जम्मू। सियाचिन (siachen) पर सामरिक दृष्टि से सबसे ऊंची और महत्वपूर्ण चोटी कब्जा कर पाकिस्तानी सेना (Pakistani Army) भारतीय फौज (indian army) की गतिविधियों को बाधित कर रही थी। उसने चोटी का नाम कैद-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना (Qaid-e-Azam Mohammad Ali Jinnah) के नाम पर कैद पोस्ट घोषित कर दिया।
मई 1987 में लेफ्टिनेंट राजीव पांडे और उनकी पैट्रोलिंग टुकड़ी पर पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला कर पांडे समेत कई जवानों को शहीद कर दिया। इसके बाद 8 जैक लाई बटालियन को कैद पोस्ट से दुश्मन को खदेड़ने का जिम्मा मिला, जिसे लेफ्टिनेंट पांडे के नाम से ऑपरेशन राजीव नाम दिया गया।
जम्मू के आरएस पुरा निवासी परमवीर कैप्टन बाना सिंह कहते हैं कि दुश्मन ऊंचाई पर था। हमारी गतिविधियां उसकी नजर में थीं। हेलिकॉप्टर ड्रॉपिंग से लेकर अन्य मूवमेंट पर पाकिस्तानी सेना फायरिंग कर रही थी। हमें पता था कि दुश्मन को खदेड़ने के लिए बर्फ की बेहद ऊंची दीवार चढ़ना आसान नहीं है, लेकिन भारतीय फौज में नामुमकिन शब्द की कोई जगह नहीं है।
बर्फबारी या फिर अंधेरा होने पर हम चढ़ाई करते
ऑपरेशन राजीव को अंजाम देने के लिए हमारी टुकड़ी ने 24 जून को चढ़ाई शुरू की। बर्फबारी या फिर अंधेरा होने पर हम चढ़ाई करते। सोनम पोस्ट से कैद पोस्ट तक पहुंचने के दौरान हम टैक्टिकल मोर्चे बनाते हुए आगे बढ़े। चोटी चढ़ने में 8 घंटे लगे लेकिन पड़ावों के चलते यह सफर तीन में तय हुआ।
सामना होने पर हम दुश्मन पर भारी पड़े
सामना होने पर हम दुश्मन पर भारी पड़े। हम हमलावर थे और वो भौचक्के। ग्रेनेड हमले से लेकर दुश्मन से हैंड-टू-हैंड फाइट में हमारी टुकड़ी ने दुश्मन को मार गिराया। कैप्टन बाना सिंह ने कहा कि 35 साल बाद भी वे मानते हैं कि ऑपरेशन राजीव में जीत का परचम साहस और शौर्य से भरे एक सामूहिक प्रयास से संभव हो सका। इसमें शहीदों की कुर्बानी से लेकर देश की दुआओं का योगदान था।
सियाचिन ग्लेशियर पर पीने को पानी नहीं था
परमवीर कैप्टन बाना सिंह ने कहा – हमें दुनिया के सबसे ऊंचे मोर्चे पर धावा बोलना था। सियाचिन ग्लेशियर पर हमें 21153 फुट की ऊंचाई पर घुस आए दुश्मन को खदेड़ना था। खून जमा देने वाली बर्फीली हवाओं के बीच हम 1200 फुट से भी ऊंची बर्फ की दीवार चढ़ रहे थे। पीने को पानी नहीं था। तीन दिन तक बर्फ को मुंह में डालकर गले को थोड़ा तर करते और आगे बढ़ते जाते।
तीन दिन में पहली बार भूख लगी
23 जून को निकली हमारी टुकड़ी 26 जून को पाकिस्तान की ओर से घोषित की गई कैद-ए-आजम चौकी पर पहुंचते ही दुश्मन पर टूट पड़ी। इस पोस्ट को वापस हासिल करने के बाद तीन दिन में पहली बार भूख लगी। वहां पाकिस्तानी सैनिकों का स्टोव पड़ा था। जांचने पर उसमें तेल भी मिला, लेकिन हमारे पास आग जलाने के लिए माचिस की एक तीली भी नहीं थी।
उन चावलों का स्वाद आज भी याद
हमारी टुकड़ी से एक जवान क्रॉलिंग करता हुआ बर्फ की दीवार के उस प्वाइंट तक माचिस लेने गया, जहां हमने फायर प्वाइंट बना रखा था। दुश्मन के स्टोव से उन्हीं के चावल पकाने के लिए आग जलाने में हमें घंटों लग गए। उन चावलों का स्वाद आज भी याद है।
अग्निपथ योजना: देश की संपत्ति नहीं अपना घर जलाया
अग्निपथ योजना के विरोध में हिंसक प्रदर्शन पर कैप्टन बाना सिंह का कहना है कि योजना कितनी कारगर साबित होती है, यह चार साल बाद पता चलेगा, लेकिन इसे लेकर आगजनी करने वालों ने सरकारी संपत्ति नहीं अपना घर जलाया है। फौज का हिस्सा बनने वाला जुनून कभी ऐसी हरकत नहीं कर सकता। वाहन, ट्रेनों समेत संपत्ति को आग के हवाले करने का हर्जाना देश के आम नागरिक को ही टैक्स के जरिये भुगतना होगा। युवाओं को अग्निपथ योजना को नौकरी से ज्यादा देशसेवा से जोड़कर देखना होगा।
लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा – बटालियन पर गर्व
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने ट्वीट कर कहा – 35 साल पहले मेरी बटालियन ने दुनिया में सबसे ऊंचाई पर हमले को अंजाम दिया। सियाचिन पर बर्फ की 1200 फुट ऊंची दीवार चढ़कर दुश्मन को खदेड़ा। परमवीर चक्र सम्मानित कैप्टन बाना सिंह, महावीर चक्र सम्मानित सूबेदार संसार चंद समेत तमाम नायकों को सैल्यूट, जय दुर्गे।
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