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सुप्रीम कोर्ट ने किया बड़ा बदलाव, अब समर वेकेशन कहलाएगा आंशिक कार्यदिवस

November 08, 2024

नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने समर वेकेशन (Summer Vacation) का नाम बदल दिया है। अब इसे पार्शियल वर्किंग डे (Partial Working Day) या ‘आंशिक न्यायालय कार्य दिवस’ के तौर पर जाना जाएगा। खास बात है कि उच्चतम न्यायालय की तरफ से ऐसे समय पर की गई है, जब कई वर्गों ने अदालत की लंबी छुट्टियों पर सवाल उठाए थे। हाल में प्रकाशित 2025 के उच्चतम न्यायालय कैलेंडर के अनुसार, आंशिक न्यायालय कार्य दिवस 26 मई 2025 से शुरू होगा और 14 जुलाई 2025 को समाप्त होगा।

यह घटनाक्रम उच्चतम न्यायालय नियमें, 2013 में एक संशोधन का हिस्सा है जो अब उच्चतम न्यायालय (दूसरा संशोधन) नियमें, 2024 बन गया है और इसे पांच नवंबर को अधिसूचित किया गया।

अधिसूचना में कहा गया है, ‘आंशिक न्यायालय कार्य दिवस की अवधि और न्यायालय एवं इसके कार्यालयों के लिए अवकाश के दिनों की संख्या ऐसी होगी, जो प्रधान न्यायाधीश द्वारा निर्धारित की जा सके और यह रविवार को छोड़कर 95 दिन से अधिक नहीं हो तथा इसे आधिकारिक गजट में प्रकाशित किया जाएगा।’


इसमें कहा गया है कि प्रधान न्यायाधीश आंशिक कार्य दिवसों या छुट्टियों के दौरान, नोटिस के बाद सभी याचिकाओं, अत्यावश्यक प्रकृति के नियमित मामलों या ऐसे अन्य मामलों की सुनवाई के लिए एक या एक से अधिक न्यायाधीशों को नियुक्त कर सकते हैं, ‘जैसा भी प्रधान न्यायाधीश निर्देश दें।’

मौजूदा प्रणाली के तहत उच्चतम न्यायालय में हर साल ग्रीष्म और शीतकालीन अवकाश होता है। हालांकि, शीर्ष अदालत इस अवधि के दौरान पूर्ण रूप से बंद नहीं होती। गर्मियों के दौरान, महत्वपूर्ण और तत्काल महत्व के विषयों की सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश द्वारा ‘‘अवकाशकालीन पीठ’’ गठित की जाती है। उल्लेखनीय है कि ‘‘अवकाशकालीन न्यायाधीश’’ शब्दावली की जगह नव-संशोधित नियमों में ‘‘न्यायाधीश’’ शब्द कर दिया गया है।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि न्यायाधीश इस अवकाश के दौरान भी अपना काम करेंगे। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था, ‘‘छुट्टियों के दौरान न्यायाधीश इधर-उधर नहीं घूमते या मौज-मस्ती नहीं करते। वे अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं, यहां तक कि सप्ताहांत में भी, अक्सर समारोहों में भाग लेते हैं, उच्च न्यायालयों का दौरा करते हैं, या कानूनी सहायता कार्य में लगे रहते हैं।’’

मई में, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा था कि लोग लंबे अवकाश को लेकर शीर्ष अदालत की आलोचना करते हैं लेकिन वे नहीं समझते कि न्यायाधीशों की सप्ताहांत पर भी छुट्टी नहीं होती।

शीर्ष अदालत के विचार से सहमति जताते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी समान विचार साझा किए हैं। मेहता ने कहा, ‘‘वे सभी लोग जो कहते हैं कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में लंबा अवकाश होता है, नहीं जानते कि न्यायाधीश कैसे काम करते हैं।’’ मेहता ने यह बात उस वक्त कही थी जब शीर्ष अदालत पश्चिम बंगाल सरकार की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार की मंजूरी लिए बगैर सीबीआई अपनी जांच में आगे बढ़ गई है।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा था, ‘‘जो लोग आलोचना कर रहे हैं, नहीं समझते कि शनिवार और रविवार को हमारी छुट्टी नहीं रहती। अन्य कार्य, सम्मेलन होते हैं।’’ उच्चतम न्यायालय में लंबे ग्रीष्म अवकाश की परंपरा औपनिवेशिक काल में शुरू हुई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान, जो न्यायाधीश भीषण गर्मी को सहन करने में असमर्थ होते थे, वे वापस इंग्लैंड या पहाड़ों पर चले जाते थे और मानसून के दौरान लौटते थे।

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