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ऑपरेशन थिएटर की हालत देख भौंचक जांच दल

October 02, 2020


मामला अवैध गर्भपात की शिकायत पर सील किए अस्पताल का

डेढ़ साल पहले खत्म हो गया रजिस्ट्रेशन… अलमारियां रखी मिली

इंदौर। अवैध गर्भपात के आरोप में कलेक्टर मनीष सिंह के निर्देश पर एरोड्रम रोड स्थित संयोग हॉस्पिटल पर छापा मारा गया और अस्पताल को सील भी कर दिया गया। जांच टीम ने अस्पताल के साथ जब ऑपरेशन थिएटर का अवलोकन किया तो वहां की दशा देखकर भी भौंचक रह गए। अस्पताल में तो गंदगी, मेडिकल कचरा, गर्भपात की दवाएं और अन्य सामग्री तो मिली ही, वहीं ऑपरेशन थिएटर भी अत्यंत संकरा और वहां पर 2-2 अलमारियां तक रखी पाई गई। लेबर रूम की हालत भी इसी तरह दयनीय मिली और रजिस्ट्रेशन भी डेढ़ साल पहले मार्च-2019 में खत्म हो गया था, जिसका नवीनीकरण भी नहीं करवाया गया। यानी डेढ़ वर्ष से अवैध तरीके से इस अस्पताल का संचालन किया जा रहा था। अब जांच दल अपनी रिपोर्ट कलेक्टर को सौंपेंगे, उसके बाद अस्पताल संचालकों के खिलाफ कडी कार्रवाई होगी।  लगभग 3 घंटे तक जांच टीम में शामिल एसडीएम, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और अन्य दो सदस्यों ने जांच-पड़ताल की।

कलेक्टर मनीष सिंह को शिकायत मिली थी कि संयोग अस्पताल में अवैध तरीके से गर्भपात करवाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पीसीपीएनडीटी एक्ट लागू हो जाने के बाद बिना सक्षम स्वीकृति के गर्भपात नहीं करवाया जा सकता, लेकिन इस अस्पताल के खिलाफ यह भी शिकायत मिली कि इसमें एक युवती का 6 माह का गर्भ अवैध तरीके से किया, जिसकी शिकायत भी प्रशासन को  प्राप्त हुई। लिहाजा कलेक्टर ने एसडीएम रवीश श्रीवास्तव, स्वास्थ्य विभाग के डॉ. अमित मालाकर, एमपी वॉलेंटियर एसोसिएशन के मुकेश सिन्हा और डॉ. सुमित्रा यादव की टीम बनाकर अस्पताल पर छापा डलवाया। एरोड्रम रोड स्थित इस अस्पताल के संचालक रजनीश जैन हैं। उन्होंने गर्भपात की किसी भी घटना से इनकार किया, लेकिन अस्पताल और मेडिकल स्टोर में गर्भपात से संबंधित दवाइयां पाई गई और ये दवाइयां किन मरीजों को दी गई उनका कोई रिकॉर्ड नहीं पाया गया। जबकि डॉ. अमित मालाकार का कहना है कि गर्भपात की दवाइयां जिन मरीजों को दी जाती है उनका पूरा रिकॉर्ड रजिस्टर में मेंटेन करना जरूरी है और इसकी जानकारी भी स्वास्थ्य विभाग को दी जाती है, लेकिन यहां पर ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। पिछले दिनों एक नाबालिग के गर्भपात के ऑडियो-वीडियो के जरिए प्रशासन को शिकायत मिली थी कि और यह शिकायत नाबालिग के परिजनों ने ही करवाई, जिसके आधार पर यह छापा डाला गया। जांच में यह भी पता चला कि रजिस्ट्रेशन मार्च-2019 तक ही था, जिसका बाद में नवीनीकरण नहीं करवाया। यानी डेढ़ साल से अवैध तरीके से ही अस्पताल का संचालन किया जा रहा था। अस्पताल में सफाई की व्यवस्था भी खराब मिली और नर्र्स, पैरामेडिकल स्टाफ की भी बेहतर व्यवस्था नहीं थी और सिर्फ 2 सफाईकर्मी ही मरीजों की देखभाल करते पाए गए। एसडीएम रवीश श्रीवास्तव और उनकी टीम ने दस्तावेजों को जब्त किया और फिर अस्पताल को भी सील कर दिया। अब इसकी पूरी रिपोर्ट कलेक्टर को बनाकर दी जा रही है। इसके पश्चात अस्पताल संचालकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जांच टीम ने लेबर रूम और ऑपरेशन थिए टर का भी अवलोकन किया और उसकी दुर्दशा देखकर भौंचक रह गए। कम जगह में लेबर रूम और ऑपरेशन थिएटर बनाया गया और यहां तक कि थिएटर में अनावश्यक सामग्री, दो-दो अलमारियां रखी गई थीं, जबकि इस तरह की कोई सामग्री किसी ऑपरेशन थिएटर में नहीं रहती है, वरना उससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। ऑपरेशन थिएटर से संबंधित भी रजिस्टर और रिकॉर्ड ठीक तरह से रखे नहीं पाए गए। इन सबको भी सील कर लिया है। उपकरणों को संक्रमणमुक्त यानी स्टेबलाइजेशन की भी कोई व्यवस्था अस्पताल में नहीं पाई गई और यहां तक कि गंदे कपड़े, मास्क, दवाइयां खुले में फैंकी पाई गई। ना तो कोई डॉक्टर, नर्स या मेडिकल स्टाफ मौके पर पाया गया। जो मेडिकल स्टोर अस्पताल के साथ लगा है वहां पर भी एक कर्मचारी ही दवाई देता पाया गया। ना तो फार्मासिस्ट की व्यवस्था मिली और स्टोर से भी गर्भपात की दवाइयां सील की गई। अस्पताल संचालक ने लाख सफाई दी और कहा कि नवीनीकरण के लिए अप्रैल में ही आवेदन दे दिया था, लेकिन अभी तक स्वास्थ्य विभाग ने नहीं किया और यहां पर अवैध गर्भपात भी नहीं किया जाता है, जबकि यह भी पता चला कि अवैध गर्भपात के लिए डॉक्टर यहां पर मरीज को भेज देते हैं, जिसका पैकेज तय है, उसके मुताबिक राशि वसूल की जाती है।

