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    राम मंदिर विवाद में कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने में उलझीं अनुविभागीय अधिकारी

  • February 01, 2024

    • कोर्ट ने उचित कार्रवाई के लिए संभागायुक्त और शासन को पत्र लिखने के दिए निर्देश

    इंदौर। शहर के एक सार्वजनिक राम मंदिर विवाद में कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने के मामले में बिचौली हप्सी की अनुविभागीय अधिकारी प्रिया आशीष पटेल उलझ गई हैं। 17वें अपर सत्र न्यायाधीश सुधीर मिश्रा की कोर्ट ने एक पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ उचित कार्रवाई के लिए संभागायुक्त इंदौर को पत्र लिखकर उसकी प्रति सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग मप्र शासन को भेजने के निर्देश दिए हैं।

    मामला सकल पंच सार्वजनिक श्रीराम मंदिर ट्रस्ट बड़ी ग्वालटोली का है। मामले के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि शिकायतकर्ता राजू बौरासी ने इस मंदिर के संचालकों द्वारा ठीक से रखरखाव न करने, चढ़ावे की राशि का दुरुपयोग करने, तोडफ़ोड़ करने एवं अन्य तथ्यों संबंधी शिकायत पंजीयक लोक न्यास को की थी, जिस पर पंजीयक ने पत्र के माध्यम से अनुविभागीय अधिकारी, अनुभाग बिचौली हप्सी (थाना पलासिया) को लिखा था। अनुविभागीय दंडाधिकारी द्वारा आदेश पारित कर मंदिर की संपत्ति के रखरखाव व वित्तीय लेन-देन के कार्य के निर्वहन हेतु अंतरिम समिति बनाई दी गई, जिसके सदस्य जितेंद्र चौधरी व नंदू बौरासी बनाए गए। यह आदेश भी किया गया कि उक्त समिति पंजीयक लोक न्यास के अधीन रहते हुए वित्तीय लेन-देन का कार्य संपादित करेगी।

    आदेश को दी चुनौती
    उक्त आदेश के विरुद्ध मंदिर के ट्रस्टी भागीरथ बौरासी द्वारा पूर्व में एक पुनरीक्षण याचिका कोर्ट में प्रस्तुत की गई थी, जिसमें कोर्ट द्वारा अनुविभागीय दंडाधिकारी का उक्त अंतरिम समिति बनाने का आदेश अपास्त किया गया था एवं मामला प्रतिप्रेषित करते हुए यह आदेशित किया गया था कि अनुविभागीय दंडाधिकारी ट्रस्ट के दस्तावेज व चार्ज के संबंध में उचित आदेश पारित करें।


    फिर ये दिया आदेश
    हाईकोर्ट के निर्देश के बाद अनुविभागीय दंडाधिकारी द्वारा आदेश पारित कर अपर सत्र न्यायालय द्वारा पुनरीक्षण याचिका में दिए गए आदेश का यह उल्लेख करते हुए पालन नहीं किया कि इस न्यायालय को ट्रस्ट के दस्तावेज एवं चार्ज के संबंध में आदेश पारित करने का क्षेत्राधिकार नहीं है एवं उभयपक्षों को मौके पर शांति बनाए रखने के लिए 50-50 हजार रुपए का मुचलका प्रस्तुत करने का आदेश भी पारित किया।

    नहीं किया आदेश पारित
    तय तारीख को उभयपक्षों के प्रतिनिधि अनुविभागीय दंडाधिकारी के समक्ष उपस्थित हुए, परंतु लंबे समय तक उनके द्वारा पुनरीक्षण याचिका में दिए गए निर्देशानुसार आदेश पारित नहीं किया गया। तब पुनरीक्षणकर्ता द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष सिविल अवमानना प्रस्तुत की गई। हाईकोर्ट ने 15 दिन की समयावधि में आदेश पारित करने के निर्देश अनुविभागीय अधिकारी को दिए।

    फिर से लगाई पुनरीक्षण याचिका

    उक्त आदेश से व्यथित होकर भागीरथ द्वारा पुन: कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत की गई। सभी के तर्क सुनने और तथ्यों के अवलोकन के पश्चात अपर सत्र न्यायाधीश सुधीर मिश्रा की कोर्ट ने अपने आदेश में माना कि इससे यह दर्शित होता है कि अनुविभागीय अधिकारी ने जानबूझकर कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया और बिना किसी आधार के उल्लेख किया कि उक्त न्यायालय को आदेशानुसार आदेश पारित करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए अनुविभागीय अधिकारी के इस आदेश को अपास्त करते हुए आदेशित किया कि वे ट्रस्ट के दस्तावेज और चार्ज के संबंध में 20 फरवरी 2024 तक उचित आदेश पारित करें। इसी के साथ कोर्ट के आदेश का पालन जानबूझकर नहीं करने पर उक्त अनुविभागीय अधिकारी के विरुद्ध उचित कार्रवाई बाबद संभागायुक्त इंदौर को पत्र लिखने और उसकी प्रति सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग मप्र शासन को भेजने के निर्देश दिए।

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