नई दिल्ली। 1984 की भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal gas tragedy) को देश की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना माना जाता है. एक केमिकल फैक्ट्री (chemical factory) से हुए जहरीली गैस के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए. इतना ही नहीं, त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता मगर सबसे दुखद बात ये है कि हादसे के जिम्मेदार आरोपी (responsible accused) को कभी सजा नहीं हुई.
नींद में ही सो गए हजारों लोग
02 और 03 दिसंबर 1984 की रात, लगभग 45 टन खतरनाक गैस मिथाइल आइसोसाइनेट गैस (methyl isocyanate gas) एक कीटनाशक संयंत्र (pesticide plant) से लीक हो गई. यह कंपनी अमेरिकी फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी थी. गैस संयंत्र के आसपास घनी आबादी वाले इलाकों में फैल गई, जिससे हजारों लोगों की तुरंत ही मौत हो गई. लोगों के मरने पर इलाके में दहशत फैल गई और हजारों अन्य लोग भोपाल से भागने का प्रयास करने लगे.
16 हजार से अधिक लोगों की मौत
मरने वालों की गिनती 16,000 से भी अधिक थी. करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन, और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा. जांच में पता चला कि कम कर्मचारियों वाले संयंत्र में घटिया संचालन और सुरक्षा प्रक्रियाओं की कमी ने तबाही मचाई थी.
470 मिलियन डॉलर का मुआवजा
हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुआवजा दिया. हालांकि, पीडितों ने ज्यादा मुआवजे की मांग के साथ न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. 07 जून को भोपाल की एक अदालत ने कंपनी के 7 अधिकारियों को हादसे सिलसिले में 2 साल की सजा सुनाई. उस वक्त UCC के अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन मामले के मुख्य आरोपी थे लेकिन मुकदमे के लिए पेश नहीं हुए.
एंडरसन को नहीं मिल सकी सजा
01 फरवरी 1992 को भोपाल की कोर्ट ने एंडरसन (Anderson) को फरार घोषित कर दिया. इसके बाद अदालत ने एंडरसन के खिलाफ 1992 और 2009 में दो बार गैर-जमानती वारंट भी जारी किया, मगर उसकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी. सितंबर, 2014 में एंडरसन की स्वाभाविक मौत हो गई और उसे कभी इस मामले में सजा नहीं भुगतनी पड़ी.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved