पूर्वमंत्री का मृत्यु पूर्व बयान!
मप्र के एक पूर्वमंत्री और कांग्रेस नेता बृजेंद्र सिंह राठौर का पिछले दिनों भोपाल के एक अस्पताल में निधन हो गया। राठौर दमोह विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के प्रभारी थे। चुनाव के दौरान ही वे संक्रमित हो गए थे। उन्हें इलाज के लिए झांसी से एयरलिफ्ट कर भोपाल लाया गया था। राठौर के मन में जीने की ललक थी। उन्हें एक क्षण भी नहीं लगा कि वे कोरोना से हार जाएंगे। वे अपने परिवार को ठीक होने का भरोसा दिलाते रहे। लेकिन भोपाल के अस्पताल में आने के बाद उनकी बुरी गत हुई। अस्पताल में न तो समय से डॉक्टर आ रहे थे और न ही उनकी ढंग से देखरेख हुई। राठौर ने अस्पताल में हुए दुव्र्यवहार को लेकर एक पत्र अपने परिवार को सौंपा था, जिसमें बताया जाता है कि उन्होंने अपनी संभावित मौत के लिए अस्पताल प्रबंधन को जिम्मेदार ठहरा दिया था। अब राठौर का परिवार उनके इस मृत्यु पूर्व लिखे पत्र के आधार पर अस्पताल के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की तैयारी कर रहा है। देखना है कि क्या अदालत इस पत्र को उनके मृत्यु पूर्व बयान मानेगी?
अपराधी और मैनेजमेंट
मप्र सरकार ने कोरोना से निपटने के लिए सभी जिलों में क्राइसिस मैनेजमेंट टीम का गठन किया है। इसमें अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधि भी शामिल रहते हैं। लेकिन आरोप है कि भिंड में राजनैतिक दबाव में क्राइसिस मैनेजमेंंट टीम में जनप्रतिनिधि के नाम पर ऐसे लोगों को शामिल कर लिया है, जो वर्तमान में न तो किसी संस्था के निर्वाचित पदाधिकारी हैं और न ही किसी राजनैतिक दल के प्रमुख पद पर हैं। उल्टे इन लोगों के खिलाफ थानों में गंभीर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं। पूर्व मंत्री और प्रदेश के सबसे सीनियर कांग्रेस विधायक डॉ. गोविंद सिंह ने जिले की क्राइसिस मैनेजमेंट टीम से यह कहकर अपना नाम अलग कर लिया है कि वे अपराधियों के साथ बैठकर कोरोना का मैनेजमेंट नहीं कर सकते।
आकाश-नरहरि का मूल्यांकन
प्रदेश के दो आईएएस आकाश त्रिपाठी और पी नरहरि में कई समानताएं हैं। ये दोनों अधिकारी सीधी भर्ती के आईएएस हैं। दोनों अधिकारी ग्वालियर और इंदौर के कलेक्टर रहे हैं। दोनों अधिकारियों की योग्यता पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भरोसा है। यही कारण है कि पिछले दिनों कोरोना आपातकाल में स्वास्थ्य आयुक्त और नियंत्रक औषधि प्रशासन के पद के लिए अधिकारियों की तलाश शुरू हुई तो आकाश त्रिपाठी स्वास्थ्य आयुक्त और पी नरहरि नियंत्रक औषधि प्रशासन बनाए गए। अब जैसे-जैसे कोरोना के मामले ढलान पर हैं, इन दोनों अधिकारियों के काम का मूल्यांकन शुरू हो गया है। यह बात दूसरी है कि इस दौरान दोनों अधिकारियों को नई जिम्मेदारी में फ्री हैंड नहीं था। अगले कुछ दिनों में पता चलेगा कि इन दोनों अधिकारियों में से कौन सीएम का दिल जीतने में सफल रहा है?
सरकार विरोधी मंत्री
आप कल्पना कर सकते हैं कि मप्र में कोई मंत्री पद का दर्जा प्राप्त किए व्यक्ति प्रतिदिन सुबह से शाम तक सोशल मीडिया पर राज्य सरकार के खिलाफ माहौल बनाता हो। शायद यह सुनकर आप चौंक जाएंगे कि अभय तिवारी नामक व्यक्ति ने अपने ट्वीटर स्टेटस पर स्वयं को मप्र युवा आयोग का चेयरमैन बताते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त बताया है। वे प्रतिदिन शिवराज सरकार पर हमले करते रहते हैं। दरअसल, अभय तिवारी मप्र कांग्रेस के आईटी सेल के प्रभारी हैं। वे प्रदेश कांग्रेस का ट्वीटर हैंडल करते हैं। कमलनाथ सरकार ने जाते-जाते उन्हें युवा आयोग का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था। भाजपा सरकार आने के बाद यह मामला न्यायालय चला गया। यह बात दूसरी है कि अभय तिवारी की युवा आयोग के कार्यालय में भी एंट्री नहीं है, लेकिन उन्होंने कोर्ट के स्टे के आधार पर आज भी स्वयं को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त बताते हुए स्टेटस बना रखा है और वे जमकर भाजपा और शिवराज सरकार पर हमले जारी रखे हुए हैं।
सारी खुदाई एक तरफ
सारी खुदाई एक तरफ… यह एक कहावत है, जो भोपाल के चिरायु अस्पताल के संचालक डॉ. अजय गोयनका पर सटीक बैठ रही है। दरअसल, पिछले कुछ दिन से डॉ. गोयनका अपने साले और साले के बेटे के कारण जबरन विवादों में आ गए हैं। पिछले दिनों जब राज्य सरकार ने कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़े पर अलग नीति बनाई तो डॉ. गोयनका के साले का ऑडियो वायरल हुआ, जिसमें चिरायु अस्पताल में होने वाली मौतों को लेकर भयावह स्थिति बताई गई। अपने साले के ऑडियो को लेकर डॉ. गोयनका लगभग 15 दिन परेशान रहे। अब गोयनका के साले के बेटे की बदतमीजी के कारण डॉ. गोयनका और चिरायु अस्पताल की देशभर में भारी बदनामी हो रही है। साले के बेटे ने अस्पताल में भर्ती एक महिला के बेटे से वीडियो के सामने आकर न केवल बदतमीजी की, बल्कि राज्य सरकार के आदेशों को भी मानने से इंकार कर दिया। मरीज के रिश्तेदार को धक्के देकर बाहर भी निकलवाया। इस वीडियो के वायरल होने के बाद चिरायु के खिलाफ पूरे देश में माहौल बन गया है। डॉ. गोयनका ने अपने व्यवहार और मेहनत से पिछले 1 साल में जो कमाया वह साले और साले के बेटे की गलतियों से गंवा दिया। अब डॉक्टर गोयनका सफाई देते घूम रहे हैं।
आखिर काम आए कमलनाथ
कोरोना काल में मप्र के एक जिले में ऐसी समस्या आ गई जिसका समाधान किसी नेता, मुख्यमंत्री व मंत्री के पास भी नहीं था। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया जब सफल नहीं हुए तो कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की मदद ली। कमलनाथ के सक्रिय होते ही 24 घंटे में सफलता मिल गई। दरअसल, मामला राजस्थान से लगे श्योपुर जिले का है। यहां के अधिकांश मरीज अपना इलाज सवाई माधौपुर या कोटा में कराते हैं। कोरोना कफ्र्यू के चलते राजस्थान सरकार ने मप्र की सीमा सील कर दी। जिस कारण श्योपुर के मरीज इलाज कराने नहीं जा पा रहे थे। ग्वालियर उनको बहुत दूर पड़ रहा था। स्थानीय लोगों की मांग के बाद जब सब असफल हो गए तब कमलनाथ ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से चर्चा की और मप्र के कोरोना संक्रमितों के ईलाज के लिए राजस्थान की सीमाएं खोल दी गईं।
और अंत में…
मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर का निधन कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान तो है ही लेकिन कमलनाथ के लिए नुकसान के साथ-साथ एक बड़ा सिरदर्द भी पैदा हो गया है। दरअसल, बृजेंद्र सिंह राठौर विधानसभा की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष भी थे। कमलनाथ ने पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति को नाराज कर बृजेंद्र सिंह को अध्यक्ष बनवाया था। प्रजापति ने गुस्से में इस समिति से त्यागपत्र भी दिया था। अब राठौर के निधन के बाद प्रजापति फिर से अध्यक्ष पद की दावेदारी कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस के कई अन्य विधायक भी दावा कर रहे हैं। सबसे मजबूत दावा पिछोर के विधायक केपी सिंह का है। लगातार 6 बार के विधायक केपी सिंह को कमलनाथ मंत्री नहीं बना पाए थे इसलिए भी उनका दावा मजबूत है। इसके अलावा कांग्रेस के अनुभवी और वरिष्ठ विधायक लक्ष्मण सिंह भी लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल बताये जा रहे हैं।
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