नई दिल्ली (New Delhi)! success story -छोटे-छोटे गांव की लड़कियों को पढ़ाई करने के लिए आज भी मुसीबतों (troubles) का सामना करना पड़ता है। कुछ लड़कियां इन मुसीबतों से हार कर पढ़ाई बंद कर देती है, लेकिन कुछ लड़कियां अपने हौसले को बुलंद रखते हुए जीवन में कुछ कर गुजरती है। ऐसी ही एक छोटे से गांव की लड़की है, जिसने अपना नाम रोशन किया।
बता दें कि 11 साल की छोटी उम्र में श्रद्धा धवन ने अपने दिव्यांग पिता सत्यवान की मदद शुरू कर दी थी। वह पिता की भैंसों को चराने ले जातीं। दूध निकालतीं। आसपास की डेयरियों तक पहुंचाने का काम भी श्रद्धा के ही जिम्मे था। तब शायद उन्हें नहीं पता था कि जिस काम में वह इतनी मेहनत कर रही हैं, कभी वही 1 करोड़ रुपये के सफल उद्यम की नींव रखेगा। 14 साल की उम्र तक श्रद्धा ने दूध दुहने से लेकर मोल-भाव तक भैंसों के व्यापार में महारत हासिल कर ली थी।
आज फिजिक्स में कर चुकी हैं MSc
अब 24 साल की उम्र में श्रद्धा के पास फिजिक्स में एमएससी की डिग्री है। वह महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के निघोज गांव में ‘श्रद्धा फार्म’ की मालकिन हैं। यह फार्म 80 भैंसों का घर है। दो मंजिल में यह बना हुआ है। भैंसों के व्यापार से डेयरी फार्मिंग में श्रद्धा ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए। लोन पर निर्भर हुए बगैर मवेशियों की संख्या बढ़ाने के लिए वह मुनाफे को कारोबार में लगाती रहीं। इस तरह 2017 तक उनके फार्म में 45 भैंसें तैयार हो गई थीं। श्रद्धा ने बड़ी सावधानी से दूध की क्वालिटी में सुधार पर फोकस किया।
हालांकि, श्रद्धा यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने वर्मीकम्पोस्टिंग बिजनेस में कदम रखे। सीएस एग्रो ऑर्गेनिक्स ब्रांड के तहत हर महीने 30,000 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन किया। इसके अलावा श्रद्धा ने एक बायोगैस प्लांट स्थापित किया जो बिजली पैदा करने के लिए गोबर के घोल का इस्तेमाल करता है। इससे उनका फार्म जीरो-वेस्ट बिजनेस बन जाता है।
1 करोड़ का बनाया कारोबार
अपनी कारोबारी सफलता से अलग श्रद्धा इच्छुक उद्यमियों के साथ अपने ज्ञान और अनुभव को शेयर भी करती हैं। इसके लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में उनके डेयरी, वर्मीकम्पोस्ट और प्रशिक्षण व्यवसायों ने मिलाकर 1 करोड़ रुपये का राजस्व पैदा किया। यह उनके दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत का सबूत है।
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