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    पराली जलाने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, ऐसे किसानों को MSP दायरे से बाहर करने का दिया सुझाव

  • November 22, 2023

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । दिल्ली एनसीआर (Delhi NCR) में वायु प्रदूषण (air pollution) के लिए जिम्मेदार पराली जलाने (stubble burning) की घटनाएं नहीं रुकने पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को कड़ी नाराजगी जताई। शीर्ष अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए पंजाब व अन्य राज्यों में पराली जलाने वाले किसानों को एमएसपी के बुनियादी ढांचे के दायरे से बाहर करने का सुझाव दिया है। जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशू धूलिया की पीठ दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण कम करने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

    जस्टिस कौल ने कहा कि ‘मेरे विचार से पराली जलाने ‌वाले किसानों से फसल एमएसपी के तहत कोई भी खरीदारी क्यों की जानी चाहिए, भले ही इसका लोगों, बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है? जस्टिस कौल ने यह भी सुझाव दिया कि जिन लोगों की पहचान पराली जलाने वालों के रूप में हुई है, उन्हें इस एमएसपी के अपने उत्पाद बेचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ कठोर कदम उठाने की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने यह साफ कर दिया कि यह टिप्पणी किसी एक राज्य या दूसरे राज्य या केंद्र के बारे में नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‌केंद्र और राज्य को अपनी राजनीति को किनारे करके इस समस्या के समाधान के लिए एकसाथ मिलकर काम करने को कहा है।


    किसानों खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा
    जस्टिस धूलिया ने पराली जलाने वाले किसानों को धान की फसल उगाने पर रोक लगाने का भी सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि यह एक सुझाव है क्योंकि एमएसपी नीति खत्म नहीं की जा सकती। यह एक संवेदनशील मुद्दा है। जस्टिस धूलिया ने कहा कि ऐसा लगता है कि किसानों को खलनायक के तौर पर पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पराली जलाने के लिए किसानों के पास कोई मजबूरियां भी रही होंगी। उन्होंने आगे कहा कि पराली जलाने के लिए उनके पास कुछ कारण होंगे जिस पर विचार करने की जरूरत है। अटॉर्नी-जनरल आर. वेंकटरमणी ने भी जस्टिस धूलिया के इस बात से सहमति जताते हुए कहा कि एमएसपी नीति एक जटिल मुद्दा है। इस पर शीर्ष अदालत ने साफ किया कि वह केवल सुझाव दे रही है। अदालत ने कहा कि इस पर वास्तविक नीतिगत निर्णय सरकार के विवेक पर छोड़ दिया गया है।

    समय-सीमा तय करने का आदेश दें : महाधिवक्ता
    मामले की सुनवाई शुरू होने पर पंजाब सरकार के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने शीर्ष अदालत से इस समस्या के समाधान के लिए कार्रवाई करने को समय-सीमा तय करने का आदेश देने का आग्रह किया, ताकि अगले सीजन की शुरुआत से घटना को रोका जा सके। सिंह ने पंजाब सरकार द्वारा राज्य में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी।

    पंजाब सरकार ने कहा कि ‘हमने पराली जलाने वाले किसानों से पर्यावरणीय हर्जाने के तौर पर लगभग 2 करोड़ रुपये वसूले हैं। इसके अलावा पंजाब सरकार ने 618 लाल प्रविष्टियां बनाई हैं जो किसानों को उनकी जमाबंदी में लाभ लेने से रोकती हैं। साथ ही, पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ लगभग 1000 एफआईआर दर्ज की गई हैं। पंजाब में छह जिले पूरी तरह से पराली की आग मुक्त हो गई है। पंजाब सरकार ने कहा कि सड़कों पर हुए प्रदर्शन कारण हम कानून व्यवस्था की स्थिति से निपट रहे हैं।

