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    स्टार्टअप के जरिए रोजगार सृजन कर रहे हैं युवा

  • July 16, 2021

    – सौम्या ज्योत्सना

    युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार हमेशा नये कदम उठाती है ताकि युवा अपना रोज़गार का सृजन स्वयं कर सकें। शहरी क्षेत्रों के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं के लिए भी केंद्र सरकार ने दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना की शुरुआत भी की थी ताकि वह अपने स्किल को निखार कर अन्य युवाओं के अंदर भी स्वयं का रोज़गार उत्पन्न करने का जोश भर सकें। यूएनडीपी के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में 121 करोड़ युवा हैं, जिनमें सबसे अधिक 21 प्रतिशत युवा भारतीय हैं। अगर इन युवाओं को बेहतर स्किल और अवसर उपलब्ध कराए जाएं, तो वह अपनी तरक्की की सुनहरी दास्तां खुद लिख सकते हैं। आज विभिन्न राज्यों के युवा अपने हुनर को पहचान कर न केवल स्टार्टअप शुरू कर चुके हैं बल्कि दूसरों को रोज़गार के अवसर भी उपलब्ध करा रहे हैं। इनमें बिहार के कुछ युवाओं का कार्य भी उल्लेखनीय है।

    बिहार को भले ही पिछड़ा राज्य कहा जाता रहा है। लेकिन यहां के युवाओं के हौसले और मेहनत के सामने सारी बातें खोखली लगने लगती हैं। 27 वर्षीय मनीषा राजधानी पटना की रहने वाली हैं। उन्होंने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) हैदराबाद से डिजाइनिंग की पढ़ाई पूरी की है। बड़े संस्थान से पढ़ने के बाद उसे कई मल्टीनेशनल कंपनियों में उच्च वेतनमान पर काम करने का अवसर मिल रहा था। मगर उसने बिहार लौटने का फैसला किया ताकि वह बिहार में महिलाओं को रोज़गार के अवसर उपलब्ध करवा सके। हालांकि इस दौरान मनीषा को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन सारी कठिनाइयों को परे रखकर उसने दो साल पहले टिकली नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया।

    महिलाओं के माथे की बिंदी (जिसे स्थानीय भाषा में टिकली कहा जाता है), से प्रेरणा पाकर ही मनीषा ने अपने स्टार्टअप का नाम रखा। उसने बताया कि वर्तमान में टिकली एक ऐसा ब्रांड बन चुका है, जिससे हर महिला स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस करती है। इसके तहत नए और आकर्षक डिजाइन के कपड़ों के आर्डर लिए जाते हैं, जिसे टिकली में काम करने वाली कारीगर महिलाओं द्वारा पूरा किया जाता है। उनकी टीम में कुल मिलाकर 6 लोग हैं, जिनमें मधुबनी पेंटिग समेत सिलाई-कढ़ाई करने वाली महिलाएं भी शामिल हैं। टिकली स्टार्टअप से महिलाओं को अच्छी आमदनी भी हो रही है। हालांकि कोरोना के कारण ऑर्डर कम मिलने से काम की गति थोड़ी धीमी अवश्य पड़ गई थी, मगर लोगों ने दोबारा से ऑर्डर देना शुरू कर दिया है। टिकली के तहत दुल्हन के ब्राइडल सेट और महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले विभिन्न परिधान बनाए जाते हैं। मनीषा अपने काम के प्रचार और प्रसार के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का भी बखूबी इस्तेमाल कर लोगों तक पहुंचने का प्रयास करती हैं। जिससे उनके ब्रांड की पहचान बढ़ती जा रही है, साथ ही लोगों द्वारा बने जान पहचान और काम से प्रभावित होकर भी काफी ऑर्डर मिलते हैं।

    मनीषा अपने साथ आने वाली परेशानियों के बारे में बताती हुए कहती है कि बिहार में बाढ़ एक सबसे बड़ी समस्या है, क्योंकि इससे गांव से आने वाले कारीगरों का काम प्रभावित होता है और उनकी आमदनी रुक जाती है। वहीं राज्य में अभी भी लोग कपड़ों की क्वालिटी और डिजाइन को लेकर बहुत अधिक जागरूक भी नहीं हैं, जिस कारण उन्हें नए डिजाइन को अपनाने में समय लगता है। वह कहती है कि बिहार के युवाओं में क्षमता की कोई कमी नहीं है, आईएएस और आईपीएस जैसे प्रतिष्ठित पदों के साथ साथ कई नामी गिरामी कंपनियों के उच्च पदों पर बिहार के युवा आसीन हैं, जो उनकी क्षमता को प्रदर्शित करता है। लेकिन खुद अपने ही राज्य में उन्हें उचित प्लेटफॉर्म नहीं मिलने और कई बार सरकारी उदासीनता के कारण भी बिहार के युवा अन्य राज्यों की ओर पलायन करने पर मजबूर हो जाते हैं।

