भोपाल। मप्र आज आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसमें केंद्र सरकार का भी महत्वपूर्ण योगदान है। दरअसल, बीते एक दशक में केंद्र ने मप्र की आर्थिक मोर्चे पर भरपूर मदद की है। इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। केंद्रीय करों में हिस्सेदारी में मप्र अब तीसरे नंबर पर है। 15वें वित्त आयोग ने भी केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी के मौजूदा प्रतिशत को बरकरार रखने की सिफारिश की है। इसके तहत अनुमानित 2026 तक 42 लाख करोड़ रुपए राज्यों को केंद्रांश के रूप में मिलना है। वित्त विभाग से मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय करों में मप्र की हिस्सेदारी की राशि दोगुना से ज्यादा हो गई। सिर्फ 2020- 21 में कोरोना काल में केंद्रीय कर की राशि को कम किया गया। इसके बाद वापस राशि बढ़ाई गई। हालांकि यह पुरानी स्थिति में नहीं पहुंच पाई है। केंद्रीय करों से मिलने वाली राशि पर भी प्रदेश का बजट निर्भर करता है। इस कारण यह राशि महत्वपूर्ण हो जाती है। 2020-21 में केंद्रीय कर की राशि में करीब 17 हजार करोड़ कम होने से राज्य के बजट में भी कटौती करनी पड़ी थी। इस कारण इस बार के बजट में केंद्रीय करों के हिसाब से ही सारे प्रावधान किए जा रहे हैं।
10 साल में दोगुनी हुई हिस्सेदारी
मप्र में पिछले डेढ़ दशक में तेजी से विकास हुआ है। इस दौरान केंद्रीय करों में हिस्सेदारी लगातार बढ़ती गई। प्रदेश में जहां वर्ष 2013-14 में 22715.28 करोड़ रूपए का केंद्रांश मिला था वह 2021-22 में बढ़कर 52247 करोड़ हो गया है। यानी मप्र को मिलने वाला केंद्रांश 10 साल में दोगुना हो गया है। लेकिन केंद्रीय करों की राशि का समय पर न मिलना प्रदेश के लिए बड़ी दिक्कत है। राशि बढ़ तो रही है, लेकिन किस्तें समय पर नहीं मिलती। इससे कई बार प्रदेश सरकार के सामने वित्तीय संकट की स्थिति निर्मित हो जाती है।
जीएसटी राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत
प्रदेश की आय का बड़ा स्रोत जीएसटी कलेक्शन है। केंद्रांश में जीएसटी भी बड़ा फैक्टर है। 2021-22 में एसजीएसटी 23,000 करोड़ रुपए अनुमानित है, जो राज्य के स्वयं कर राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत (35 फीसदी तक) है। हालांकि प्रदेश में एसजीएसटी की किस्त आने में देर हो रही है। केंद्र से 2022 तक राज्यों को नुकसान की भरपाई का प्रावधान है। राज्यों को उनके जीएसटी राजस्व में 14 फीसदी की वार्षिक वृद्धि की गारंटी दी गई है और ऐसा न होने पर राज्यों को इस कमी को दूर करने के लिए मुआवजा अनुदान दिया जाता है। ये अनुदान केंद्र द्वारा वसूले जाने वाले जीएसटी क्षतिपूर्ति सेस से दिए जाते हैं। मप्र को जीएसटी क्षतिपूर्ति की राशि भी समय पर नहीं मिल पा रही है।
लंबे समय से हिस्सेदारी को बढ़ाने की मांग
मप्र लंबे समय से सेवनीय क्षेत्र ज्यादा होने के कारण अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाने की मांग कर रहा है, लेकिन केंद्र ने मांग मानी नहीं है। बीते सालों में केंद्रांश घटने से राज्यों का टैक्स कलेक्शन ज्यादा हो गया है। 2020-21 में 48,801 करोड़ और 2021- 22 में 64,914 करोड़ रुपए राज्य को टैक्स से आमदनी हुई। कोरोना काल के बावजूद प्रदेश में राज्य कर से वसूली से बेहतर स्थिति हुई है। गौरतलब है कि केंद्रीय करों में हिस्सेदारी में उत्तरप्रदेश पहले और फिर दूसरे नंबर पर बिहार है। तीसरे नंबर पर मप्र को 7.548 प्रतिशत केंद्रांश मिलता है। 15वें वित्त आयोग ने भी केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी के मौजूदा प्रतिशत को बरकरार रखने की सिफारिश की है। इसके तहत अनुमानित 2026 तक 42 लाख करोड़ रुपए राज्यों को केंद्रांश के रूप में मिलना है।
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