि सेवानिवृत जजों के उम्र का जिक्र करते हुए कहा कि वे शारीरिक रूप से वकालत करने के लिए हाई कोर्ट जाने में असमर्थ हैं। शीर्ष अदालत ने अखिल भारतीय जज एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (एसएनजेपीसी) की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए जजों के वेतन और सेवा शर्तों से संबंधित निर्देश जारी किए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले माह सभी राज्यों को 29 फरवरी तक एसएनजेपीसी की सिफारिश के तहत बकाया चुकाने का निर्देश दिया था और उच्च न्यायालयों से कार्यान्वयन की निगरानी के लिए समितियां गठित करने को कहा था। इस मामले में नियुक्त किए गए न्याय मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने पीठ को बताया कि कुछ राज्यों की ओर से हलफनामा दाखिल किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्यों का कहना है कि इस आदेश के पालन करने से भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा। उन्होंने पीठ से कहा कि मामले में केंद्र का कहना है कि यह एक बड़े राजकोषीय मसला है, हमें पेंशन का बोझ कम करना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को होगी।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved