सिंधिया को तगड़ा झटका
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो समर्थकों को मंत्री बनाने के 24 घंटे के अंदर सिंधिया को एक तगड़ा झटका भी दे दिया है। सिंधिया के सबसे खास आईएएस अधिकारी संदीप माकन को लगभग नकारा अधिकारी सिद्ध करते हुए ग्वालियर नगर निगम के आयुक्त पद से हटा दिया है। मजेदार बात यह है कि कमलनाथ सरकार के समय भी संदीप माकन के खिलाफ कई शिकायतें आईं थीं। तब कमलनाथ ने माकन को हटाया तो सिंधिया ने भोपाल से दिल्ली तक ऐसा तहलका मचा दिया कि कमलनाथ को 3 घंटे के अंदर माकन को फिर से ग्वालियर में निगम आयुक्त बनाना पड़ा। आईएएस लॉबी में अटकलें हैं कि क्या अभी भी सिंधिया, संदीप माकन के पक्ष में खड़े होंगे?
संजय पाठक से नाराजगी!
इस खबर पर विश्वास करना कुछ कठिन है, लेकिन राजनैतिक गलियारों में यह अटकलें तेज हो गई हैं कि कांग्रेस से भाजपा में आए विधायक संजय पाठक से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आजकल खफा चल रहे हैं। जिस तरह मुख्यमंत्री ने कटनी पुलिस अधीक्षक ललित शाक्यवार को हटाया है, उससे इन अटकलों को हवा मिल गई है। दरअसल रेत के एक बड़े ठेकेदार ने स्वयं मुख्यमंत्री सचिवालय को शिकायत भेजी थी कि उमरिया से कटनी तक अवैध रेत व्यवसाय के कारण उसे भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकारी किश्त घर बेचकर देने की नौबत आ गई है। इस शिकायत के बाद कटनी एसपी को हटाना एक तरह से संजय पाठक के प्रति भी नाराजगी मानी जा रही है।
बदनाम होता आईपीएस संवर्ग
बीता साल मप्र आईपीएस संवर्ग के लिए बेहद कष्टदायी रहा। इस दौरान कई ऐसी घटनाएं हुई जिस कारण पूरे देश में मप्र संवर्ग की बदनामी हुई। सबसे ज्यादा शर्मिंदगी उन आईपीएस अधिकारियों को उठानी पड़ी जो प्रतिनियुक्ति पर अन्य राज्यों में तैनात है। जब-जब मप्र के आईपीएस अधिकारियों के कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे उठे तब-तब मप्र कैडर के प्रतिनियुक्ति पर तैनात अधिकारियों को अपने साथियों को जवाब देना मुश्किल हुआ। बीते साल एक वरिष्ठ आईपीएस का वीडियो आने के बाद उन्हें अपमानित कर हटाया गया। एक वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारी का वीडियों महिला मित्र के फ्लेट में जारी होने के बाद वे अपनी पत्नी के साथ भी मारपीट करते दिखे तो उन्हें निलंबित किया गया। साल बीतते-बीतते 3 आईपीएस अधिकारियों के कथित भ्रष्टाचार की जांच ईओडब्ल्यू को सौंपी गई। इन घटनाओं से संवर्ग की देशभर में बदनामी हो रही है।
कांग्रेस में विद्रोही स्वर
