नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला की तरफ से अपने पति के रिश्तेदारों के खिलाफ दायर दहेज प्रताड़ना की शिकायत को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इन रिश्तेदारों को बेवजह इस मामले में घसीटा गया है और उनके खिलाफ मुकदमा चलाना अनावश्यक और परेशान करने वाला होगा। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पति के रिश्तेदारों को दहेज मामलों में बिना किसी ठोस आरोप के शामिल करने की प्रवृत्ति पहले भी सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गलत ठहराई जा चुकी है।
कोर्ट ने बताया कि पति-पत्नी की शादी जून 2010 में हुई थी और वे कुछ समय कोटा में साथ रहे। लेकिन अक्तूबर 2010 में महिला अपने मायके चली गई और फिर कभी ससुराल नहीं लौटी। इसके बाद पति ने तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दी थी और मई 2012 में कोर्ट ने एकतरफा तलाक दे दिया क्योंकि महिला कोर्ट में पेश नहीं हुई। तलाक के करीब तीन साल बाद, अगस्त 2015 में महिला ने एक मजिस्ट्रेट कोर्ट में अर्जी देकर आरोप लगाया कि उसके पति के पांच रिश्तेदार उसके घर आए और दहेज की मांग करते हुए उसे धमकाया और प्रताड़ित किया।
महिला की अर्जी को एक आपराधिक शिकायत मानते हुए मजिस्ट्रेट ने उन रिश्तेदारों को कोर्ट में पेश होने का समन जारी कर दिया। इसके खिलाफ उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल को दिए अपने फैसले में साफ कहा कि जिन रिश्तेदारों को महिला ने आरोपी बनाया है, उनके खिलाफ शादीशुदा जीवन के दौरान किसी प्रकार की प्रताड़ना का कोई खास आरोप नहीं है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब मई 2012 में तलाक हो चुका था, तो अगस्त 2015 में पति के रिश्तेदार महिला से मिलने क्यों आते? कोर्ट ने कहा कि अगर मान भी लें कि ऐसा कोई वाकया हुआ, तो भी उस समय पति-पत्नी का रिश्ता खत्म हो चुका था। ऐसे में पति के रिश्तेदारों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा विवाहिता महिला को प्रताड़ित करना) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 (दहेज मांगना) के तहत मामला नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि ऐसे मामलों में बिना किसी ठोस आधार के पति के परिवार को घसीटना न्याय का दुरुपयोग है। इससे केवल परिवार के सदस्यों को मानसिक पीड़ा और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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