नई दिल्ली (New Delhi)। भारत (India) ने जी-20 शिखर सम्मेलन (G-20 summit) के सफल आयोजन के जरिए चीन (China) को कूटनीतिक मोर्चे (Many setbacks on Diplomatic front) पर कई झटके दिए हैं। चीन को सम्मेलन की सफलता और इसके जरिए भारत की बढ़ती कूटनीतिक धमक का अहसास संभवत: पहले से था। इसलिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग (President Xi Jinping) ने पहले ही इस आयोजन से दूरी बना ली और वह खुद शामिल नहीं हुए। मगर, इस सम्मेलन के जरिए भारत ने यह दिखा दिया है कि वैश्विक कूटनीति में अब उसका मुकबला करना चीन के लिए संभव नहीं है।
जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद जारी दिल्ली घोषणा-पत्र (Delhi Declaration) पर आम सहमति कायम करना भारतीय कूटनीतिक कौशल की सबसे बड़ी उपलब्धि (greatest achievement of Indian diplomatic skills) है। चीन को इसकी कतई उम्मीद नहीं थी। उसे यह अंदेशा था कि यूक्रेन के मुद्दे पर भारत को आम सहमति में मुश्किलें आएंगी, क्योंकि पश्चिमी देशों के दबाव में रूस का बचाव मुश्किल होगा। मगर, भारत ने अपनी सूझबूझ से इस समस्या से पार पा लिया।
इसी तरह दक्षिण अफ्रीका यूनियन को भारत की पहल पर जी-20 में शामिल कराना भी भारत की कूटनीतिक जीत है और यह चीन के लिए झटका भी है। इससे अफ्रीकी देशों में भारत का कारोबार और रणनीतिक संबंधों को लेकर प्रभाव बढ़ेगा और चीन का कम होगा। चीन ने इसका समर्थन जरूर किया, लेकिन शुरुआत में उसने चुप्पी साध रखी थी।
चीन ने महसूस किया कि जी-20 के सभी सदस्य देश इसके पक्ष में हैं, इसलिए शिखर सम्मेलन से दो दिन पूर्व ही उसने इसका समर्थन किया। भारत के लिए दक्षिण अफ्रीका यूनियन के 55 देश इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का स्थाई सदस्य बनने का मौका आएगा तो अफ्रीकी देशों का सहयोग निर्णायक साबित होगा।
देशों को कर्ज के जाल में फंसाने का हथकंडा काम न आएगा
चीन कर्ज के जाल में फंसे देशों के वित्तीय प्रबंधन से जुड़े प्रस्ताव को लेकर भी अनमना हो रखा था और वह नहीं चाहता था कि इसे मंजूरी मिले। जबकि भारत इसके पक्ष में था और इसे मंजूरी भी मिल गई। इससे श्रीलंका समेत कर्ज में फंसे कई देशों को फायदा होगा। जो देश लाभान्वित होंगे, उनमें से ज्यादातर ऐसे छोटे देश हैं, जो चीन के कर्ज के जाल में फंसकर तबाह हो रहे हैं। मगर, अब चीन का देशों को कर्ज के जाल में फंसाने का हथकंडा भविष्य में काम नहीं आएगा।
आर्थिक गलियारे की घोषणा से चीन को जवाब
शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारे की घोषणा भी चीन के (बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव) बीआरआई का जवाब है। दरअसल, चीन दूसरे देशों में रेल, सड़क और बंदरगाह बनाकर इस प्रकार के कॉरिडोर बनाता है और उनकी सीमाओं में हस्तक्षेप भी करता है। मगर, भारत की यह पहल न सिर्फ बड़ी है, बल्कि इसमें शामिल देशों की संप्रभुता का पूरा ख्याल भी रखा जाएगा।
इस पहल से भारत और यूरोपीय देशों के बीच व्यापार और संपर्क बढ़ेगा। दूरगामी परिणाम यह होगा कि इससे भविष्य में चीन का भारत और यूरोपीय देशों को होने वाला निर्यात घटेगा।
जैव ईधन गठबंधन की पहल चीन के लिए चुनौती
शिखर सम्मेलन के जरिए भारत की जैव ईधन गठबंधन की पहल भी चीन के लिए चुनौती है। क्योंकि, चीन सबसे बड़ा प्रदूषक है और उसने आज तक हरित क्षेत्र में कोई अंतरराष्ट्रीय पहल नहीं की है। जबकि, भारत पूर्व अंतरराष्ट्रीय सोलर एलायंस की शुरुआत कर चुका है और अब जैव ईधन गठबंधन की पहल कर जलवायु मोर्चे पर भी बढ़ती ली है। योग और मोटा अनाज को बढ़ावा देना भी भारत की महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय पहल है।
भारत की संस्कृति का प्रसार
शिखर सम्मेलन के जरिए न सिर्फ भारत की कूटनीतिक धमक बढ़ी है, बल्कि इससे भारत की संस्कृति का भी प्रसार हुआ है। भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के दौरान ‘वसुधैव कुटंबकम’ की भावना को बढ़ावा दिया, जिसे पूरी दुनिया में स्वीकार्यता मिली। इसलिए चीनी मीडिया में कहानियां लिखी जा रही हैं कि भारत इस कूटनीतिक मंच के जरिए अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।
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