    धान के बजाए वैकल्पिक फसलों पर जोर दें : शीर्ष कोर्ट
    सुप्रीम कोर्ट ने ‌पंजाब में भूजल के तेजी से गिरते स्तर पर गंभीर चिंता जताई। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ‘पंजाब में जमीन धीरे-धीरे सूख रही है क्योंकि भूजल स्तर तेजी से कम हो रहा है।’ जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि किसानों को भी धान की फसल उगाने के परिणामों को समझना होगा या उन्हें समझाया जाना चाहिए। जस्टिस कौल ने कहा कि ‘यह कैसे होगा, इसका क्या गणित है, हमें नहीं पता क्योंकि हम विशेषज्ञ नहीं हैं। उन्होंने अटार्नी जनरल से कहा कि इसकी जगह किसी वैकल्पिक फसल को उगाने को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

    धान उगता रहेगा, जमीन सूखती रहेगी
    आप यह नहीं कह सकते कि धान उगता रहेगा, जमीन सूखती रहेगी और वहां पानी नहीं बचेगा क्योंकि एमएसपी का पहलू जटिल है क्योंकि सरकार लोगों के कुछ समूहों को नाराज नहीं करना चाहती। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार, इस राजनीति को भूलकर धान की खेती कैसे रोकी जाए, इस पर मिलकर कार्य करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि आरोप प्रत्यारोप का खेल चलता रहा तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। इस पर न्यायमित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने शीर्ष अदालत से कहा कि ‘कुछ भी जटिल नहीं है, यदि समुचित कदम नहीं उठाया गया तो दिल्ली को नुकसान होता रहेगा।

    भूमि जोत के आकार में असमानता
    सुप्रीम कोर्ट ने भूमि जोत के आकार में असमानता की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि बड़े किसानों को मशीनीकृत प्रक्रिया के माध्यम से पराली बेचकर लाभ हुआ, जबकि छोटे किसानों को बेलिंग मशीन खरीदने के लिए प्रारंभिक पूंजी निवेश करना मुश्किल हो गया। इस बारे में न्याय मित्र अपराजिता सिंह ने सवाल किया कि क्या पंजाब सरकार ने कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित किए हैं? इस पर पंजाब सरकार के महाधिवक्ता ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों को 80 फीसदी की सब्सिडी पर उपकरण मुहैया कराती है। 20 प्रतिशत भुगतान के अलावा, किसान को जनशक्ति और डीजल सहित परिचालन लागत वहन करना भी मुश्किल लगता है।

    मुफ्त मशीनरी और पराली की गांठे लेने का सुझाव
    पीठ ने छोटे किसानों को पूरी तरह से मुफ्त में मशीनरी देने, उनसे पराली की गांठें लेने और फिर उन्हें बेचने का सुझाव दिया। साथ ही कहा कि यदि बड़े किसान ऐसा कर सकते हैं, तो मुझे यकीन है कि राज्य सरकार भी कर सकती है। पराली का उपयोग करके और उत्पाद बेचकर, आप मशीनों में किया भुगतान वसूल सकते हैं।

    हरियाणा सरकार से प्रेरणा ले पंजाब
    पंजाब सरकार के महाधिवक्ता ने कहा कि धान की पुआल के लिए रिटर्न, जो नीतिगत रूप से ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है, न्यूनतम है, ऐसे में केंद्रीय सब्सिडी की आवश्यकता होगी। इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि ‘मुझे इस बारे में कुछ जानकारी है। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों के सामने एकमात्र समस्या मशीनरी और वित्तीय सहायता देने में असमर्थता है। इस पर कोर्ट ने पंजाब को हरियाणा सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाने के प्रयासों से प्रेरणा लेने को कहा।

    कहीं भी खुले में कूड़ा न जलाया जाए : शीर्ष कोर्ट
    सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश में खुले में कचरा जलाए जाने पर भी कड़ी नाराजगी जाहिर की। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में जहां तक प्रदूषण का सवाल है तो कोर्ट को बताया गया है कि राजधानी के बाहरी इलाकों और उत्तर प्रदेश में खुले में कूड़ा जलाया जाता है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली व उत्तर प्रदेश सरकार सहित सभी सक्षम प्राधिकार को खुले में कचरा जलाने पर तत्काल रोक लगाने का आदेश देते हुए रिपोर्ट पेश करने को कहा। जस्टिस कौल ने कहा कि कहीं भी खुले में कूड़ा नहीं जलाया जाए। साथ ही मामले की सुनवाई 7 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।

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