8 हजार गर्भवती महिलाओं के कागजों में लापता होने का खुलासा किया था अग्निबाण ने
अग्निबाण ने पिछले दिनों ही खुलासा किया था कि 8 हजार गर्भवती महिलाओं के रिकॉर्ड ना तो उपलब्ध हैं और कागजों पर लापाता इन गर्भवती महिलाओं की तलाश प्रशासन ने शुरू करवाई है। सोनोग्राफी सेंटरों पर लिंग प्रशिक्षण तो प्रतिबंधित है, लेकिन चोरी-छुपे करवाया जाता है, जिसके कारण हर सोनोग्राफी मशीन पर ट्रेकिंग सिस्टम लगवाया गया है, जिससे एक-एक सोनोग्राफी की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग द्वारा ली जाती है। पिछले दिनों अपर कलेक्टर पवन जैन ने पीसीपीएनडीटी एक्ट की सलाहकार समिति की बैठक में समीक्षा करते हुए पाया कि कई गर्भवती महिलाओं के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। लिहाजा बीते तीन सालों की जानकारी निकलवाई, तो पता चला कि लगभग 8 हजार गर्भवती महिलाओं के रिकॉर्ड मैच नहीं कर रहे हैं, जिसकी जांच करने के निर्देश स्वास्थ्य विभाग को दिए गए हैं। दरअसल हर सोनोग्राफी सेंटर में गर्भवती महिला से फार्म एफ भरवाया जाता है और फिर जितनी डिलीवरी यानी प्रसव होते हैं उनका भी रिकॉर्ड रखा जाता है, उससे पता चलता है कि कितनी गर्भवति महिलाओं ने सोनोग्राफी करवाई और बाद में कितनों के प्रसव के रिकॉर्ड हासिल हुए।

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