वाशिंगटन (Washington)। प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाले जीन (Genes that increase fertility) की वजह से इंसानी जिंदगी (Human life) छोटी हो सकती है। साइंस एडवांसेज जर्नल (Science Advances Journal) में शुक्रवार को प्रकाशित एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। शोधकर्ताओं ने इंसानी डीएनए डाटा का अध्ययन (Study of human DNA data) कर पता लगाया कि ऐसे सैकड़ों उत्परिवर्तन हैं, जो एक युवा की प्रजनन क्षमता (Fertility of youth) को काफी बढ़ा सकते हैं, पर बाद में जीवन में शारीरिक क्षति को भी बढ़ाते हैं।
यह अध्ययन अमेरिकी विकासवादी जीवविज्ञानी जॉर्ज विलियम्स के 1957 उस सिद्धांत को पुष्ट करता है जिसमें उन्होंने कहा था कि आनुवंशिक उत्परिवर्तन, जो किसी जानवर की प्रजनन क्षमता को बढ़ाते हैं, वे नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। कई पीढ़ियों बाद ये उत्परिवर्तन बोझ बन जाएंगे और बढ़ती प्रजनन क्षमता के साथ उस प्रजाति को जल्दी मृत्यु की ओर ले जाएंगे। कई छोटे अध्ययनों ने भी इस सिद्धांत का समर्थन किया है। हालांकि, मिशिगन यूनिवर्सिटी के विकासवादी जीवविज्ञानी जियानझी झांग इन प्रयोगों से संतुष्ट नहीं थे। उनका कहना है कि ये केस स्टडी हैं, इनसे यह नहीं जान सकते कि पूरे जीनोम में ऐसे बहुत से उत्परिवर्तन हैं या नहीं।
5 लाख लोगों के डीएनए डाटा पर अध्ययन
डॉ. झांग ने संदेह दूर करने के लिए यूके बायोबैंक में मौजूद पांच लाख ब्रिटिश नागरिकों के डीएनए डाटा का इस्तेमाल किया। उन्होंने पता लगाया कि उनके स्वास्थ्य, जीवन व प्रजनन क्षमता के बीच क्या संबंध हैं।
प्रजनन के लिए अच्छा उत्परिवर्तन, दीर्घायु के लिए खराब
डॉ. झांग के साथ प्रजनन व दीर्घायु से जुड़े डाटाबेस के अध्ययन में शामिल शोधकर्ता डॉ. एर्पिंग लॉन्ग ने पाया कि प्रजनन क्षमता से जुड़ी आनुवंशिक विविधताएं, जैसे कि एक स्वयंसेवक के बच्चों की संख्या, उम्र में कमी से जुड़ी हुई थीं। प्रजनन के लिए जो उत्परिवर्तन अच्छा होता है, दीर्घायु के लिए उसके खराब होने की संभावना पांच गुना ज्यादा रहती है। डॉ. झांग कहते हैं कि अध्ययन में जिन उत्परिवर्तनों की पहचान की गई उनमें से प्रत्येक का व्यक्ति की लंबी उम्र पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। क्योंकि, जैसे-जैसे ये उत्परिवर्तन आम हो रहे हैं, पर्यावरण में बदलाव आया है, बेहतर भोजन और दवा मिलने लगी हैं, तो इनका प्रभाव कम हो रहा है।
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