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    तालिबान से सांठगांठ: भारत में अस्थिरता पैदा करने के लिए आतंकियों का सहारा, पर क्या अपनी ही लगाई आग में जलेगा पाकिस्तान

  • October 20, 2021

    नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सुरक्षाबलों का ऑपरेशन लगातार जारी है। शोपियां में बुधवार को सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली है। शोपियां मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने दो आतंकियों मार गिराया है। सुरक्षाबलों ने पूरे इलाके की घेराबंदी कर रखी है। इस बीच कनाडा के एक थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्यूरिटी के विशेषज्ञों ने कहा है कि दक्षिण एशिया में भारत के बढ़ते प्रभाव से घबराकर पाकिस्तान तालिबान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत कर रहा है।

    मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक थिंक टैंक ने कहा है इस साल 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर तालिबान का राज होने से आतंकवादी संगठनों का मनोबल ऊंचाई पर है और पाकिस्तान उनके साथ और नजदीकियां बढ़ा रहा है, जिससे आतंकी गतिविधियां और हिंसा और बढ़ सकती हैं।

    आईएफएफआरएएस के अनुसार, मानवाधिकारों की वकालत करने वाले एक समूह, ह्यूमन राइट्स वॉच का मानना है कि पाकिस्तानी सेना और नागरिक समाजों ने दक्षिण एशिया में भारत के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए तस्करी और आतंकी प्रशिक्षण के लिए तालिबान के साथ अपने संबंधों को तराश रहा है।


    पाकिस्तान का “दोहरा खेल” “संदिग्ध
    थिंक टैंक ने कहा है कि पाकिस्तान का “दोहरा खेल” “संदिग्ध” लग रहा है। इसलिए अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से पाकिस्तान की भूमिका की अध्ययन की जा रही है। तालिबान ने सत्ता पर कब्जा करने के बाद अफगान धरती पर आतंकवादी गतिविधियों का कोई प्रचार नहीं करने का आश्वासन दिया है। हालांकि आईएफएफआरएएस ने कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के एक विद्वान अकील शाह के हवाले से कहा है कि तालिबान की यह छवि रही है कि वह कहता कुछ है और करता कुछ है। 

    पाकिस्तान के आतंकी संगठनों का तालिबान से तालमेल
    रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल एस वी पी सिंह (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि यह मानना गलत होगा कि तालिबान की जमीन का इस्तेमाल पाकिस्तान नहीं करेगा। बल्कि अफगानिस्तान में तालिबान और हक्कानी ग्रूप शासन के बाद को पाकिस्तान को शह मिल गई है और वह भारत के खिलाफ तालिबान के संसाधनों का पूरा इस्तेमाल करेगा। कुछ दिनों से जिस तरह से जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं उसके पीछे पाकिस्तान- तालिबान की मिलीभगत भी हो सकती है। कुछ दिनों पहले एक आतंकी पकड़ा भी गया। जिससे कई इनपुट भी मिले हैं। पाकिस्तान के आतंकी संगठनों का तालिबान से तालमेल चल रहा है। इन हमलों में पाकिस्तान का जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा भी शामिल है।

    पाकिस्तान के इशारे पर हो रही आंतकी घटनाएं
    रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल ए के सिवाच (रिटायर्ड) थिंक टैंक की इस रिपोर्ट से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है जब से अफगानिस्तान में ताबिलान आया है पाकिस्तान को ऐसा लगता है कि विजय मिल गया है।

    अभी जितनी आतंकी घटनाएं कश्मीर में हो रही हैं वह पाकिस्तान के इशारे पर ही हो रही हैं। काबुल पर कब्जा करने के लिए जैश ए मुहम्मद और लश्कर ए तैयबा के 10 हजार आतंकी लड़ रहे थे। वे अब पीओके में आ गए हैं। इनकी योजना यही है कि वे सर्दियों में भारत के अंदर घुसपैठ करें।


