नई दिल्ली (New Delhi)। अगले साल (Next year) (2024) मार्च-मई के दौरान उत्तरी गोलार्ध (Northern Hemisphere) में मजबूत अल नीनो का असर (Strong El Nino effect) देखने को मिल सकता है। राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र ने रविवार को यह भविष्यवाणी की। इसके मुताबिक, संभावना है कि ‘सुपर अल नीनो’ (‘Super El Nino’) के चलते मौसम (weather) में इस बार ऐतिहासिक रूप से बदलाव (Historical change) देखने को मिले। मालूम हो कि अल नीनो दुनियाभर में मौसम की घटनाओं को काफी हद तक प्रभावित करता है। खाद्य उत्पादन, जल संसाधन, मानव आबादी और पारिस्थितिक तंत्र के कल्याण पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है।
2024 में मजबूत अल नीनो की संभावना 75%-80% के बीच है। इसका अर्थ है कि भूमध्यरेखीय समुद्र की सतह का तापमान औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होगा। इस बात की 30% संभावना है कि तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ सकता है। यह ऐतिहासिक रूप से अल नीनो का गहरा असर होगा। इससे पहले 1997-98 और 2015-16 में अत्यधिक तापमान, सूखे और बाढ़ ने दुनिया भर में कहर बरपाया था। उत्तरी अमेरिका में मजबूत अल नीनो आमतौर पर ड्रायर और औसत से अधिक गर्म स्थितियों से जुड़ा होता है। इसके दायरे में दक्षिणी अमेरिका के कुछ हिस्से भी आते हैं। सर्दियों में आमतौर पर गीला मौसम रहता है और तापमान औसत से कुछ नीचे आ जाता है।
भारत में सामान्य मौसम पैटर्न होगा बाधित?
अगर भारत की बात करें तो यहां अल नीनो आमतौर पर मानसूनी हवाओं के कमजोर होने और शुष्क परिस्थितियों से जुड़ा है। इससे मानसून सीजन के दौरान वर्षा कम हो सकती है। वहीं, सुपर अल नीनो भारत में सामान्य मौसम पैटर्न को बाधित करने का कारण बन सकता है। इससे असामान्य और कभी-कभी मौसम से जुड़ी गंभीर घटनाएं हो सकती हैं। इस दौरान कुछ क्षेत्रों में भारी वर्षा व बाढ़ देखने को मिल सकती है। साथ ही लंबे समय तक शुष्क मौसम बना रह सकता है। अल नीनो के दौरान मौसम के जुड़ी घटनाएं उत्तर की तुलना में दक्षिणी भारत में कम देखने को मिलती हैं। अल नीनो के करीब 50% वर्षों में मानसून के दौरान सूखे की स्थिति पैदा हुई है। इसके कारण देश भर में वर्षा लंबी अवधि के औसत से 90% तक कम हुई।
जानें अल नीनो क्या है
आसान शब्दों में कह सकते हैं कि अल नीनो के कारण तापमान गर्म होता है। प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से गर्म पानी की मौजूदगी के जलवायु प्रभाव को अल नीनो नाम दिया गया है। अल नीनो के दौरान मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में सतह का पानी काफी गर्म हो जाता है। पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर पड़ने लगती हैं और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाली गर्म सतह का पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है। मौसम पर ला नीना का असर भी पड़ता है जिसके कारण तापमान ठंडा हो जाता है। भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर निम्न हवा का दबाव होने पर ला नीना की स्थिति बनती है। इसकी वजह पूर्व से बहने वाली तेज गति की हवाएं होती हैं। इसके चलते तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है।
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