मप्र कांग्रेस में विद्रोह की खिचड़ी पकने लगी है। यदि एकाध महीने में कमलनाथ की मप्र से सम्मानजनक विदाई नहीं हुई तो यह विद्रोह बड़ा रूप ले सकता है। बताते हैं कि तमाम विधायक और नेता उनकी कार्यशैली के खिलाफ लामबंद होना शुरू हो गए हैं। अंदर ही अंदर बैठकों के दौर शुरू हो गए हैं। प्रदेश के एक पूर्व नेता प्रतिपक्ष और एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के घर दो-दो बैठकें हो चुकी हैं। कमलनाथ पर आरोप है कि वे पार्टी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मर्जी से चलाते हैं। इस संबंध में कमलनाथ की शिकायतें पार्टी हाईकमान तक भी भेजी जा रही हैं। विधानसभा का शीतकालीन सत्र रद्द कराने और किसानों के आंदोलन को वापिस लेने के बाद पार्टी में कमलनाथ के विरोधी स्वर धीरे-धीरे मुखर होने लगे हैं।
डॉ. गोविंद सिंह की जिद
कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह की जिद के सामने विधानसभा सचिवालय को भी झुकना पड़ा और अपनी प्रोसेडिंग में बदलाव करना पड़ा। दरअसल विधानसभा सत्र निरस्त करने को लेकर हुई सर्वदलीय बैठक में फैसला सर्वसम्मति से होना लिखा और बताया गया। इसकी प्रोसेडिंग जैसे ही जारी हुई डॉ. गोविंद सिंह उखड़ गए। उन्होंने विधानसभा सचिवालय को साफ कहा कि सत्र निरस्त करने को लेकर उनका विरोध दर्ज किया जाए। डॉ. सिंह की जिद के आगे विधानसभा सचिवालय को प्रोसेडिंग बदलने पर विवश होना पड़ा है। अब विधानसभा प्रोसेडिंग में लिखा गया है कि सत्र निरस्त करने में कमलनाथ की सहमति और डॉ. गोविंद सिंह का विरोध था।
पूर्व आईएएस का न्यूज चैनल
मप्र के एक पूर्व आईएएस अधिकारी कथित भ्रष्टाचार के आरोप के कारण नौकरी पर रहते प्रमोशन नहीं पा पाए, लेकिन नौकरी से हटने के बाद उन्होंने लोगों को न्याय दिलाने के लिए न्यूज चैनल शुरू करने का निर्णय लिया है। इस अधिकारी ने रिटायरमेंट के बाद अर्जुन रामपाल और सनी लियोन को लेकर एक फीचर फिल्म भी बनाई है। अब उन्होंने इक्वल्टी न्यूज चैनल लाने की भी घोषणा कर दी है। अधिकारी ने बड़े-बड़े विज्ञापन देकर इस न्यूज चैनल का प्रचार शुरू कर दिया है। सवाल यह है कि जिस अधिकारी को स्वयं न्याय नहीं मिला, रिटायर होने के बाद क्या वास्तव में सबको न्याय दिला पाएंगे?
एक लाख कर्मचारी कोर्ट में
यह खबर थोड़ी चौंकाने और हैरान करने वाली है कि मप्र के 5 लाख में से एक लाख कर्मचारी सरकार के खिलाफ न्यायालय में खड़े होकर न्याय मांग रहे हैं। यानि मप्र का हर पांचवा कर्मचारी कोर्ट में खड़ा है। राज्य सरकार कोर्ट में करोड़ों रुपए खर्च कर रही है लेकिन अपने ही कर्मचारियों को वास्तविक न्याय देने में पीछे है। वैसे इन प्रकरणों को लेकर सरकार ने मुकदमा प्रबंधन नीति समिति बनाई थी लेकिन इस समिति की बैठक तक नहीं हो पाई है। अब प्रदेश का विधि विभाग बढ़ते प्रकरणों से परेशान है और सामान्य प्रशासन विभाग को इस समस्या के समाधान के लिए पत्र लिख रहा है।
और अंत में….
प्रदेश के एक नेता अपनी पत्नी के कैरियर को लेकर खासे चिंतित दिखाई दे रहे हैं। वे पिछले 2 साल में अपनी पत्नी का कैरियर बनाने के लिए लगभग 20 करोड़ रुपये दांव पर लगा चुके हैं। लेकिन कैरियर बनने की बजाए कंपनी ही डूब गई। पत्नी अपने भविष्य को सुरक्षित करने लगभग इतनी ही राशि की मांग फिर से कर रही है। नेताजी परेशान हैं।
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