नई दिल्ली (New Delhi)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले (Sarkaryavah Dattatreya Hosabale) ने एक साक्षात्कार में आपातकाल (emergency) के खिलाफ हुए संघर्ष को दूसरा स्वतंत्रता संग्राम बताया और इस दौरान उस कालखंड में हुए अमानवीय अत्याचार को बताते हुए भावुक हो उठे।
आपातकाल की परिस्थितियों को लेकर विश्व संवाद केंद्र (भारत) को दिए एक साक्षात्कार में सरकार्यवाह ने बताया कि उस समय के हालात क्या थे। किन कारणों से आपातकाल लगाया गया। आपातकाल का विरोध किस प्रकार हुआ और इस दौरान राजनीतिक बंदियों को को क्या-क्या सहना पड़ा। साथ ही, इस आंदोलन में संघ ने कैसे अपनी कार्य पद्धति का इस्तेमाल करते हुए विरोध का मार्ग अपनाया और संघर्ष को मजबूत किया।
उल्लेखनीय है कि 25 जून 1975 को यानी आज के ही दिन देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी।
सरकार्यवाह ने कहा कि आपातकाल संकट के समय में किया जाने वाला संवैधानिक प्रावधान है। इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। जब तक देश में गैर राजनीतिक जागरूक नेतृत्व समाज में है। दमनकारी नीतियां कामयाब नहीं हो सकती।
सरकार्यवाह ने कहा कि तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने हमें आपातकाल की बातों को भूल जाने की सलाह दी थी लेकिन यह काला अध्याय है और इतिहास के पन्नों में अंकित है। उस दौरान की गई क्रूरता और अमानवीय व्यवहार आज भी मन को दुख से भर देता है। इसके चलते कुछ लोगों को जीवन भर के लिए विकलांगता का सामना करना पड़ा या उन्हें कोई भी व्याधि हो गई।
दत्तात्रेय ने बताया कि उस समय राजनीतिक बंदियों के साथ कैसा दुर्व्यवहार किया जाता था। बेंगलुरु की एक महिला गायत्री का जिक्र करते हुए वह भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि उस महिला को प्रसव के दौरान बेड़ियों से बांधा गया था।
उन्होंने बताया कि अन्य संगठनों की तरह संघ के संगठनों पर भी प्रतिबंध लगाया गया। हमारे कार्यक्रमों की सूची लेकर स्वयंसेवकों को घर से ही उठा लिया गया। ऐसे समय में पुराने समय में सक्रिय रहे संघ के कार्यकर्ताओं ने बड़ी भूमिका निभाई। सरकार और पुलिस को उनकी जानकारी नहीं थी लेकिन वह आर्थिक और अन्य दृष्टि से सहयोग करते रहे।
उन्होंने कहा कि इतना सब होने के बावजूद भी संघ का कार्यकर्ता संगठन को छोड़कर नहीं गया। किसी के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। आपातकाल के खिलाफ लोकतंत्र संघर्ष समिति बनी जिसमें संघ के कार्यकर्ताओं ने बढ़-चढ़कर योगदान दिया। प्रजातंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं है और उस समय भी आपातकाल का विरोध करने के लिए प्रजातांत्रिक तरीकों को अपनाया गया।
दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि आपातकाल लगाने के तीन कारण थे। एक तरफ जेपी आंदोलन था दूसरी तरफ कांग्रेस गुजरात चुनाव में हार गई थी। वही इलाहाबाद हाई कोर्ट का इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला आया था। यानी जनता, न्यायालय और चुनाव तीनों जगह इंदिरा गांधी सरकार पिछड़ रही थी। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान से भी छेड़छाड़ की गई। संविधान में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द जोड़े गए। चुनाव 5 साल के स्थान पर 6 साल में कराए जाने लगे।
उन्होंने कहा कि संघ कार्य में घर-घर जाकर संपर्क करने की व्यवस्था रहती है। आपातकाल के दौरान इसका स्वयंसेवकों ने लाभ उठाया और लोगों को जागरूक करने और आपातकाल के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए इसका इस्तेमाल किया। इसके जरिए संचार किया गया और कई तरह की जरूरी व्यवस्थाएं की गई।
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