स्टॉकहोम (stockholm)। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) पर अंतरिक्ष यात्रियों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। हालांकि, धरती पर लौटने के बाद उनकी सेहत फिर से सामान्य हो जाती है। स्वीडन के शोधकर्ताओं (Swedish researchers) की एक टीम की ओर से हाल में किए गए अध्ययन में इसका खुलासा किया गया है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, अंतरिक्ष में कदम रखते ही सबसे पहले अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर को कॉस्मिक विकिरण का सामना करना पड़ता है। इसके बाद माइक्रोग्रैविटी यानी शून्य गुरुत्व शरीर के द्रवों (तरल पदार्थों) और रक्तचाप पर प्रभाव डालता। प्रतिरक्षा तंत्र के साथ हृदय, रक्त संचार, पाचन, मांसपेशियों, हड्डियों से जुड़े तंत्रों से लेकर प्रतिरोध प्रणालियों तक पर असर पड़ता है। शून्य गुरुत्व बल के कारण अंतरिक्ष में स्वास्थ्य देखभाल बहुत ही मुश्किल हो जाती है।
कोलोन मेडिकल कॉलेज के स्पेस हेल्थ के शोधकर्ता योखन हिन्केलबाइन डीडब्लू ने कहा कि अंतरिक्ष यात्री, वायरस संक्रमणों की चपेट में भी आ सकते हैं और आमतौर पर पुराने वायरस ही हैं जो किसी अंतरिक्ष यात्री के शरीर में धरती से ही घर किए होते हैं। कनाडा की ओटावा यूनिवर्सिटी से ओडेटे लानेइयुविले के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्रियों में सुप्त पड़े वायरस दोबारा सक्रिय हो जाते हैं। इससे त्वचा के संक्रमण भी उभर आते हैं।
तनाव भी एक कारण
अंतरिक्ष में तनाव के दौरान कई संक्रमण फिर सक्रिय हो सकते हैं। वजह ये है कि प्रतिरोधक प्रणाली तनाव से कमजोर पड़ जाती है और अगर वारिसेला जोस्टर वायरस रिएक्टिवेट हो जाता है तो वो एक किस्म का त्वचा-रोग पैदा कर देता है, जो एक गंभीर बीमारी है।
कई अंतरिक्ष यात्रियों पर अध्ययन
जून 2023 में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कई अंतरिक्ष यात्रियों पर अध्ययन किया। इसमें उनकी टीम ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर 6 महीने की अवधि के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों की प्रतिरोधक प्रणालियों में बदलावों की जांच की।
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