सबसे महंगा चुनाव
मप्र में दमोह विधानसभा का उपचुनाव कांग्रेस के लिए अभी तक का सबसे महंगा चुनाव साबित हुआ है। बेशक कांग्रेस ने यह सीट जीत ली, लेकिन इसकी बड़ी कीमत अपने दो बड़े नेता और कुछ कार्यकर्ताओं को गंवाकर देनी पड़ी है। राजधानी भोपाल के एक पत्रकार भी इस चुनाव की भेंट चढ़ गए। दमोह उपचुनाव में तैयारी के लिए पहुंची प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष मांडवी सिंह चौहान कोरोना संक्रमित होकर भोपाल लौटीं और उनका निधन हो गया। कांग्रेस के चुनाव प्रभारी वरिष्ठ विधायक बृजेन्द्र सिंह राठौर भी चुनाव के दौरान संक्रमित हुए थे। वे भी अब नहीं रहे। कोई आधा दर्जन कांग्रेस कार्यकर्ता भी कोरोना के कारण काल के गाल में समा गए। चुनाव की रिपोर्टिंग करने भोपाल से गए पत्रकार मनोज राजपूत भी संक्रमित होकर लौटे और फिर वे ठीक नहीं हो पाए। उनका भी निधन हो गया। यानि दमोह उपचुनाव को अभी तक का सबसे महंगा और दुखद चुनाव कह सकते हैं।
अब नो वेटिंग सीएम!
मप्र में पिछले एक साल से भाजपा के कई नेता स्वयं को वेटिंग सीएम कहलवाने में गर्व महसूस करते थे। अटकलें चल रही थीं कि बंगाल चुनाव के बाद मप्र में फेरबदल हो सकता है। भाजपा के कम से कम चार नेता स्वयं को मुख्यमंत्री का दावेदार मान रहे थे। इन नेताओं को वेटिंग सीएम कहा जाने लगा था। प्रदेश के एक मंत्री के समर्थक तो पूरी तैयारी करके बैठे थे कि बंगाल चुनाव के बाद नेताजी का मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेना तय है। बंगाल चुनाव परिणाम के बाद अब प्रदेश में वेटिंग सीएम का पद पूरी तरह समाप्त माना जा रहा है। कल तक जो दावे और तैयारी कर रहे थे वे अब लगभग खामोश हो गए हैं।
मंत्री-पत्रकार आमने-सामने
प्रदेश में इस सप्ताह एक मंत्री और एक वरिष्ठ पत्रकार का विवाद खासा चर्चा का विषय बना हुआ है। पत्रकार ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर मंत्री का नाम लेकर दावा कर दिया कि उन्होंने अपनी एक महिला मित्र को अपने स्टाफ में नियुक्त करा दिया है। इस नियुक्ति के बाद मंत्रीजी की पत्नी के बवाल मचाने के बाद और बड़े नेताओं की कड़ी आपत्ति के बाद मंत्रीजी ने उक्त महिला मित्र को स्टॉफ से हटा दिया है। इस खबर को मंत्री और उनकी पत्नी ने न केवल सिरे से खारिज किया बल्कि अपने समर्थकों से कहकर पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी है। मजेदार बात यह है कि पत्रकार जिस संस्थान में काम करते हैं उसने खबर का खंडन करते हुए खेद व्यक्त कर दिया है। लेकिन पत्रकार आज भी अपनी खबर की सत्यता पर अड़े हुए हैं।
करोड़ों की सम्पत्ति पर विवाद
भोपाल के गुफा मंदिर के महंत चन्द्रमादास त्यागी के आकस्मिक निधन के बाद उनकी गद्दी पर बैठने अनेक दावेदार सामने आ रहे हैं। विवाद के कारण महंत जी का अंतिम संस्कार दो दावेदारों ने किया। गुफा मंदिर ट्रस्ट की लगभग 50 करोड़ की सम्पत्ति बताई जाती है। इस पर अनेक लोगों की नजर है। खबर यह भी आ रही है कि महंत चन्द्रमादास जी के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान बैंक से लाखों रूपए निकाले गये हैं। जिला प्रशासन और ट्रस्टी इसकी जांच करा रहे हैं। इस संबंध में एफआईआर की भी तैयारी है। असली विवाद 13 दिन बाद होगा, जब नये महंत का चुनाव किया जाएगा। फिलहाल मंदिर पर पुलिस तैनात कर दी गई है।
नियंत्रक हैं, पर नियंत्रण नहीं
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में इंजेक्शन और दवाईयों की कालाबाजारी को देखते हुए नियंत्रक औषधी प्रशासक को बदल दिया। प्रदेश के एक योग्य आईएएस अधिकारी को इस विभाग की कमान सौंपी गई। लगभग एक महीने बाद भी इस विभाग का हाल जस का तस बना हुआ है। आज भी न इंजेक्शन मिल रहे हैं और न ही जरूरी दवाईयां। खास बात यह है कि प्रदेश सरकार के वरिष्ठतम मंत्री गोपाल भार्गव ने ब्लैक में लगभग दुगनी कीमत पर दवाईयां खरीदकर इस विभाग की पोल खोलकर रख दी है। मंत्री जी ने अपने विधानसभा क्षेत्र में अपने खर्चे पर कोविड सेंटर शुरू किया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर जानकारी दी है कि इस कोविड सेंटर के लिए जरूरी टेबलेट ब्लैक मार्केट से लगभग दुगनी कीमत पर खरीद रहे हैं। यानि नए नियंत्रक का भी दवा की कालाबाजारी पर कोई नियंत्रण नहीं है।
गुटबाजी चरम पर
दमोह विधानसभा उपचुनाव के परिणाम आने के बाद भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी अब सड़क पर आ गई है। चर्चा यह है कि पहली बार भाजपा में इस कदर गुटबाजी सार्वजनिक रूप से दिखाई दे रही है। चुनाव हारने वाले राहुल लोधी ने हार का ठीकरा पूर्व मंत्री जयंत मलैया पर फोड़ दिया है। चर्चा है कि पूरे चुनाव के दौरान मलैया इस बात का रोना रोते रहे कि मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने उनका कैरियर तबाह करने राहुल को भाजपा ज्वाइन कराई है। चुनाव परिणाम के बाद दमोह के सांसद केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल भी मुकर हो गए हैं। उन्होंने संकेतों में ही सही इस हार के लिए भाजपा में चल रहे षड्यंत्र, आपसी विद्वेष और पार्टी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने इसका समाधान खोजने की बात भी कही है।
और अंत में…..
इस सप्ताह मप्र कैडर के 1987 बैच के आईएएस मनोज श्रीवास्तव सेवानिवृत्त हो गए। लोगों को भरोसा ही नहीं हो रहा कि बेहद सक्रिय मनोज श्रीवास्तव 60 साल के हो चुके हैं। मनोज श्रीवास्तव प्रदेश में काफी लोकप्रिय, मिलनसार और सक्रिय अधिकारी रहे हैं। वे जहां भी रहे उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। वे लंबे समय से लेखन कार्य भी कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही थी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने इस पसंदीदा अधिकारी को रिटायरमेंट के बाद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देंगे। लेकिन मौजूदा समीकरण मनोज श्रीवास्तव के अनुकूल नहीं है। मनोज जी अब क्या करेंगे इस पर सबकी नजर है। क्योंकि मनोज श्रीवास्तव जैसा अधिकारी रिटायरमेंट की गुमनामी जिंदगी तो नहीं जी सकता। उनके अगले कदम पर सभी की नजर है।
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