मदन मोहन अवस्थी, जबलपुर। राजनीति के ताजातरीन दौर में अपने सबसे बुरे वक्त में कांग्रेस को अपनों का भी सहारा नहीं है। विधानसभा और फिर लोकसभा में जनता से मिली करारी हार के बाद अब पार्टी अपने ही नेताओं की वर्चस्व के जुनून का शिकार हो गयी है। जबलपुर के दो कांग्रेसी नेताओं में इस कदर खेमेबाजी है कि प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के नेताओं से भी इतना अलगाव नहीं होता। फिक्र ये नहीं है कि नेता अपनी अहं की लड़ाई सबके सामने ले आए हैं। चिंता ये है कि जमीनी कार्यकर्ता का इस बुरे वक्त में भी जो आत्मबल शेष है, वो धीरे-धीरे और क्षीण हो रहा है।
हालात कितने बुरे हैं
कांग्रेस को दो भागों में बांटने वाले नेताओं ने अपने गुट के कार्यकर्ताओं को इतनी इजाजत भी नहीं दी है कि वे दूसरे नेता के कार्यक्रम में शिरकत कर सकें। ऐसी तस्वीर भी सामने आई जब ऐसा दुस्साहस करने वाले कार्यकर्ताओं को तगड़ी फटकार लगाई गयी। कार्यकर्ताओं के आंदोलन और विरोध-प्रदर्शन भी गुट आधारित हो रहे हैं। एक गुट के कार्यक्रम में दूसरा गुट लापता रहेगा तो दूसरे के कार्यक्रम से पहला गुट गायब। ये सिलसिला शुरु तो विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से शुरु हो गया,लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद लकीर गहरी हो गयी है। हाल ही जब कांग्रेस के दिग्गज राहुल गांधी के समर्थन में कांग्रेस के दोनों गुटों ने अलग-अलग प्रदर्शन किए और दोनों कार्यक्रमों में गुटीय संतुलन बनाए रखा गया।
भोपाल तक खबर मगर सब बेखबर
कुछ कार्यकर्ताओं ने इस आशय की शिकायत भोपाल में बैठे आला पदाधिकारियों तक पहुंचाई,लेकिन किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। कांग्रेस के एक बड़े नेता जब जबलपुर प्रवास पर आए थे तब भी कुछ कार्यकर्ताओं ने मौका मिलते ही उन्हें गुटबाजी के संकट से अवगत करा दिया था,लेकिन वे दिग्गज भी कुछ कर नहीं सके। इससे पहले कांग्रेस की लोकसभा चुनाव की बैठकों में भी दरारें साफ दिखाई दे रही थीं फिर भी इस मर्ज को बढऩे दिया गया।
तीसरा मोर्चा फिलहाल खामोश
जबलपुर में कांग्रेस को अपने तौर-तरीकों से चलाने के लिए संघर्ष कर रहे इन दो गुटों के साथ एक तीसरा गुट भी है,जो इस वक्त कई कारणों से खामोश है। हालाकि, ये खामोशी अल्पकालिक ही है। जल्दी ही इस गुट का भी जंग में पर्दापण होगा। सूत्रों का कहना है कि संभव है कि तीसरा गुट पहले से सक्रिय दो गुटों में से किसी एक को समर्थन दे दे। वहीं, एक वरिष्ठ नेता का दावा है कि दो गुटों के बीच आग लगाने का काम ही तीसरे गुट ने शुरु किया है।
संगठन की भूमिका नगण्य
कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के लिए अति निराशाजनक बात ये है कि कांग्रेस का नगर संगठन दिग्गजों के सामने खामोश हो गया है। संगठन स्तर के कई कार्यक्रम केवल इसलिए टाल दिए गये या उनका स्वरूप बदला गया ताकि इन दो गुटों में से कोई गुट नाराज न हो जाए। गौरतलब है कि नगर संगठन के नए गठन के बाद लगा था कि जबलपुर में कांग्रेस के दिन लौटेंगे,लेकिन कांग्रेस तो कई मील और पीछे चली गयी। गुटबंदी की ये आग कांग्रेस के ग्रामीण इलाकों में भी बराबर विस्तार पा रही है। ग्रामीण कांग्रेस में कोई बड़ा नेता न होने कारण गांव के कार्यकर्ता भी जाने-अंजाने शहर के इन दो गुटों का हिस्सा बन रहे हैं।
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