    सिवाच कहते हैं अपने आंतकियों की भारत में घुसपैठ कराने के लिए पाकिस्तान सीज फायर भी तोड़ सकता है। उनका मानना है कि दूसरी तरफ अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट खुरासान भी सक्रिय हो गया है और हो सकता है कि उसके स्लीपर सेल भारत में घुस आए हों। यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए बहुत चिंता की बात है उन्हें इसके लिए काफी चौकस रहना पड़ेगा।  

    पाकिस्तान में भी बढ़ेगी आतंकी गतिविधियां
    थिंक टैंक का अनुमान है कि अफगान तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) के बीच “मजबूत संबंधों” के मद्देनजर, “लोकतंत्र समर्थक” देशों यहां तक कि पाकिस्तान में भी हिंसा बढ़ने की आशंका है। थिंक टैंक  ने संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिकी सेना की मौजूदगी में भी 2020 तक 6,000 से अधिक आतंकवादियों ने अफगानिस्तान में अपना ठिकाना बना लिया था।

    रक्षा विशेषज्ञ सिवाच भी मानते हैं कि अभी तालिबान का राज होने से पाकिस्तान बहुत खुश है, लेकिन यह हनीमून पीरियड जल्दी ही खत्म होने वाला है। उनके मुताबिक तहरीक ए तालिबान जो पाकिस्तान का आतंकी समूह है, वह भी अब बहुत ताकतवार हो गया है। तहरीक एक पाकिस्तान चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर नहीं चाहता है। साथ ही वह पाकिस्तान में शरीया कानून लाने की जबरदस्त वकालत करता है और इसके लिए पाकिस्तान पर दबाव डाल रहा है।

    इसलिए ऐसे संगठनों को पालने-पोसने की यह पाकिस्तान की एक बड़ी भूल साबित होने वाली है। उनके मुताबिक जल्दी ही पाकिस्तान में भी आंतकी गतिविधियां बढ़ने वाली है। दूसरी तरफ काबुल पर तालिबान का राज होने से बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी भी सक्रिय हो गया है। वे भी पाकिस्तान में हिंसा बढ़ाएंगे। कुल मिलाकर अपनी ही लगाई आग में पाकिस्तान भी जलेगा।


    आतंकवादी देश की छवि बना रहा 
    आईएफएफआरएएस  ने लंदन विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता आयशा सिद्दीका के हवाले से कहा है कि अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में वापस आने के साथ, पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथ की समस्या बढ़ रही है और पाकिस्तान एक आतंकवादी देश के रूप में अपनी छवि को आगे बढ़ा रहा है।

    थिंक टैंक के अनुसार,  पाकिस्तान पर तालिबान सरकार को मान्यता देने और शरीया कानून लागू करने दबाव बढ़ता जा रहा है। इस तरह के दबाव के बाद पाकिस्तान में आतंकी संगठनों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे “रक्तपात” हो सकता है।

    आईएफएफआरएएस ने पाकिस्तानी शांति अध्ययन संस्थान के निदेशक मुहम्मद अमीर राणा के बयान का जिक्र करते हुए कहा है कि तालिबान के सत्ता संभालने के साथ, पाकिस्तान विरोधी आतंकवादी समूहों को प्रोत्साहित किया जाएगा, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होगी देश में एक नए युद्ध की शुरुआत हो सकती है।

    ‘जिहादी आतंकी’ पाकिस्तान की विदेश नीति का अंग
    आईएफएफआरएएस ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, लेफ्टिनेंट जनरल एचआर मैकमास्टर के बयान का भी उल्लेख किया है। जिसमें उन्होंने कहा है कि, ‘हमें  यह दिखाना बंद करना होगा कि पाकिस्तान हमारा भागीदार है। जबकि वह दुश्मन देश है जो “जिहादी आतंकवादियों” को अपनी विदेश नीति के एक अंग के रूप में उपयोग करता है’। उनके मुताबिक पाकिस्तान इन ताकतों को संगठित, प्रशिक्षित और हथियारों से लैस करता है और जिहादी आतंकवादी संगठन उसकी विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

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