    मनीषा बिहार में सरकार द्वारा युवाओं को आंत्रप्रेनरशिप को लेकर जागरूक करने वाली योजनाओं में होने वाली धांधली पर भी चिंतित नज़र आती हैं। वह कहती है कि कई बार जो लोग स्टार्टअप से नहीं भी जुड़े होते हैं, वह भी पैसों की लालच में इन योजनाओं में भाग लेने लगते हैं। जैसे हाल ही में आए मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना में भी धांधली की बात सामने आई है। इस योजना में बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार और स्टार्टअप के लिए सरकार 10 लाख रुपयों की राशि प्रदान कर रही है। लेकिन यहां भी लोग पैसों के लालच में धांधली कर रहे हैं। वह कहती हैं कि भले ही सरकार युवाओं के प्रोत्साहन के लिए योजनाएं लेकर आती है लेकिन अवसर का लाभ उन लोगों को मिल जाता है, जो उसके वास्तविक हकदार नहीं होते हैं। इन सब बातों को सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए ताकि युवाओं को उनके अनुरूप सही अवसर मिल सके।

    युवा केवल व्यवसाय में ही नहीं, बल्कि चिकित्सा के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा और कौशल का लोहा मनवा रहे हैं। कोरोना काल में चिकित्सकों की कमी के कारण अधिकांश लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा था। बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और उसकी गंभीरता को देखते हुए ग्रामीण परिवेश से पटना आए कुछ छात्रों ने समझा और मेडिशाला की नींव रखी। दरअसल पटना बीआईटी के चार छात्रों को अक्सर घर से फोन आते थे और उन्हें डॉक्टर के यहां नंबर लगाने के लिए कहा जाता था, क्योंकि गांवों में बेहतर सुविधाएं नहीं थी। डॉक्टर के यहां नंबर लगा देने के बावजूद भी गांवों से आकर इलाज करवाना लोगों को बहुत महंगा पड़ता था।

    गांव वालों की इस मज़बूरी को सीवान जिले के युवा आंत्रप्रेनर अमानुल्लाह ने समझा और इसे दूर करने का बीड़ा उठाया। इसी के साथ उसने अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर मेडिशाला की शुरुआत की। मेडिशाला एक ऐसा एप्प है, जिसके जरिए लोग घर बैठे ही डॉक्टरी परामर्श से सकते हैं। अमानुल्लाह की टीम में तीन और लोग हैं, जिसमें समस्तीपुर से सुमन सौरभ, रांची से ऋतुराज स्वामी और हिलसा से प्रिंस कुमार शामिल हैं। मेडिशाला एप्प के माध्यम से लोग घर बैठे डॉक्टरों के पास नंबर लगा सकते हैं और वीडियो कॉल के जरिए उनसे जड़ भी सकते हैं। वहीं प्रिस्क्रिप्शन भी मरीज के मेल पर भेज दी जाती है। इसकी शुरुआती कीमत 150/- से है। वर्तमान में इस एप्प पर 250 से ज्यादा डॉक्टर्स मौजूद हैं और 8000 से ज्यादा लोगों द्वारा एप्प का इस्तेमाल किया जा रहा है। इतना ही नहीं इस एप्प के माध्यम से मरीज़ बिहार से बाहर के भी फिजिशियन से लेकर विभिन्न रोगों के एक्सपर्टस से भी जुड़ कर उनसे सलाह ले सकते हैं। इस एप्प सफलता से उत्साहित अमानुल्लाह ने बताया कि वर्तमान में उसे और विस्तार करने की योजना पर तेज़ी से काम किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक ग्रामीणों तक इसकी पहुंच संभव हो सके। इस एप्प का मुख्य उद्देश्य आपातकालीन स्थिति में सभी को समान रूप से डॉक्टर्स की सुविधा उपलब्ध कराना है।

    बिहार में युवाओं के कौशल और क्षमता की अनगिनत कहानियां मौजूद हैं। आंत्रप्रेनरशिप और स्टार्टअप से जुड़ कर जहां उनकी प्रतिभा सामने आ रही है वहीं इससे समाज को भी लाभ मिल रहा है। कोरोना काल में जिस तरह से लोगों का व्यवसाय प्रभावित हुआ है, ऐसे समय में युवाओं द्वारा अपने स्टार्टअप के माध्यम से उन्हें आजीविका चलाने और रोज़गार मुहैया कराने का जो अवसर प्राप्त हुआ है, वह न केवल समृद्ध समाज के निर्माण की दिशा में एक बेहतर कदम है बल्कि देश की आर्थिक प्रगति में भी मील का पत्थर साबित होगा। ज़रूरत है इन युवाओं की प्रतिभा को पहचानने, उन्हें प्रोत्साहित करने और उचित मंच प्रदान करने की। युवा भारत की यही तस्वीर समृद्ध भारत के निर्माण में सहायक सिद्ध होगी।

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