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    सुनी सुनाई: मंगलवार 03 नवंबर 2020

  • November 03, 2020

    अफसर-नेताओं की दुधारू गाय मेंटाना
    म प्र में पिछले 2 साल से जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है वह है राजू मेंटाना। प्रदेश में हजारों करोड़ रुपए के ठेके लेने वाला मेंटाना ग्रुप के कर्ताधर्ता राजू मेंटाना इस उपचुनाव में भी मुद्दा बन गए। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने सवाल दागा कि गोपाल रेड्डी और राजू मेंटाना के क्या संबंध हैं। दरअसल सच्चाई यह है कि राजू मेंटाना मप्र में नेताओं और अफसरों के लिए दुधारू गाय हो गए हैं। दो साल पहले तक भाजपा के खास थे। कमलनाथ ने आते ही ई-टेंडर घोटाले में मेंटाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई तो गोपाल रेड्डी के जरिए मेंटाना ने अपना बचाव किया। अब भाजपा ने मेंटाना और रेड्डी को निशाने पर ले लिया है। सवाल यह है कि भाजपा सिर्फ आरोप लगाएगी या ईओडब्ल्यू में दर्ज एफआईआर में उनकी गिरफ्तारी भी कराएगी।

    अफसर के बेटे से भाजपा परेशान
    इ स उपचुनाव में टीकमगढ़ जिले के पृथ्वीपुर के एसडीओपी राकेश छारी के ेबेटे अनुभव छारी उर्फ मोंटी से भाजपा काफी परेशान है। मोंटी ने मुरैना जिले की अंबाह विधानसभा सीट से भाजपा से टिकट मांगा था। लेकिन सिंधिया से समझौते के तहत टिकट कमलेश जाटव को मिला। नाराज मोंटी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन भर कर कमलेश जाटव की जीत का रास्ता कठिन कर दिया है। मुख्यमंत्री से लेकर केन्द्रीय मंत्री तक मोंटी को मनाने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन अभी तक मोंटी मैदान में डटे हुए हैं। आरोप है कि रविवार को मोंटी के चुनाव कार्यालय पर भाजपा समर्थकों ने हमला किया था। यह भी खबर मिली है कि मोंटी को जिताने के लिए उसके एसडीओपी पिता राकेश छारी 15 दिन की छुट्टी लेकर क्षेत्र में सक्रिय हैं।

    चुनावी फंड घोटाला
    कां ग्रेस में घोटाला कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन वर्तमान में चुनाव फंड में से मोटी राशि निकालकर खा जाना चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रदेश के उपचुनाव में कांग्रेस के एक बड़े नेता को प्रभारी बनाया गया। यह नेता पिछले 8 महीने से कमलनाथ के बेहद नजदीक पहुंच गए थे। कमलनाथ ने भरोसा करके इन्हें मोटा चुनावी फंड सौंप दिया। बताते हैं कि लगभग 40 लाख का घोटाला हुआ तो कमलनाथ ने चुनाव के बीच में ही नेताजी को लूप लाईन कर दिया। इज्जत बचाने के लिए नेताजी अपने मुट्ठीभर समर्थकों के साथ कांग्रेस के पक्ष में नारेबाजी करते तो दिखे लेकिन चर्चा है कि चुनाव बाद नेताजी पर बड़ी गाज गिर सकती है।

    आईएएस को क्लीन चिट कैसे
    म प्र में घपले घोटालों में यदि धोखे से किसी एफआईआर में आईएएस अफसर का नाम आ भी जाए तो उसे क्लीन चिट दिलाने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया जाता है। ईओडब्ल्यू में बीज घोटाले को लेकर कोई एफआईआर में एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी का नाम हटाने के लिए क्या-क्या पापड़ बेलने पड़े उसका खुलासा अब होने लगा है। सारे प्रमाण होने के बाद भी आईएएस अधिकारी का नाम एफआईआर से हटा दिया गया। ऐसा ही मामला लोकायुक्त में एक मौजूदा एडिशनल चीफ सेकेट्री के स्तर के अधिकारी का है। एक पत्रकार की शिकायत पर आईएएस के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। जब चालान पेश हुआ तो आईएएस का नाम हटा दिया गया। अब पत्रकार इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं।

    अंतर दादी और पोते में
    ग्वा लियर उपचुनाव में यहां के मतदाता सिंधिया परिवार यह दो सदस्यों के व्यवहार की तुलना कर रहे हैं। राजमाता विजयराजे सिंधिया और उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया में क्या अंतर है। राजमाता की छवि दाता के रूप में बन गई थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में तमाम सामाजिक संस्थाओं को सिंधिया परिवार के भवन और भूमि दान किए थे अथवा बहुत सस्ती लीज पर दिए थे ताकि यह संस्थाएं समाज सेवा कर सके। इन संस्थाओं में राष्ट्रीय स्वयं संघ के संगठन भी शामिल थे। राजमाता ने तमाम कार्यकर्ताओं को भी व्यवसाय करने के लिए तमाम सुविधाएं दी थीं। इससे उलट ज्योतिरादित्य सिंधिया की छवि पहले भाजपा में और अब कांग्रेस ने भू-माफिया की बना दी है। चुनाव से पहले उनके खिलाफ ग्वालियर में सरकारी जमीनों पर कब्जा करने के तमाम परचे बंट रहे हैं। ऐसे में ग्वालियर की जनता दादी और पोते में फर्क तलाश रहे हैं।

    जहां दम, वहां हम
    म प्र की राजनीति भी अजब गजब है। यहां ऐसे सात विधायक हैं जो कांग्रेस और भाजपा दोनों से दोस्ती किए हुए हैं। गैर कांग्रेस-भाजपा इन विधायकों की न तो कोई विचारधारा है और न ही किसी दल या नेता के प्रति प्रतिबद्धता। इन विधायकों का एक ही सिद्धांत है…जहां दम, वहां हम। चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा विधायक फिलहाल भाजपा के साथ दिखाई दे रहे हैं, लेकिन कमलनाथ से भी संपर्क बनाए हुए हैं। एक निर्दलीय विधायक कल कमलनाथ से मिलकर भरोसा दिला आए हैं कि आपकी सरकार बनाने के लिए यदि सात कम पड़ेंगे तो हम सभी आने को तैयार हैं, लेकिन मंत्री बनाना पड़ेगा।

    और अंत में…
    म प्र में 28 सीटों के उपचुनाव के बाद ग्वालियर चंबल संभाग में अब एक ही सवाल पूछा जा रहा है कि यदि पर्याप्त सिंधिया समर्थक नहीं जीते तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का भविष्य क्या होगा? अकेले कांग्रेस को ही नहीं अधिकांश मीडियाकर्मी भी यह मानते हैं कि अंतत: सिंधिया कांग्रेस में वापिसी करेंगे। पहले यह सवाल कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मुकुल वासनिक से पूछा तो वासनिक ने दावा किया कि उनके जीते जी सिंधिया की कांग्रेस में वापिसी नहीं होगी। रविवार को यही सवाल मीडिया ने कमलनाथ से पूछा तो कमलनाथ ने भी दावा कर दिया है कि अब सिंधिया का कांग्रेस में आना नामुमकिन है।

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