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Supreme Court: समलैंगिक विवाह पर कल पांच जजों की पीठ करेगी सुनवाई

January 08, 2025

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पांच जजों की पीठ (Bench of five judges) गुरुवार को समलैंगिक विवाह (Gay marriage) को कानूनी मंजूरी (Legal approval) देने से इनकार करने वाले अक्तूबर 2023 के अपने फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ इस मामले से संबंधित 13 याचिकाओं पर अपने चैंबर में विचार करेंगी। नियम के अनुसार पुनर्विचार याचिकाओं पर जज चैंबर में विचार करते हैं।


शीर्ष अदालत ने पुनर्विचार याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। 10 जुलाई, 2024 को न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग करने के बाद नई पीठ का गठन किया गया था। विशेष रूप से, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा पांच न्यायाधीशों वाली मूल संविधान पीठ के एकमात्र सदस्य हैं, जिन्होंने इस पूर्व में फैसला सुनाया था।

समलैंगिक विवाह और नागरिक संघों की कानूनी मान्यता से संबंधित महत्वपूर्ण मामले की समीक्षा प्रक्रिया जुलाई 2024 में अस्थायी रूप से रुक गई, जब न्यायमूर्ति खन्ना ने इस मामले से खुद को अलग कर लिया। पहले की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस खन्ना, कोहली, नागरत्ना और नरसिम्हा शामिल थे, ने 17 अक्टूबर 2023 के फैसले की समीक्षा करने का निर्णय लिया था। इसमें समलैंगिक विवाह और नागरिक संघों को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था और यह मामला संसद तथा राज्य की विधानसभाओं पर छोड़ दिया गया था।

न्यायमूर्ति खन्ना के हटने के बाद पीठ में आवश्यक कोरम की कमी हो गई। हालांकि न्यायमूर्ति खन्ना ने नवंबर 2024 में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) का पद संभाला। उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता में पीठ का पुनर्गठन किया है।

इस मामले के पिछले उल्लेख के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल और अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि याचिकाओं में राष्ट्रीय महत्व और सामाजिक परिवर्तन से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल उठाए गए हैं। उनका यह मानना था कि यह मामले चैंबर सुनवाई के सामान्य मानदंड से बाहर हैं और इन पर व्यापक सार्वजनिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

17 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 बहुमत से समलैंगिक विवाह और नागरिक संघों को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था। इस मुद्दे को विधायी क्षेत्राधिकार में डाला था। तीन जजों का का कहना था कि समलैंगिक जोड़ों को विवाह करने या नागरिक संघों में प्रवेश करने का अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित नहीं है। हालांकि, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल ने असहमति जताई थी। उन्होंने समलैंगिक व्यक्तियों के संघ बनाने और बच्चों को गोद लेने के संवैधानिक अधिकारों पर जोर दिया। उन्होंने वर्तमान कानूनी ढांचे में गैर-विषमलैंगिक जोड़ों को बाहर रखने पर खेद व्यक्त किया और यह तर्क दिया कि राज्य का कर्तव्य है कि वह LGBTQIA+ अधिकारों की रक्षा के लिए सक्षम कानून बनाए।

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