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    सुपोषण संगिनी ने कर्तव्य भावना से आगे बढ़कर मां और बच्चे के जीवन को बचाने में मदद की

  • January 08, 2022

    8 अक्टूबर, 2021 की देर रात, सुमित्रा बोतरे की नींद उनके दरवाजे पर हुए एक जोरदार धमाके से खुल गई। उन्होंने जल्दी सेदरवाजा खोला (opened the door) और देखा कि उसी गांव की निवासी एक महिला सामने खड़ी थी और उनसे मदद की गुहार लगा रही थी। महिला की बेटी वर्षा कोहले प्रसव पीड़ा से छटपटा रही थी और उसे सुमित्रा की मदद की जरूरत थी। सुमित्रा बोतरे 2018 से नागपुर के सावनेर ब्लॉक में फॉर्च्यून सुपोषण परियोजना के तहत सुपोषण संगिनी के रूप में काम कर रही हैं। वह सावनेर के एक आदिवासी गांव सर्रा में रहती हैं। इस गांव में ज्यादातर परिवार गरीब हैं।

    सुमित्रा ने महिला को शांत किया और बेटी की स्थिति की विस्तृत जानकारी ली। उन्होंने गांव में रहने वाली आशा कार्यकर्ता को बुलाया और वर्षा को देखने चली गईं। बेटी की हालत को देखते हुए, उन्होंने उसे बडेगांव के नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में ले जाने का फैसला किया। पीएचसी पर ऑन-ड्यूटी डॉक्टर ने उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था का हवाला देते हुए वर्षा को भर्ती करने से इनकार कर दिया। उसने उन्हें सुझाव दिया कि वह उसे सावनेर में पीएचसी पर ले जाए या उसे नागपुर के डागा अस्पताल में भर्ती करें। डॉक्टर ने कहा कि वह काफी समय से वर्षा का निरीक्षण कर रही थी और उसकी स्थिति जानती थी। उसने 40 साल की उम्र में गर्भ धारण किया, और नौवें महीने में उसकी आखिरी सोनोग्राफी के अनुसार, बच्चे का वजन 2 किलो से कम था। सुमित्रा ने भगवान से प्रार्थना की तथा मां और बच्चे दोनों को बचाने के लिए हर प्रयास किया।


    लेकिन सुमित्रा के लिए मुश्किलें बढ़ती रहीं। सबसे पहले आशा कार्यकर्ता अपने बच्चे को बुखार होने की बात कहकर घर चली गई। फिर 108 पर कॉल करने पर कोई एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं थी। सुमित्रा ने डॉक्टर से एक निजी एम्बुलेंस की व्यवस्था करने में मदद करने का अनुरोध किया। ड्राइवर ने उन्हें नागपुर ले जाने के लिए 2,000 रुपये की मांग रखी। सुमित्रा ने ड्राइवर से थोड़ा कम चार्ज करने के लिए कहा क्योंकि उन्हें अस्पताल में प्रवेश शुल्क भी देना था। लेकिन वह राजी नहीं हुआ। फिर सुमित्रा सलाह लेने के लिए अपने पति के पास पहुंची जिसने सुमित्रा को पंचायत समिति सदस्य (पीएसएम) को बुलाने का सुझाव दिया। पीएसएम ने ड्राइवर से बात की, जो आखिरकार वर्षा को 1,500 रुपये में डागा अस्पताल ले जाने के लिए तैयार हो गया।वे तड़के तीन बजे डागा अस्पताल पहुंचे. लेकिन वहां भी वर्षा की हालत खराब होने के कारण उसे प्रवेश देने से मना कर दिया गया। अस्पताल में डॉक्टरों और अन्य लोगों ने सुमित्रा को उसे नागपुर के मेयो गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज ले जाने का सुझाव दिया। वे मेयो पहुंचे तो सुबह के 4 बज रहे थे। वहां उसे भर्ती कर लिया गया और इलाज शुरू हो गया।वर्षा ने सुबह 11 बजे 2.5 किलो वजन के स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। सुमित्रा का चेहरा खुशी और गर्व से चमक उठा। उनका प्रयास रंग लाया था। वर्षा की मदद करने और दूसरों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने में उन्होंने कर्तव्य भावना से आगे बढ़कर काम किया था। वह अस्पताल में वर्षा के साथ रहीं और पूरे 5,000 रुपये के बिल का भुगतान किया। कृतज्ञ वर्षा ने सुमित्रा से कहाकि “मुझे और मेरे बच्चे को आपने जीवन दिया है। मैं आपका आजीवन ऋणी रहूंगी।” सर्रा के पूरे गांव ने अपनी सुपोषण संगिनी के प्रयासों की सराहना की।

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