अहमदाबाद । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गर्भवती बलात्कार पीड़िता के मामले में (In Case of Pregnant Rape Victim) गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) की आलोचना की (Criticized) । सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार की विशेष बैठक में गुजरात हाईकोर्ट के उस मामले को संभालने पर आपत्ति जताई, जहां 26 सप्ताह की गर्भवती बलात्कार पीड़िता ने अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की थी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान गुजरात हाईकोर्ट की आलोचना की।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा शुरू में मामले को स्थगित करने से बहुत समय बर्बाद हो गया था। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने स्थिति की गंभीरता पर जोर देते हुए मामले को 23 अगस्त तक के लिए टालने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में तात्कालिकता की भावना होनी चाहिए और इन मामलों में उदासीन रवैया नहीं रखना चाहिए।
इस भावना को सुप्रीम कोर्ट के औपचारिक आदेश में प्रतिध्वनि मिली, जिसने मामले को सूचीबद्ध करने में अस्पष्टीकृत देरी को उजागर किया। अजीब बात है कि हाईकोर्ट ने मामले को 12 दिन बाद (मेडिकल रिपोर्ट के बाद) 23 अगस्त को सूचीबद्ध किया है। इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि हर दिन देरी महत्वपूर्ण और बहुत महत्वपूर्ण थी।
जब याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया तो 26 सप्ताह की गर्भवती होने के बावजूद गर्भावस्था को समाप्त करने के याचिकाकर्ता के अनुरोध पर ध्यान देते हुए आदेश जारी रखा गया। इसलिए, 8 अगस्त से अगली लिस्टिंग तिथि तक का बहुमूल्य समय नष्ट हो गया।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से प्रतिक्रिया मांगी और बलात्कार पीड़िता की नए सिरे से मेडिकल जांच करने को कहा। मामले की आगे की सुनवाई 21 अगस्त को होनी थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक मूल्यांकन के लिए तत्काल चिकित्सा मूल्यांकन की वकालत की थी। चूंकि बहुमूल्य समय नष्ट हो गया है, इसलिए भरूच मेडिकल बोर्ड, से नई रिपोर्ट मांगी जा सकती है।
हम याचिकाकर्ता को एक बार फिर से जांच के लिए केएमसीआरआई अस्पताल में उपस्थित होने का निर्देश देते हैं और लेटेस्ट स्थिति रिपोर्ट रविवार शाम 6 बजे तक इस अदालत के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है। इसे सोमवार (21 अगस्त) को इस अदालत के समक्ष रखा जाएगा।
17 अगस्त को जारी गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस मामले की ओर आकर्षित किया गया था। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था, जिसके बाद वकील विशाल अरुण मिश्रा ने अपील दायर की।
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