भोपाल। मप्र में फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर चुनाव लडऩे, नौकरी करने, प्रमोशन पाने के मामलों की भरमार है। इसकी जांच के लिए राज्य स्तरीय छानबीन समिति बनाई गई है। लेकिन राज्य स्तरीय छानबीन समिति का दोहरा मापदंड चर्चा का विषय बना हुआ है। एक ही तरह के मामले में जहां समिति किसी को क्लीन चिट दे देती है तो किसी का प्रमाण-पत्र रद्द कर देती है। इससे लोग पसोपेस में हैं। अभी हाल ही में फर्जी जाति प्रमाण पत्र मामले से खंडवा से विधायक देवेंद्र वर्मा को क्लीन चिट मिल गई है। एससी मामलों से जुड़ी राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने कुछ अफसरों के जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने का निर्णय लिया है, तो डॉक्टर, रेंजर आदि को प्रमाण प्रस्तुत करने दो माह का समय दिया है। अन्य मामलों में जिलों के एसपी से रिपोर्ट तलब की गई है।
विधायक को क्लीन चिट
गौरतलब है कि विधायक देवेंद्र वर्मा के जाति प्रमाण पत्र को लेकर कुंदन मालवीय ने फर्जी प्रमाण पत्र होने की आशंका जताते हुए अनुसूचित जाति छानबीन समिति में शिकायत की थी। देवेंद्र वर्मा के पिता किशोरीलाल वर्मा पूर्व में राज्यमंत्री रहे हैं और उनके जाति प्रमाण मामले में हाईकोर्ट ने 1990 में उनके पक्ष में निर्णय दिया था। इस आधार पर देवेंद्र वर्मा की जाति सिलावट पाई गई है। समिति ने वर्मा को इस मामले से क्लीन चिट दे दी है, लेकिन इसके बावजूद एसपी खंडवा से शिकायत की जांच करने को कहा है। मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी के लेखाधिकारी रामप्रवेश चौहान कोरी होने के कारण इनका जाति प्रमाण पत्र रद्द करने का निर्णय लिया है। सीपीए में सहायक ग्रेड-2 के पद पर पदस्थ रमेश कुमार मेहरा से बैरवा जाति संबंधी दस्तावेज मांगे थे, वे नहीं दे सके।
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