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    सुनी सुनाई: मंगलवार 29 दिसंबर 2020

  • December 29, 2020

    कैसे टला विधानसभा सत्र
    एक बार फिर जाहिर हो गया कि शिवराज और कमलनाथ की केमिस्ट्री सबसे अलग है। मप्र विधानसभा सत्र को टालने के लिए सरकार ने वैसे तो कई जतन किए थे, लेकिन आखिरी मौके पर शिवराज को कमलनाथ का साथ मिल गया। रविवार को विधानसभा सचिवालय में हुई सर्वदलीय बैठक से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इशारे पर कांग्रेस के गोविंद सिंह, सज्जनसिंह वर्मा और एनपी प्रजापति को हटा दिया गया। प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा, शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ ने अकेले में गुफ्तगूं की और कुछ देर बात सत्र टालने की घोषणा हो गई। यह बात दूसरी है कि डॉ. गोविंद सिंह अपना विरोध जताते रहे लेकिन कमलनाथ ने सर्वसम्मति से सत्र टालने की सहमति दे दी।

    पुत्रवधु के विपरीत विचार
    मप्र भाजपा के दिग्गज नेता रहे एवं पूर्व राज्यपाल कप्तानसिंह सौलंकी की पुत्रवधु ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों का खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है। पेशे से वकील अमी प्रबल प्रताप ने ग्वालियर में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में साफ कह दिया कि तीनों कृषक कानून बनाने से पहले संसदीय परंपरा का पालन नहीं किया गया। अमी के इन तेवरों से भाजपा नेता हैरान नहीं है। क्योंकि सबको पता है कि ससुराल में बेशक संघ और भाजपा की विचारधारा है, लेकिन अमी के पिता ग्वालियर में जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। मजेदार बात यह है कि शिवराज सिंह चौहान ने अमी को ग्वालियर हाईकोर्ट में उप महाधिवक्ता बनाया था।

    ओवैशी की इंट्री, भाजपा को फायदा
    मप्र में कट्टर मुस्लिम राजनैतिक दल एआईएमआईएम की एंट्री की खबर से भाजपा की खुशी का ठिकाना नहीं है। इस दल के आने से हिंदू वोटों का धुव्रीकरण भाजपा के पक्ष में होना तय माना जा रहा है। इसके आने से सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ेगा। खबर आ रही है कि एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैशी ने नगरीय निकाय के चुनाव के जरिए मप्र में एंट्री लेने का मन बनाया है। ओवैशी की पार्टी की छवि कट्टर मुस्लिम राजनैतिक दल की है। इस पार्टी के नेताओं के भाषण खुले तौर पर हिंदूओं के खिलाफ रहते हैं। यदि वाकई यह पार्टी मप्र में उम्मीदवार उतारती है तो भाजपा को गैर मुस्लिम वोटों का भारी लाभ होगा।

    मप्र की ब्राह्मण राजनीति
    मप्र में कांग्रेस की राजनीति में आजकल ब्राह्मण नेतृत्व को लेकर खुसर-पुसर शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि मप्र की राजनीति में जिसने ब्राह्मण नेताओं को आगे बढ़ाया वह पार्टी सत्ता तक पहुंचती है। दिग्विजय सिंह ने 10 साल राज्य करने के लिए ब्राह्मण नेता श्रीनिवास तिवारी को साधे रखा। शिवराज सिंह चौहान ने अपनी लंबी पारी के लिए लक्ष्मीकांत शर्मा, नरोत्तम मिश्रा, राजेन्द्र शुक्ला, गोपाल भार्गव, रामेश्वर शर्मा, आलोक शर्मा जैसे ब्राह्मण नेताओं को महत्व दिया। दूसरी ओर कमलनाथ के कोर ग्रुप में एक भी ब्राह्मण नेता नहीं है। इसे ही उनकी कमजोरी बताया जा रहा है। कांग्रेस के ब्राह्मण नेता सुरेश पचौरी से लेकर मुकेश नायक तक उपेक्षित चल रहे हैं। कांग्रेस केके मिश्रा का उपयोग तो करती है लेकिन महत्व नहीं देती।

    कमलनाथ का विरोध
    सत्ता से बाहर होने के बाद अब धीरे-धीरे कांग्रेस के अंदर कमलनाथ के विरोध में स्वर मुखर होने लगे हैं। श्योपुर के एक विधायक बाबूसिंह जंडेल ने सबसे पहले कमलनाथ के खिलाफ बयान दिया। अब ग्वालियर के विधायक लाखन सिंह भी कमलनाथ के नीतियों का खुला विरोध करने लगे हैं। लाखनसिंह ने तो कमलनाथ की मिमीक्री करते हुए उपचुनाव से पहले कमलनाथ द्वारा किए जा रहे सरकार बनाने के दावों का जमकर मजाक उड़ाया। दरअसल ग्वालियर-चंबल संभाग के अधिकांश कांग्रेस नेता कमलनाथ के राजनीति करने के तौर-तरीकों से असमर्थ हो गए हैं। उपचुनाव में कमलनाथ के कथित सर्वे के नाम पर कई जीतने वालों के टिकट काट देने से नेता भन्नाए हुए हैं।

    घोषणा से पहले आदेश
    मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग के जाति प्रमाण पत्र की प्रक्रिया को सरल बनाना चाहते थे। उनका मानना था कि पिता के आधार कार्ड के आधार पर होने वाले बच्चे को जाति प्रमाण पत्र मिल जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने विभागीय बैठकें भी की। तय हुआ कि इसकी घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान होशंगाबाद के बाबई दौरे के दौरान करेंगे। मुख्यमंत्री घोषणा से पहले ही मंत्रालय में बैठे एक अधिकारी ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए। खास बात यह है कि इस अधिकारी यह आदेश जारी किए वह कमलनाथ सरकार के समय छिंदवाड़ा में शिवराज सिंह का हेलीकाप्टर न उतरने देने की खबर में चर्चा में आए थे।

    और अंत में…
    भाजपा के एक बड़े नेता आजकल बहुत परेशान हैं। अपनी ही सरकार में उनकी सुनवाई नहीं हो रही। दरअसल उनके जमीनों के कई मामले राजस्व मंडल ग्वालियर में लंबित हैं। राजस्व मंडल में तैनात अधिकारियों को भोपाल ने ऐसी अफीम सुंघा दी है कि अधिकारी इस नेता की फाईलों से न तो हाथ लगा रहे हैं और न ही कोई काम कर रहे हैं। नेताजी भोपाल के कई चक्कर लगा चुके हैं लेकिन उनकी भोपाल यात्राओं का अफसरों पर अभी तक कोई असर नहीं हुआ है।

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