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सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल : इमरजेंसी मेडिकल मामलों के लिए 2 साल में कैजुअल्टी विभाग तक शुरू नहीं हो पाया

March 21, 2022


कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते कोविड सेंटर की पहचान बनकर रह गई 250 करोड़ रुपए के सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की
इंदौर, प्रदीप मिश्रा।
लगभग 2 साल बाद भी आधी से कम सुविधाओं व अधूरे संसाधनों के साथ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल (super specialty hospital) अपने नाम और काम को सार्थक करने के लिए संघर्ष करता नजर आ रहा है। यहां कार्यरत डॉक्टर्स (doctors), स्टाफ (staff) का दर्द उनकी बातों में छलक आया, जब बताया कि 2 साल से कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते लगभग 250 करोड़ रुपए से बने इस हॉस्पिटल की पहचान कोविड सेंटर (covid center), यानी कोरोना अस्पताल (corona hospital) के रूप में हो गई। आधे से ज्यादा शहरवासियों को तो यह तक नहीं पता कि यह बना कहां है। 2 साल बाद यहां आपातकालीन चिकित्सा (emergency medicine), यानी दुर्घटना या लड़ाई-झगड़े में घायल लोगों के आकस्मिक इलाज के लिए कैजुअल्टी विभाग (casualty department) तक शुरू नहीं हो पाया है, जबकि दावे ऑर्गन ट्रांसप्लांट तक के किए गए थे।


237 करोड़ रुपए की लागत वाला सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल (super specialty hospital) अपनी पहचान के लिए जूझ रहा है। वैसे तो सरकार (government) के नजरिए से महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज संबंधित यह हॉस्पिटल अपनी विशेषताओं व गुणवत्ता के लिए मध्यप्रदेश में नंबर वन है, मगर सरकार की कछुआ चाल के चलते 2 सालों से अभी तक यहां न तो जरूरी हाईटेक मशीन (hi-tech machines) वाले मेडिकल संसाधन (medical resources) हैं, न ही चिकित्सकीय उपकरणों की संपूर्ण सुविधाएं हैं। जबकि जरूरी मशीनों व उपकरणों संबंधित फाइल 2 साल से दिल्ली में सरकार के ठंडे बस्ते में पड़ी है।


यह दावे किए गए थे उद्घाटन के दौरान
अगस्त 2020 में 402 बिस्तरों वाले इस 10 मंजिला सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल (super specialty hospital)  की जब शुरुआत हुई थी, तब दावा किया गया था कि इस हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी, न्यूरो सर्जरी, नेफ्रोलॉजी, कार्डियोलॉजी, कार्डियक सर्जरी, यूरो सर्जरी, मेडिकल गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी, सर्जिकल गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी, प्लास्टिक एवं रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के साथ ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधाएं भी होंगी। अभी तक इमरजेंसी ट्रीटमेंट सर्विस, यानी कैजुअल्टी विभाग भी शुरू नहीं हो पाया है।


15 करोड़ की मशीनों का महीनों से इंतजार
उद्घाटन के दौरान जितने दावे किए गए थे उनकी हकीकत यह है कि अभी तक सिर्फ यहां नेफ्रोलॉजी, कार्डियोलॉजी, यूरोलॉजी, न्यूरोलॉजी संबंधित चिकित्सकीय सुविधाएं ही शुरू हो पाई हैं। बाकी चिकित्सा विभाग तो इसलिए शुरू नहीं हो पा रहे, क्योंकि न तो पर्याप्त स्टाफ है न ही चिकित्सकीय सुविधाएं व अत्यावश्यक संशाधन हैं। लगभग 15 करोड़ रुपए लागत की मेडिकल मशीनों (medical machines) व उपकरण जो अत्यावश्यक हैं, उनकी सूची व संबंधित फाइल केंद्र सरकार के पास 2020 से ठंडे बस्ते में पड़ी है।
यह मशीन चाहिए इन विभागों में
कार्डियोथोरेसिक सर्जरी विभाग (cardiothoracic surgery department) में हार्ट, लंग्स मशीन, बॉडी मशीन, यानी शरीर को गर्म करने वाला यंत्र, सर्जरी विभाग में सर्जरी से संबंधित उपकरणों का सेट, कार्डियोलॉजी विभाग में आईएबीपी, आईवीयूएस, टीएमटी, यूरोलॉजी विभाग में शॉकवेव लिथोट्रिप्सी, इन सब मशीन व उपकरणों की कीमत लगभग 15 करोड़ रुपए है। यह कीमत हॉस्पिटल के दौरान के समय की है। डॉक्टरों का कहना है कि वर्तमान में कोरोना की तीन लहरों के कारण बाजार के बदले हालातों की वजह से इन सबकी कीमत लगभग 18 करोड़ रुपए हो चुकी है।
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बिल्डिंग की विशेषताएं
यह मध्यभारत, यानी सेंट्रल इंडिया में एकमात्र ऐसा हॉस्पिटल बनाया गया है, जिसमें एक फ्लोर अंगदान के लिए रिजर्व रखा गया है। इसके साथ-साथ यहां हार्ट, किडनी, लिवर ट्रांसप्लांट के लिए विशेष यूनिट बनाई गई है, जो प्रदेश के किसी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में नहीं है। सारे ओटी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सेमिनार या कॉन्फ्रेंस हॉल में बैठकर मेडिकल स्टूडेंट्स लाइव सर्जरी देख सकते हैं।
सारे वादे-दावे अधूरे
इस हॉस्पिटल के स्टाफ के लिए सरकार ने 24 पीजीएमओ, 112 डॉक्टर, 253 नर्स, 204 सफाई कर्मचारी, 102 सुरक्षाकर्मी के पद मंजूर किए हैं, जबकि अभी तक लगभग 30 सीनियर व 20 जूनियर डॉक्टर ही हैं। 24 पीएमओ के बजाय अभी 11 ही हैं।

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