भोपाल। मध्यप्रदेश लंबे अरसे बाद बिजली की अघोषित कटौती के चुंगल में फंस गया है। दिलचस्प ये कि 22,500 मेगावाट बिजली उपलब्ध होने के दावों के बावजूद 11,500 मेगावाट की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। सालाना 38 हजार करोड़ चुकाने के बाद भी सूबे के 1.30 करोड़ उपभोक्ताओं को कटौती का सामना करना पड़ रहा है।अभी वजह ये कि कोयले की कमी का संकट है। हालात ऐसे हैं कि 5 लाख मीट्रिक टन रिजर्व कोयला होना चाहिए, लेकिन 2.70 से 2.85 लाख मीट्रिक टन के आसपास ही कोयला बचा है। आठ दिन का स्टॉक होना चाहिए, लेकिन किसी प्लांट पर तीन दिन का कोयला है तो कहीं चार दिन का। नतीजतन बिजली की अघोषित कटौती कर काम चलाया जा रहा है। संकट के समय बिजली लेने के बड़ेबड़े दावे करके जो 2525 साल के एमओयू किए गए थे, वो भी इस समय असहाय हो गए हैं। ऐसे में सवाल ये ही कि इन एमओयू का फिर क्या मतलब? आखिर ऐसे मौकों को आधार बनाकर इन एमओयू को रद्द क्यों नहीं किया जाता?
अभी संकट ऐसा
अभी स्थिति ये कि भोपाल में अलग-अलग हिस्सों में अलसुबह अघोषित कटौती शुरू कर दी गई है। गांव में खेती के फीडर पर 10 घंटे बिजल दी जानी है, लेकिन यह भी ट्रिपिंग की शिकार है। वहीं पूरे प्रदेश में घरेलू फीडर पर 24 घंटे बिजली आपूर्ति के दावे भी ट्रिपिंग का शिकार हो गए हैं।
संकट ऐसा, वजह ये
राष्ट्रीय स्तर पर कोयले की कमी से मध्यप्रदेश को हर दिन औसत 15,400 मीट्रिक टन कोयला कम मिल रहा है। ऊर्जा मंत्री प्रद्युन सिंह तोमर ने दिल्ली जाकर आपूर्ति बढ़ाने की मांग की, लेकिन कमी के कारण अभी इसे पूरा नहीं किया है। सूबे में आठ दिन की बजाए औसत तीन से चार दिन का रिजर्व कोयला है।
…तो क्या होगा
यदि कोयला की आपूर्ति नहीं सुधरती है तो आगे चलकर संकट बढ़ सकता है। वजह ये कि गर्मी लगातार बढऩे के कारण बिजली की मांग में भी बढ़ोत्तरी होती जा रही है, जबकि कोयले का स्टॉक घटता जा रहा है। अभी 11 हजार मेगावाट औसत मांग चल रही है, जो गर्मी बढऩे पर बढ़ सकती है।
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