भारतवर्ष प्राचीन काल से ही अनेक ऋषि, महर्षि और ज्योतिषियों की जन्मभूमि रहा है। इस पावन धरा पर अनेक सिद्ध महापुरुषों ने जन्म लिया है। इनमें से ही एक महान ज्योतिषी, प्रकांड विद्वान और वेदों के ज्ञाता वराह मिहिर का नाम आता है। वराह मिहिर का जन्म 505 ईस्वी में उज्जैन के निकट कायथा नामक स्थान पर एक ज्योतिषी परिवार में हुआ था। इनके पिता आदित्य दास भगवान सूर्य के अनन्य उपासक थे, इन्होंने ही मिहिर को ज्योतिष विद्या सिखाई थी।
वराह मिहिर उज्जैन के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार में नौ रत्नो मे शामिल थे। किवदंती के अनुसार राजा विक्रमादित्य को प्रमुख रानी से पुत्र प्राप्त हुआ, जन्म के समय विक्रमादित्य ने अपने पुत्र की जन्म कुंडली दरबार में बैठे कालिदास, वराह मिहिर आदि ज्योतिर्विदों के समक्ष प्रस्तुत की! तभी वराह मिहिर ने शिशु राजकुमार की कुंडली के ग्रहों की गणना कर बताया कि 18 वें वर्ष में राजकुमार की वराह (सूअर) के द्वारा मृत्यु निश्चित है।
तब राजा विक्रमादित्य ने सेनापति को आदेश दिया की अमुक वर्ष मे कोई भी हिंसक पशु राज्य में प्रवेश न कर पाए, राजा विक्रमादित्य का राजकीय चिन्ह वराह (सूअर) था। जो कि उनके सभी राज्य ध्वजों पर अंकित था एवं राज्य चिन्ह का प्रतीक एक विशाल मूर्ति राजमहल में रखी हुई थी! वराह मिहिर द्वारा बताई गई तिथि पर राजकुमार को महल में ही रखा गया तथा बाहर सैनिको कि फौज तैनात कर दी गई अमुक समय में एक आंधी आई और राजमहल में रखें विशाल वराह (सूअर) की मूर्ति राजकुमार पर गिर गई और राजकुमार के प्राण निकल गए।
वराह मिहिर ने गणित एवं ज्योतिष में व्यापक शोध किया था! विज्ञान के इतिहास में वराह मिहिर वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने बताया की कोई शक्ति है जो चीजों को पृथ्वी से बांधे रखती है आज विज्ञान में उसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। वराह मिहिर ने ही पंच सिद्धांतिका मैं सर्वप्रथम बताया कि अयनांंश का मान 50.32 सेकंड के बराबर होता है। ज्योतिषी और खगोल पर इन्होंने कई ग्रंथ और पुस्तक भी लिखी है जिनमें फलित ज्योतिष के लघु जातक, बृहद जातक तथा वृहत संहिता प्रमुख है।
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